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प्रधान बन गांव की बेटियों को सशक्त बनाने में जुटी एमबीए बिटिया

गांव की बेटियों को सशक्त बनाने में जुटी हुई हैं। महिला स्वास्थ्य, स्वच्छता और कंप्यूटर शिक्षा पर जोर है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 17 Oct 2018 09:21 AM (IST)Updated: Wed, 17 Oct 2018 09:21 AM (IST)
प्रधान बन गांव की बेटियों को सशक्त बनाने में जुटी एमबीए बिटिया
प्रधान बन गांव की बेटियों को सशक्त बनाने में जुटी एमबीए बिटिया

बलिया [समीर तिवारी]। एमबीए (मास्टर्स ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन) तक पढ़ाई और फिर एक बड़ी कंपनी में बेहतर नौकरी हासिल करने के बाद स्मृति अपने गांव की ओर लौट आईं। अब गांव की प्रधान हैं। गांव की बेटियों को सशक्त बनाने में जुटी हुई हैं। महिला स्वास्थ्य, स्वच्छता और कंप्यूटर शिक्षा पर जोर है।

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बलिया, उप्र के गांव रतसर कला की युवा प्रधान स्मृति सिंह एक मिसाल हैं, जो आज की युवा सोच का प्रतिनिधित्व करती हैं। ऐसी सोच जो एकांगी नहीं है। जिसमें केवल खुद के लिए नहीं बल्कि औरों के लिए भी जगह है। जिसमें अपनी माटी अपने परिवार-गांव- समाज और देश के लिए जीने का, उनकी बेहतरी के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा हिलोरें मारते दिखता है। इसी सोच ने स्मृति को गांव लौटने पर विवश कर दिया। सुशिक्षित और पेशेवर दक्षता अर्जित करने के बावजूद स्मृति ने सुनहरे करियर का त्याग कर अपनी माटी की सेवा को जीवन का लक्ष्य बनाया।

लक्ष्य में स्पष्टता हो और उसकी पूर्ति के प्रति पूर्ण समर्पण हो तो राहें खुद-ब-खुद बनती जाती हैं। स्मृति की आज एक उत्साही ग्राम प्रधान के रूप में अलग पहचान है। उन्होंने ग्राम्य विकास के क्षेत्र में एक मुकाम हासिल किया है। राज्य व केंद्र सरकार द्वारा अनेक सम्मानों से नवाजी जा चुकी गांव की यह दुलारी बिटिया आज पूरे क्षेत्र में नारी सशक्तीकरण का प्रतीक बन चुकी है।

वर्ष 2014 में लखनऊ से मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के बाद स्मृति का मन नौकरी में नहीं लग रहा था। वे एक रिसर्च कंपनी में काम करती थीं। उन्हें गांव रतसर कला की समस्याएं कचोटती थीं। वह अक्सर गांव आतीं तो वहीं की हो जाना चाहतीं। इसी उधेड़बुन में स्मृति ने कुछ ही महीनों बाद नौकरी को बाय-बाय कह दिया। उन्होंने अपने दिल की सुनी और चल पड़ीं गांव की डगर पर। पिता भी इस निर्णय पर उनके साथ थे। इस बीच फरवरी 2015 में पिता अखंड सिंह का निधन हो गया और कुछ समय बाद मां भी गुजर गईं। पिता ने उन्हें बेटे के रूप में पाला था और संस्कार भी यही दिए थे। पिता की चाहत थी कि बिटिया बेटों से भी बेहतर काम कर दिखाए।

दिसंबर 2015 की बात है जब गांव में पंचायत चुनाव होने वाला था। स्मृति ने भी चुनावी दंगल में उतरने का फैसला किया। गांव के लोगों को यह फैसला एकबारगी नागवार भी गुजरा। हालांकि गांव में घर- घर घूमकर स्मृति ने लोगों का विश्वास जीत लिया। इसी के बल पर उन्होंने चुनाव में बाजी भी मार ली। गांव का मुखिया बनते ही स्मृति ने अपनी सोच और कामों से एक अलग पहचान बनाई। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। कहती हैं कि गांव की बेटियों और महिलाओं के लिए विशेष प्रयास करना प्राथमिकता है। महिला स्वास्थ्य, स्वच्छता और कंप्यूटर शिक्षा के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। डिजिटल साक्षरता अभियान चला रही हैं, जिसके तहत कोर्स करा प्रमाणपत्र भी दिया जाता है।  


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