बुंदल और बुडो द्वीप से पहले भी काफी कुछ चीन को सौंप चुका है पाकिस्तान, ड्रैगन की मजबूत हो रही पकड़
पाकिस्तान ने सामरिक महत्व के दो द्वीपों को चीन के हवाले कर दिया है। इससे पहले वो ट्रांस कारकोरम ट्रेक्ट और ग्वादर पोर्ट को भी चीन को सौंप चुका है। इस तरह से चीन पाकिस्तान में उत्तर से लेकर दक्षिण तक पहुंच गया है।
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। पाकिस्तान पर धीरे-धीरे चीन की गिरफ्त मजबूत होती दिखाई दे रही है। ड्रैगन के चंगुल में फंसते पाकिस्तान के ताबूत में एक कील और ठोक दी गई है। ये कील पाकिस्तान के दो द्वीपों को चीन को सौंपने के बाद ठोकी गई है। आपको बता दें कि ये पहला मौका नहीं है कि जब पाकिस्तान की सरकार ने इस तरह का कोई फैसला लिया है। हकीकत ये है कि पाकिस्तान में सरकार चाहे किसी पार्टी की रही हो या फिर वहां पर सैन्य शासन रहा हो, हर किसी ने चीन के आगे सिर झुकाया है। हकीकत ये भी है कि चीन को लेकर पाकिस्तान की इससे इतर कोई पॉलिसी भी नहीं रही है। इसके दो बड़े कारण रहे हैं। पहला कारण आर्थिक तंगी और दूसरा कारण भारत का डर।
सामरिक दृष्टि से काफी अहम
इमरान सरकार ने जिन दो द्वीपों को चीन को सौंपने का फैसला किया है वो दक्षिण कराची में स्थित हैं। इनका नाम बुंदल और बुडो है। ये दोनों द्वीप सामरिक दृष्टि से काफी अहम हैं। ये सिंध प्रांत के लंबे समुद्र तट पर फैले हुए हैं।ग्वादर पोर्ट से इन दोनों द्वीपों की दूरी करीब साढ़े छह सौ किमी की है।
मिल गई अंतिम मंजूरी
आर्थिक तंगी के नाम पर पाकिस्तान का फायदा उठाने वाले चीन ने पहले वहां पर आर्थिक गलियारा बनाने के नाम पर उसको अपने कर्ज के जाल में फांसा और अब वहीं चीन उसके दो द्वीपों पर कब्जा जमाने को भी तैयार है। ये सभी कुछ कानूनन हो रहा है। पाक राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने पाकिस्तान आइलैंड विकास प्राधिकरण के माध्यम से दिए गए विधेयक पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। इसके बाद इसको अंतिम मंजूरी मिल गई है।
विरोध के सुर
हालांकि सरकार के इस फैसले का पाकिस्तान में जबरदस्त विरोध हो रहा है। इस मुद्दे पर सियासी जमातें एकजुट होती दिखाई दे रही है। इसको लेकर इमरान सरकार सीधे निशाने पर आ गई है। जनता में व्यापक विरोध के बीच विरोधी दलों और कई संगठनों ने एलान किया है वे किसी भी कीमत पर दोनों द्वीपों को बेचने नहीं देंगे। सिंध की सरकार और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो जरदारी ने इसे अवैध कब्जा बताया है। हालांकि वर्ष 2013 में जरदारी ने ही राष्ट्रपति रहते हुए ग्वादर पोर्ट को चीन को सौंपा था और अपने बयान में उन्होंने इसको फायदे का सौदा बताया था। इमरान सरकार के ताजा फैसले के विरोध में उतरी जियो सिंधी थिंकर्स फोरम ने कहा कि हम अपनी जमीन बेचने नहीं देंगे। गुलाम कश्मीर और बलूचिस्तान की जनता भी कह रही है कि ये सीधेतौर पर चीन का कब्जा है। इमरान सरकार के इस फैसले के खिलाफ बलूचिस्तान की नेशनल पार्टी ने इसके खिलाफ देश भर में आंदोलन चलाने का एलान किया है।
ट्रांस कारकोरम ट्रेक्ट
आपको बता दें कि इससे पहले पाकिस्तान ने भारतीय क्षेत्र पर 1947 में अवैध कब्जा करने के बाद इसके काराकोरम-पार क्षेत्र (Trans-Karakoram Tract, ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट) या शक्सगाम वादी को चीन को सौंप दिया था। ये पूरा इलाका करीब 5800 किमी का है जो कश्मीर के उत्तरी काराकोरम पर्वतों में शक्सगाम नदी के दोनों ओर फैला हुआ है। ये भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य का हिस्सा है। 1963 में एक सीमा समझौते के अंतर्गत पाकिस्तान ने इस क्षेत्र को चीन को भेंट कर दिया था।
ग्वादर पोर्ट
फरवरी 2013 में पाकिस्तान ने ग्वादर बंदरगाह चीन के हाथों में सौंप दिया था। कहने के लिए तो पाकिस्तान ने केवल यहां का मैनेजमेंट चीन के हाथों में दिया है लेकिन हकीकत ये है कि चीन के हाथों कर्ज में डूबते पाकिस्तान के पास इससे बाहर निकलने का कोई दूसरा विकल्प बचा ही नहीं है। सत्ता में बैठे सियासी लोग इस तरह के फैसले से अपनी जेब भरते आ रहे हैं। लेकिन चीन का इस तरह से करीब आना भारत के लिए चिंता का सबब जरूर है। चीन यहां से भारतीय जहाजों पर पर निगाह रख सकता है। इसके अलावा अरब सागर में चीन के जहाजों की आवाजाही बढ़ गई। आपको बता दें कि ग्वादर बंदरगाह पाकिस्तान के लिए बेहद सामरिक महत्व वाला बंदरगाह है। इसको लेकर चीन और पाकिस्तान में जो कागज पर समझौता हुआ है उसके मुताबिक ये बंदरगाह पाकिस्तान की ही संपत्ति रहेगा, लेकिन चीन की कंपनी इस बंदरगाह से होने वाले कामकाज के लाभ की हिस्सेदार रहेगी। चीन ने इस बदंरगाह के निर्माण के लिए शुरुआत में 75 प्रतिशत धन उपलब्ध कराया। बंदरगाह के निर्माण पर 25 करोड़ डॉलर का खर्च आया। पाकिस्तान सरकार ने 30 जनवरी 2013 को ग्वादर बंदरगाह के प्रबंधन का अधिकार सिंगापुर से चीन को हस्तांतरित किया।