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सऊदी के बाद ईरान को साधने में जुटा भारत

बदलते भू-राजनीतिक परिवेश की वजह से मध्य पूर्व एशियाई क्षेत्र दुनिया के तमाम बड़ी शक्तियों के लिए एक कूटनीतिक चुनौती बन गया है। भारत के लिए तो मध्य एशियाई देश न सिर्फ ऊर्जा सुरक्षा के हिसाब से बल्कि अन्य समाजिक व आर्थिक दृष्टिकोण से भी काफी अहम है।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Wed, 06 Apr 2016 10:56 PM (IST)Updated: Wed, 06 Apr 2016 11:03 PM (IST)
सऊदी के बाद ईरान को साधने में जुटा भारत

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। बदलते भू-राजनीतिक परिवेश की वजह से मध्य पूर्व एशियाई क्षेत्र दुनिया के तमाम बड़ी शक्तियों के लिए एक कूटनीतिक चुनौती बन गया है। भारत के लिए तो मध्य एशियाई देश न सिर्फ ऊर्जा सुरक्षा के हिसाब से बल्कि अन्य समाजिक व आर्थिक दृष्टिकोण से भी काफी अहम है।

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केंद्र सरकार इसे बखूबी समझ रही है यही वजह है कि इस क्षेत्र की दो सबसे अहम शक्तियों सऊदी अरब और ईरान को एक साथ साधने की कोशिश हो रही है। सऊदी अरब की पीएम नरेंद्र मोदी की बेहद सफल यात्रा के बाद भारत सरकार अब ईरान के साथ अपने रिश्तों को नए सिरे से संवारने जा रही है।

आज पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक में ईरान को लेकर एक अहम समझौता सरकार की मंशा को दिखाता है। कैबिनेट ने ईरान की कंपनियों के लिए 3000 करोड़ रुपये का लाइन ऑफ क्रेडिट उपलब्ध कराने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। अभी तक यह सुविधा 900 करोड़ रुपये की थी। इससे ईरान की कंपनियां अब ज्यादा भारतीय उत्पादों का आयात कर सकेंगी।

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उधर, विदेश मंत्रालय के अनुरोध पर रिजर्व बैैंक ने भारतीय तेल कंपनियों पर ईरान के बकाये राशि के भुगतान के मामले को जल्द से जल्द सुलझाने में जुटा हुआ है। ईरान पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध के दौरान देश की तेल कंपनियों ने वहां से 6.5 अरब डॉलर मूल्य का कच्चा तेल खरीदा था जिसका भुगतान अभी तक नहीं हो सका है।

रिजर्व बैैंक ईरान के बैैंक के साथ विमर्श शुरु कर चुका है और उम्मीद है कि अगले कुछ हफ्तों के दौरान ही बकाये राशि का किश्तों में भुगतान शुरु हो जाएगा। भारत ने खुल कर ईरान से तेल आयात करना भी शुरु कर दिया है। पांच-सात वर्ष पहले तक ईरान भारत का दूसरा दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता देश था। माना जा रहा है कि इस वर्ष ईरान फिर यह स्थान हासिल कर सकता है।

विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक ईरान और भारत के बीच बेहद पुराने रिश्ते हैैं। अंतरराष्ट्री प्रतिबंध के दौरान भी भारत उन गिने चुने देशोंं में है जिसने ईरान के साथ अपने व्यापारिक व अन्य रिश्तों को बनाये रखा है। जुलाई, 2015 में रूस (उफा) में पीएम मोदी और ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी की मुलाकात में द्विपक्षीय रिश्तों को नये सिरे से मजबूत बनाने की इच्छा जताई गई थी। अब इस पर काम शुरु हो चुका है। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान इस हफ्ते के अंत में ईरान जा रहे हैैं।

इसके बाद 14 अप्रैल, 2016 को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी तेहरान जाएंगी। इन दोनों की यात्रा को प्रधानमंत्री मोदी की संभावित तेहरान यात्रा की तैयारी के तौर पर देखा जा रहा है। वैसे प्रधान की इस यात्रा का काफी व्यापक एजेंडा है। प्रधान ने सिर्फ ईरान के तेल मंत्री अमीर हुसैन जमानिनिया से मिलेंगे बल्कि व्यापार मंत्री रेजा नेमतजादेह और सेंंट्रल बैैंक ऑफ ईरान के गवर्नर से भी द्विपक्षीय बातचीत करेंगे।

प्रधान मुख्य तौर पर ऊर्जा क्षेत्र में दोनों देशों के बीच होने वाले समझौते की जमीन तैयार करेंगे तो विदेश मंत्री सुषमा की यात्रा के दौरान चाबहार पोर्ट और यहां भारत की मदद से स्थापित होने वाले विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) की स्थापना की राह की रुकावटों को दूर करने की कोशिश करेंगे।


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