जिंदगी से प्यार तो सांस की दरकार
स्वास्थ्य पर असर: दूषित वायु जब आपके शरीर के अंदर जाती है तो इसका शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। शुद्ध आबोहवा में रहने वाले किसी व्यक्ति का हर अंग-उपांग दूषित वातावरण के व्यक्ति से कहीं ज्यादा स्वस्थ होता है। फेफड़े, हृदय, मस्तिष्क जैसे अंग और प्रतिरोधक क्षमता अशुद्ध हवा में रहने वाले व्यक्ति के मुकाबले कई गुना मजबूत और क्षमतावान होते हैं। इसलिए जिंदगी से प्यार है तो अपनी आबोहवा को शुद्ध बनाकर सांस लेना शुरू कर दें। सूक्ष्म कणों का प्रदूषण(पॉर्टिकल पाल्यूशन) ये ठोस और तरल बूंदों के मिश्रण होते हैं। कुछ सूक्ष्म कण सीधे उत्सर्जित किए जाते हैं तो कुछ तमाम तरह के उत्सर्जनों के वातावरण में परस्पर क्रिया द्वारा अस्तित्व में आते हैं। ये तत्व इंसानी स्वास्थ्य के लिए बहुत घातक होते हैं। आकार के लिहाज से इनके दो प्रकार होते हैं।
पीएम 2.5: ऐसे कण जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या इससे कम होता है। ये इतने छोटे होते हैं कि इन्हें केवल इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देखा जा सकता है। इनके प्रमुख उत्सर्जक स्नोत मोटर वाहन, पॉवर प्लांट, लकड़ियों का जलना, जंगल की आग, कृषि उत्पादों को जलाना हैं।
पीएम 10: ऐसे सूक्ष्म कण जिनका व्यास 2.5 से लेकर 10 माइक्रोमीटर तक होता है। इन कणों के प्राथमिक स्नोत सड़कों पर वाहनों से उठने वाली धूल, निर्माण कार्य इत्यादि से निकलने वाली धूल हैं।
दुष्परिणाम: 10 माइक्रोमीटर से कम के सूक्ष्म कण से हृदय और फेफड़ों की बीमारी से मौत तक हो सकती है। सूक्ष्म कणों के प्रदूषण से सर्वाधिक प्रभावित समूह ऐसे लोग होते हैं जिन्हें हृदय या फेफड़े संबंधी रोग होते हैं।
ओजोन
फेफड़ों के रोगों जैसे अस्थमा, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और इंफीसीमा से पीड़ित व्यक्तियों के लिए ओजोन संवेदनशील हो सकती है। ऐसे लोगों के लिए कम स्तर वाला ओजोन प्रदूषण भी गंभीर साबित हो सकता है। इसके अलावा नियमित रूप से अधिक समय तक बाहर रहने वाले बच्चे, किशोर, अधिक आयु वाले वयस्क और सक्रिय लोगों समेत स्वस्थ व्यक्ति को भी नुकसान पहुंच सकता है।
दुष्परिणाम: ओजोन के असर से श्वसन तंत्र प्रभावित हो सकता है। खांसी, गले की खराश, गले में जलन, सीने में तनाव या लंबी सांस लेने पर सीने में दर्द भी महसूस हो सकता है। फेफड़ों के काम करने की क्षमता कम हो जाती है।
कार्बन मोनोक्साइड
यह एक गंधरहित, रंगरहित गैस है। यह तब पैदा होती है जब ईंधन में मौजूद कार्बन पूरी तरह से जल नहीं पाता है। वाहनों से निकलने वाले धुएं इस गैस के कुल उत्सर्जन में करीब 75 फीसद भागीदारी निभाते हैं। शहरों में तो यह भागीदारी बढ़कर 95 फीसद हो जाती है।
दुष्परिणाम: फेफड़ों के माध्यम से यह गैस रक्त परिसंचरण तंत्र में मिल जाती है। ऑक्सीजन के वाहक तत्व हीमोग्लोबिन के साथ मिलती है। विभिन्न अंगों और ऊतकों तक पहुंचने वाली ऑक्सीजन की मात्रा को बेहद कम कर देती है। लिहाजा कार्डियोवैस्कुलर रोगों से पीड़ित लोगों के लिए यह बहुत खतरनाक साबित होती है। ऐसे लोग इस घातक प्रदूषक की चपेट में आने पर सीने में दर्द महसूस करने लगते हैं। सल्फर डाईआक्साइड यह एक रंगहीन क्रियाशील गैस है। सल्फर युक्त कोयले या ईंधन के जलने पर पैदा होती है। सामान्यतौर पर सल्फर डाईऑक्साइड की सर्वाधिक मात्रा बड़े औद्योगिक संयंत्रों के पास मिलती है। इसके प्रमुख स्नोत ऊर्जा संयंत्र, रिफाइनरीज, औद्योगिक भट्टियां हैं।
दुष्परिणाम: यह एक जलन पैदा करने वाली गैस है। अस्थमा पीड़ित कोई व्यक्ति अगर इस गैस से प्रभावित क्षेत्र में शारीरिक क्रिया करता है तो इसकी चपेट में आ सकता है।