केरल बाढ़ की तबाही के बाद का मंजर : जख्म तो भर जाएगा, पर टीस नहीं जाएगी
लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि नए सिरे से जिंदगी की शुरूआत कैसे की जाए। पांडानार के अधिकांश लोगों की हालत कुछ ऐसी ही है।
नीलू रंजन, चेंगलुरू(केरल)। केरल की बाढ़ की तबाही का जख्म तो देर-सबेर भर जाएगा। लेकिन इससे प्रभावित लोगों के दिलों से टीस शायद ही कभी जाएगी। 27 साल दुबई में नौकरी करने और तीन बच्चों को पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाकर सफल जिंदगी जीने वाले पांडानार के मैथ्यू अब खुद असहाय महसूस करते हैं। तीन दिन तक बिना खाए-पीए अपनी पत्नी और मां के साथ घर की छत पर बिताने वाले मैथ्यू कीचड़ से भरे घर में लौट तो आए हैं, लेकिन उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि नए सिरे से जिंदगी की शुरूआत कैसे की जाए। पांडानार के अधिकांश लोगों की हालत कुछ ऐसी ही है।
पांडानार में पंपा नदी के किनारे बसे इलाके में हर तरफ बाढ़ की तबाही साफ नजर आ रही है। बाढ़ का पानी उतरने के बाद घरों में लौटे लोगों को गीले और कीचड़ में सने सामानों के बीच देखा जा सकता है। ऐसे एक घर के बाहर कीचड़ में सने धोती बांधे 70 वर्षीय मैथ्य मिलते हैं। मैथ्यू की दो बेटियां और एक बेटा है। एक बेटी डाक्टर है, एक बैंक में नौकरी करती है और बेटा बंगलोर में टीसीएस में है। 27 साल तक दुबई में नौकरी करने के बाद मैथ्यू ने पांडानार में अपना घर बनाया, जहां वे पत्नी और 95 वर्षीय मां के साथ रहते हैं।
तीन दिन तक भूखे-प्यासे छत पर रहे
मैथ्यू कहते हैं कि तीन दिन तक वे मां और बीमार पत्नी के साथ भूखे-प्यासे छत पर रहे, लेकिन कोई बचाने नहीं आया। एनडीआरएफ, सेना, वायुसेना किसी के भी वोट की नजर उनपर नहीं पड़ी। तीन दिन बाद सेवा भारती के कार्यकर्ताओं ने एक छोटे से वोट से उन्हें सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया।
घर का सारा सामान खराब
मैथ्यू कहते हैं कि जान तो बच गई, लेकिन पूरी जिंदगी की कमाई चली गई। पत्नी और मां को सुरक्षित रिश्तेदार के यहां पहुंचाकर मैथ्यू अकेले जिंदगी की टूटी डोर को फिर से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। सेवा भारती के कार्यकर्ता उनके घर से कीचड़ की सफाई में तो जुटे हैं, लेकिन सोफा, बेड, फ्रीज, किचन से लेकर घर का सारा सामान खराब हो चुका है। उम्र की इस दहलीज पर इसे कैसे जुटा पाएंगे, वे नहीं जानते हैं।
कोई मदद के लिए नहीं आया
इसी पांडनार में 80 वर्षीय बालाकृष्ण कार्नावार का भी यही हाल है। बेटा अपने परिवार के साथ सऊदी अरब में है। बेटी की शादी केरल में ही हुई है। बाढ़ में फंसने के दो दिन बाद दामाद ने किसी तरह उन्हें सुरक्षित निकाला। लेकिन अब घर के बाहर कीचड़ से सने सामानों की सफाई सूनी आंखों से देख रहे हैं। उनके अनुसार राहत कैंपों में तो सरकार खाने-पीने और दवा का पूरा इंतजाम कर रही है। लेकिन उनके पास अभी तक कोई मदद के लिए नहीं आया है।
जिंदगी का सूत्र फिर से जोड़ने की कोशिश
खाने-पीने का सामान बंटने के लिए आता भी है तो उनमें इतनी ताकत नहीं बची है कि घर से दूर लाइन में लगें। वे पूरी स्थिति के लिए किसी को दोष भी नहीं देते हैं। केवल इतना कहते हैं कि पंपा नदी में तीन डैम का पानी छोड़ने के पहले सबको इसके बार में बताने की जिम्मेदारी सरकार की बनती है, जो नहीं की गई। बालाकृष्ण कार्नावार उम्र के इस पड़ाव पर भी जिंदगी का सूत्र फिर से जोड़ने की कोशिश में जुटे हैं।