कसेगा शिकंजा, नीरव मोदी के बाद अब भगोड़े विजय माल्या लाने को भारत लाने की तैयारी
साढ़े 13 हजार करोड़ के पीएनबी बैंक घोटाले में भगोड़े हीरा कारोबारी नीरव मोदी के लंदन की कोर्ट से प्रत्यर्पण का रास्ता साफ हो गया। इसके लिए लंदन की कोर्ट ने आदेश जारी कर दिया। उसके बाद अब शराब कारोबारी विजय माल्या को भारत लाने की तैयारी है।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। साढ़े 13 हजार करोड़ के पीएनबी बैंक घोटाले में भगोड़े हीरा कारोबारी नीरव मोदी के लंदन की कोर्ट से प्रत्यर्पण का रास्ता साफ हो गया। इसके लिए लंदन की कोर्ट ने आदेश जारी कर दिया। उसके बाद अब शराब कारोबारी विजय माल्या को भारत लाने की तैयारी है।
विजय माल्या मार्च 2016 में भारत से ब्रिटेन भाग गया था। शराब कारोबारी विजय माल्या पर 17 बैंकों के 9 हजार करोड़ रुपये का गबन करने का आरोप है। फिलहाल लंदन में जीवन बिता रहे माल्या को प्रत्यर्पित करने की कोशिशों को उस वक्त सफलता मिली थी, जब लंदन की मजिस्ट्रेट कोर्ट ने दिसंबर 2018 में उसे भारत प्रत्यर्पित करने का आदेश दिया था। इस आदेश को माल्या ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इस पर सुनवाई करते हुए 12 फरवरी को हाई कोर्ट ने माना कि भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या के खिलाफ बेईमानी के पुख्ता सबूत हैं।
माल्या की किंगफिशर एयरलाइंस के घाटे ने बढ़ाईं मुश्किलें
कहा जाता है कि विजय माल्या की मुश्किलें किंगफिशर एयरलाइंस के नाकाम होते जाने के साथ बढ़ती चली गईं। वो घाटे में डूबती जा रही इस एयरलाइंस को बंद करना चाहते थे, लेकिन वर्ष 2010 में उन्होंने इसे नई जिंदगी देने का फैसला किया। इसके लिए बैंकों से मोटा लोन लेना शुरू किया, जिसने उन्हें वहां पर लाकर खड़ा कर दिया, जहां आज वो हैं।
आखिर बंद हो गई किंगफिशर
किंगफिशर आखिरकार 2012 में बंद हो गई, लेकिन इस एयरलाइंस ने आठ सालों में कभी फायदा नहीं दिया। एयरलाइंस के कर्मचारियों को वेतन तक के लाले पड़ गए। एक समय में ये भारत की दूसरी बड़ी एयरलाइन थी, विदेशों में इसकी उड़ानें हुआ करती थीं, लेकिन मार्च 2013 तक इसका कुल घाटा 16,023 करोड़ तक पहुंच गया।
दो बार राज्यसभा सदस्य भी रह चुके हैं
विजय माल्या दो बार राज्यसभा में भी सदस्य रह चुके हैं। जिस समय वो लंदन के लिए भागे, तब भी वो राज्यसभा सदस्य ही थे। वो वर्ष 2000 में राजनीति में आए, जनता पार्टी के नाम पर उनकी पार्टी ने कर्नाटक में विधानसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन उनकी पार्टी कोई प्रभाव नहीं बना सकी। हालांकि उसके बाद वो दो बार राज्यसभा में पहुंचने में सफल रहे। पहली बार वो वर्ष 2002 में राज्यसभा सदस्य बने और दूसरी बार वर्ष 2010 में लेकिन उसके बाद उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।