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नौ दिन बाद अब है मां की विदाई की बारी, गूंजेगी ऊलू की आवाज और उड़ेगा सिंदूर

नवरात्र खत्‍म होने के बाद अब मां की विदाई का समय है। नौ दिनों के बाद आज वापसी की कामना के साथ मां दुर्गा की विदाई होनी है। जहां तक पश्चिम बंगाल की बात है तो वहां पर दुर्गा पूजा सबसे बड़ा उत्‍सव है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 19 Oct 2018 10:58 AM (IST)Updated: Fri, 19 Oct 2018 11:05 AM (IST)
नौ दिन बाद अब है मां की विदाई की बारी, गूंजेगी ऊलू की आवाज और उड़ेगा सिंदूर
नौ दिन बाद अब है मां की विदाई की बारी, गूंजेगी ऊलू की आवाज और उड़ेगा सिंदूर

नई दिल्ली [जागरण स्‍पेशल]। नवरात्र खत्‍म होने के बाद अब मां की विदाई का समय है। नौ दिनों के बाद आज वापसी की कामना के साथ मां दुर्गा की विदाई होनी है। जहां तक पश्चिम बंगाल की बात है तो वहां पर दुर्गा पूजा सबसे बड़ा उत्‍सव है। यदि आप भी कभी मां दुर्गा के पंडालों में गए हो तो वहां पर आपने भी मूर्ति स्‍थापना और मां दुर्गा की विदाई पर महिलाओं द्वारा निकाले जाने वाली अजीब सी आवाज जरूर सुनी होगी। इस आवाज के पीछे आखिर क्‍या है। यदि आप नहीं जानते हैं तो हम बताते हैं। दरअसल, पश्चिम बंगाल में हर शुभ मौके पर महिलाएं इस तरह की आवाज निकालती हैं जिसे ऊलू कहा जाता है। मां दुर्गा की मूर्ति की स्‍थापना हो या विदाई दोनों ही वक्‍त पर ये आवाज उनके स्‍वागत में निकाली जाती है। इसके अलावा शादी समारोह में भी इसी तरह की आवाजें निकालकर उस खास वक्‍त का स्‍वागत किया जाता है।

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सिंदूर की होली के साथ विदाई
इस दौरान महिलाओं के एक दूसरे पर सिंदूर डालने का भी खास महत्‍व है। असल में सुहागिन महिलाएं ऐसा करके मां दुर्गा को यह बताती हैं कि उनका उनसे खून का संबंध हैं। पश्चिम बंगाल में पहले जब शादियां की जाती थीं तो अंगुली में हल्‍का सा कट लगाकर खून से मांग भरी जाती थी। यह इस बात का सुबूत होता था कि अब जिसको हम ब्‍याह कर लाए हैं उससे हमारा खून का संबंध है। बाद में इसमें बदलाव हुआ और खून की जगह सिंदूर ने ले ली। अब मां दुर्गा के साथ-साथ महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर यही प्रदर्शित करने की कोशिश करती हैं। बहरहाल, नवरात्र शुरू होने में भले ही अभी दो दिन शेष हैं, लेकिन इनकी आहट महसूस की जाने लगी है। जल्‍द ही मां दुर्गा हमारे बीच नौ दिन के लिए आएंगी और हम सभी उनकेनौ रूपों की पूजा करेंगे। अंतिम दिन उनको विदा कर कामना करेंगे की वह हर बार की भांति फिर हमारे बीच आएं। 

केवल मिट्टी की बनती हैं मूर्तियां

पको बता दें कि मां दुर्गा की इन मूर्तियों को केवल मिट्टी से ही तैयार किया जाता है। इसके लिए नदी के किनारे की मिट्टी का उपयोग किया जाता है। इसमें किसी भी तरह की अन्‍य चीज नहीं मिलाई जाती है। आपको जानकर हैरत होगी कि इस मूर्ति की शुरुआत के लिए मूर्तिकार सबसे पहले उस स्‍थान की मिट्टी लाते हैं जिसे समाज से अलग माना जाता है। यह वह रेड लाइट इलाके होते हैं जहां पर देह व्‍यापार करने वाली महिलाएं रहती हैं। ऐसा करने के पीछे भी एक बड़ा कारण है। दरअसल, प्राचीन समय से इस तरह का काम करने वाली महिलाओं को समाज से अलग माना जाता रहा है। उनकी धार्मिक अनुष्‍ठानों में भी भागीदारी या तो नहीं रही या फिर नाम मात्र की ही रही है।

धार्मिक अनुष्‍ठान
ऐसे में दुर्गा पूर्जा के दौरान उनके यहां की मिट्टी से मां दुर्गा की मूर्ति की शुरुआत करने को माना जाता है कि इस बड़े धार्मिक अनुष्‍ठान में उनको भी विधिवत तौर पर शामिल किया गया है। पश्चिम बंगाल में कुमार टोली वो जगह है जहां पर मां दुर्गा की मूर्तियां तैयार की जाती हैं। कुमार टोली का अर्थ है जहां पर कुम्‍हार रहते हैं। मूर्तियां तैयार करने से पहले यह मूर्तिकार पश्चिम बंगाल में सोनागाछी से सबसे पहले मिट्टी लाते हैं। इसके बाद ही किसी मूर्ति को तैयार किया जाता है। मां दुर्गा की मूर्तियों आज भी ज्‍यादातर जगहों पर परंपरागत तरीके से ही बनाई जाती है, लेकिन कुछ जगहों पर इसमें बांस के साथ पराली का भी उपयोग किया जाने लगा है।

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