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पुलिस की सत्ता से गलबहियां, आखिर क्या है आइपीएस और राजनेता गठजोड़ का कारण

उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने अगर कहा है कि पुलिस सत्ताधारी पार्टी के साथ मिलकर काम करती है तो सही बात है। यही बात हम पिछले बीस साल से कहते चले आ रहे हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 27 Aug 2021 12:56 PM (IST)Updated: Fri, 27 Aug 2021 12:56 PM (IST)
पुलिस की सत्ता से गलबहियां, आखिर क्या है आइपीएस और राजनेता गठजोड़ का कारण
पुलिस के कामकाज में राजनीतिक दखल की बात नई नहीं है।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। छत्तीसगढ़ के निलंबित पुलिस अधिकारी गुरजिंदर पाल सिंह को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जो सख्त टिप्पणी की है, वह भारत में पुलिस अधिकारियों के राजनीतिकरण के बढ़ते चलन की तरफ इशारा करती है। राज्य की व्यवस्था संभालने में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) व भारतीय पुलिस सेवा (आइपीएस) अधिकारियों की अहम भूमिका होती है। हालांकि कई बार यही वरिष्ठ अधिकारी दायित्वों को भूल किसी खास राजनीतिक दल से गलबहियां कर लेते हैं। कालांतर में या तो स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेकर या फिर रिटायरमेंट के बाद ऐसे अधिकारी उस राजनीतिक दल से सीधे जुड़ जाते हैं। कई राज्यों में ऐसे उदाहरण हैं। इसके लिए पुलिस सुधार न लागू होना भी कारण है। आइए इस चलन को सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के आलोक में समझें:

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उत्तर प्रदेश: कई ने पहनी खादी

  • वरिष्ठ अधिकारी दूसरी पारी में राजनीति में अपनी किस्मत आजमाते आए हैं। ऐसे अधिकारियों की सूची लंबी है। रिटायर्ड आइपीएस अधिकारी डीबी राय, श्याम लाल कमल, बीपी सिंह, ज्ञान सिंह, राजेश कुमार राय व अन्य कई अलग-अलग जिलों से चुनाव लड़ चके हैं
  • पूर्व डीजीपी बृजलाल भी सेवानिवृत्त होने के बाद राजनीति में आए। सेवानिवृत्त महानिदेशक (डीजी) सूर्य कुमार शुक्ला भी दूसरी पारी में राजनीति में किस्मत आजमा रहे हैं
  • राज्य पुलिस सेवा (पीपीएस) अधिकारी शैलेंद्र प्रताप सिंह ने नौकरी से इस्तीफा देकर राजनीति में प्रवेश किया था। पूर्व आइएएस अधिकारी पीएल पुनिया का नाम भी इस कड़ी में अहम है

आखिर आइपीएस-राजनेता गठजोड़ का कारण क्या है: पुलिस के कामकाज में राजनीतिक दखल की बात नई नहीं है। पुलिस विभाग आज भी गुजरे जमाने के बनाए नियमों, प्रविधानों पर चल रहा है। पुलिस सुधारों को कई बार प्रयास किया गया, लेकिन चंद राज्यों को छोड़ किसी ने भी इन सुधारों को लागू करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। पुलिस-सुधार के प्रयासों की लंबी कड़ी में धर्मवीर आयोग, विधि आयोग, मलिमथ समिति, पद्मनाभैया समिति, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, सोली सोराबजी समिति तथा सबसे महत्वपूर्ण प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ-2006 मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देश हैं। विधि विशेषज्ञ सोली सोराबजी ने एक माडल पुलिस एक्ट का प्रारूप 2006 में तैयार किया था। हालांकि यह भी लागू नहीं हो सका। पुलिस में राजनीतिक दखल और जनता के प्रति जवाबदेही को लेकर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस को बेहद अहम माना जाता है। प्रदेश के पुलिस प्रमुख से लेकर थाना प्रभारी तक की एक स्थान पर लंबी नियु्क्ति का न करने का अहम निर्देश भी ताक पर है।

सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस

  • धर्मवीर आयोग की सिफारिशें लागू करवाने के लिए प्रकाश सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में 1996 में एक जनहित याचिका दायर की थी
  • 22 सितंबर, 2006 को सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश जारी किए। 15 वर्ष बीतने के बाद भी इनका पूरी तरह से पालन नहीं किया गया है
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य सुरक्षा आयोग का गठन किया जाए, ताकि पुलिस बिना दबाव काम कर सके
  • थाना प्रभारी से पुलिस प्रमुख तक की एक स्थान पर कार्यावधि दो वर्ष सुनिश्चित की जाए

झारखंड: अधिकारियों का राजनीति प्रेम

डा. रामेश्वर उरांव: 2004 में डा. रामेश्वर उरांव आइपीएस की नौकरी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे।

अमिताभ चौधरी: अपर पुलिस महानिदेशक थे। नौकरी छोड़ दी और झारखंड विकास मोर्चा में शामिल हो गए।

बीडी राम: डीजीपी रहा यह अधिकारी भाजपा में शामिल हुआ।

डा. अजय कुमार: झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर 2010 में जमशेदपुर लोकसभा उपचुनाव जीता।

राजनेता बनने वालों की कतार लंबी है

गुप्तेश्वर पांडे: बिहार के पूर्व डीजीपी ने वीआरएस लिया। मंशा विधानसभा चुनाव लड़ने की थी, लेकिन बात बन नहीं सकी।

सत्यपाल सिंह: सत्यपाल सिंह ने 2014 में मुंबई के पुलिस आयुक्त के पद से इस्तीफा दिया और भाजपा में शामिल हो गए।

मु. मुस्तफा: पंजाब में पूर्व डीजीपी मु. मुस्तफा को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने अपना सहलाहकार बनाया। हालांकि उन्होंने बाद में इन्कार कर दिया। उनकी पत्नी राज्य की अमरिंदर सरकार में मंत्री हैं।

उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने अगर कहा है कि पुलिस सत्ताधारी पार्टी के साथ मिलकर काम करती है तो सही बात है। यही बात हम पिछले बीस साल से कहते चले आ रहे हैं। इसीलिए हम पुलिस सुधारों की मांग कर रहे हैं। दुखद बात यह है कि पुलिस सुधार का मुद्दा खामोशी में चला गया है। देश के लोकतंत्र के लिए ये स्थिति ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पुलिस सुधारों को लेकर उसके निर्देशों का राज्य सरकारें अनुपालन करें। अगर नहीं करती हैं तो उसे डंडा चलाना चाहिए। राज्यों को अदालत की अवमानना का नोटिस भेजा जाना चाहिए। केंद्र सरकार को भी अपनी प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए।


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