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2050 तक प्रदूषण लेगा हर साल 66 लाख जानें, भारत के बड़े शहरों में प्रदूषण स्तर ज्यादा

एक नई रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक प्रतिवर्ष वायु प्रदूषण से 66 लाख जानें जाएंगी। नेचर पत्रिका में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा समय में ही एशिया में प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष 33 लाख लोग असमय मौत का शिकार बनते हैं।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Thu, 17 Sep 2015 06:25 PM (IST)Updated: Thu, 17 Sep 2015 08:26 PM (IST)
2050 तक प्रदूषण लेगा हर साल 66 लाख जानें, भारत के बड़े शहरों में प्रदूषण स्तर ज्यादा

जागरण डेस्क, नई दिल्ली । एक नई रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक प्रतिवर्ष वायु प्रदूषण से 66 लाख जानें जाएंगी। नेचर पत्रिका में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा समय में ही एशिया में प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष 33 लाख लोग असमय मौत का शिकार बनते हैं। इसके दो प्रमुख कारण बताए गए हैं - एक पीएम2.5एस नामक विषाक्त कण और दूसरा वाहनों से निकलने वाली गैस नाइट्रोजन ऑक्साइड। इस रिपोर्ट में मुख्यत: वायु प्रदूषण की बात की गई है। बड़े शहरों में वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर इसमें विशेष तौर से बात की गई है।

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क्या कहती है रिपोर्ट

यह रिपोर्ट जर्मनी के मैक्स प्लेंक इंस्टीट्यूट ऑफ केमिस्ट्री के प्रो. जोस लेलिवेल्ड और उनके शोध दल ने तैयार की है। इसमें बताया गया है कि चीन और भारत में खाना पकाने के कारण जलने वाले कच्चे ईधन से स्थानीय स्तर पर सबसे अधिक प्रदूषण फैलता है। वहीं अमेरिका और अन्य विकसित देशों में वाहन व बिजली बनाने वाले संयंत्रों से सबसे अधिक उत्सर्जन होता है। यूरोप में कृषि के कारण वातावरण में विषाक्त कण मिलते हैं। रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषण से इंसान के फेफड़ों और समग्र विकास पर असर पड़ता है।

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केंद्र में भारत

यह भी बताया गया है कि भारत और चीन में फैलते जा रहे बड़े शहरों के कारण प्रदूषण की समस्या और गंभीर होगी। इस बारे में विशेषज्ञों की राय है कि यदि प्रदूषण के कारण इतनी बड़ी संख्या में असमय मौतों को रोकना है तो वायु को साफ करने से जुड़े बड़े कदम उठाने होंगे। रिपोर्ट के अनुसार इस दिशा में भारत और चीन के बड़े शहरों में व्यापक पैमाने पर कई प्रयास करने पड़ेंगे।

विशेषज्ञ विचार

इस रिपोर्ट की तस्दीक करते हुए केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के पर्यावरण विशेषज्ञ प्रो. माइकेल जेरेट कहते हैं कि इसमें बताए उपायों पर अमल करके प्रतिवर्ष 35 लाख से अधिक जानें बचाई जा सकती हैं। इसके लिए जरूरी है कि कमर्शियल और रिहायशी कार्यो के लिए इस्तेमाल में आने वाली ऊर्जा का स्वरूप बदला जाए। प्रो. जेरेट इस काम के लिए एशिया और उन क्षेत्रों में ऊर्जा संसाधनों में परिवर्तन की सिफारिश करते हैं जहां कच्चा ईधन बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रहा है।

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आंकड़ों की जुबानी

चूंकि इस रिपोर्ट में भारत में प्रदूषण पर विशेष जोर दिया गया है, इसलिए जरूरी है कि इस संबंध में भारत से जुड़े कुछ हालिया आंकड़ों को जान लिया जाए।

वर्ष 2010 में देश में शहरी आबादी 36.86 करोड़ थी।

हालिया सर्वेक्षणों के अनुसार देश में 10 करोड़ से भी अधिक घरों में दिन में दो-तीन बार खाना पकाने के लिए चूल्हे का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें जलने वाला ईधन गोबर, सूखी लकड़ी और कूड़ा-करकट होता है।

वर्ष 2009 की गणना के अनुसार देश में 65 फीसद कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन ऊर्जा क्षेत्र, बिजली के घरेलू इस्तेमाल से होता ।

देश में वाहन प्रदूषण से 9 फीसद उत्सर्जन होता है। यह प्रदूषण विशेषकर कार्बन, मीथेन, एनओएक्स से फैलता है।

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