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आजादी के 70 साल बाद रोशन हुई 'एलीफेंटा की गुफाएं’, जानिए कैसे बनी विश्व धरोहर

समुद्र में 7.5 किमी लंबी केबल बिछाकर मुंबई से महज 10 किलोमीटर दूर स्थित एलीफेंटा या घरापुरी टापू पर बिजली पहुंचाई गई है।

By Nancy BajpaiEdited By: Published: Fri, 23 Feb 2018 11:56 AM (IST)Updated: Fri, 23 Feb 2018 12:06 PM (IST)
आजादी के 70 साल बाद रोशन हुई 'एलीफेंटा की गुफाएं’, जानिए कैसे बनी विश्व धरोहर
आजादी के 70 साल बाद रोशन हुई 'एलीफेंटा की गुफाएं’, जानिए कैसे बनी विश्व धरोहर

मुंबई (एएनआइ)। आजादी के 70 साल बाद आखिरकार यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल‘एलीफेंटा की गुफाएं’ बिजली से रोशन हुई। समुद्र में 7.5 किमी लंबी केबल बिछाकर मुंबई से महज 10 किलोमीटर दूर स्थित एलीफेंटा या घरापुरी टापू पर बिजली पहुंचाई गई है।

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पर्यटकों की संख्या में होगा इजाफा

राज्य के ऊर्जा मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने इस दिन को ऐतिहासिक बताया है। उन्होंने कहा, 'यह एक ऐतिहासिक दिन है। ऐसा पहली बार है जब इस तरह के बड़े केबल का उपयोग अरब सागर में बिजली के लिए लाइनों का प्रसार करने के लिए किया गया है।' उन्होंने आगे कहा कि इस कदम से विश्व विरासत पर पर्यटनों की संख्या में इजाफा देखने को मिलेगा।

25 करोड़ की लागत लगी

जानकारी के मुताबिक 'एलीफेंटा की गुफाएं' के विद्युतीकरण की परियोजना पर कुल 25 करोड़ रुपये की लागत आई है। जबकि कार्य पूरा होने में 15 महीने का वक्त लगा है। बता दें कि इस परियोजना का फायदा तीन गांवों (राज बंदर, मोरा बंदर और शेत बंदर) को भी पहुंचेगा।

महाराष्ट्र राज्य बिजली वितण कंपनी लिमिटेड के क्षेत्रीय निदेशक सतीश करापे ने बताया, 'भारत में समुद्र में बिछाया गया यह सबसे लंबा बिजली केबल है और इसे बिछाने में करीब तीन महीने का समय लगा। इसके अलावा हमने यहां के तीन गांवों में से प्रत्येक में छह स्ट्रीट लाइट टावर लगया है, जो 13 मीटर ऊंचा है और इसमें छह शक्तिशाली एलइडी बल्ब लगाए गए हैं।' बता दें कि दो सौ घरों में बिजली के मीटर कनेक्शन और कुछ उपभोक्ताओं को व्यावसायिक कनेक्शन दिए गए हैं।

एलीफेंटा नहीं है वास्‍तविक नाम

मुंबई के गेट वे ऑफ इंडिया से लगभग 12 किलोमीटर दूर स्थित एलीफेंटा की कलात्मक गुफाओं का वास्‍तविक नाम घारापुरी गुफाएं है। एलीफेंटा नाम इन्‍हें पुर्तगालियों द्वारा उनके शासन काल में यहां पर बने पत्थर के हाथी के कारण दिया था। इस स्‍थान पर कुल सात गुफाएं हैं, जिसमें से मुख्य गुफा में 26 स्तंभ हैं, जिसमें भगवान शिव के कई रूपों को उकेरा गया है। पहाड़ियों को काटकर बनाई गई ये मूर्तियां दक्षिण भारतीय मूर्तिकला से प्रेरित हैं। गुफाओं का ऐतिहासिक नाम घारपुरी मूल नाम अग्रहारपुरी से निकला हुआ है।

शिव को समर्पित है ये स्‍थान

हालांकि इस स्‍थान पर हिन्दू धर्म के अनेक देवी देवताओं कि मूर्तियां हैं, लेकिन विशेष रूप से ये शिव को समर्पित हैं। यहां भगवान शंकर की 9 बड़ी-बड़ी मूर्तियां हैं जो शंकर के विभिन्न रूपों और क्रियाओं को दिखाती हैं। इनमें से एक त्रिमूर्ति शिव प्रतिमा सबसे आकर्षक है। यह मूर्ति करीब 23 से 24 फीट लंबी और 17 फीट ऊंची बताई जाती है। इस मूर्ति में भोलेनाथ के तीन रूपों को दर्शाया गया है। 

अपनी विशेषता के चलते बनीं विश्‍व धरोहर

शिव के इन अद्भुत रूपों के दर्शन होने के कारण लोग इन गुफाओं को 'टैम्‍पल केव्‍स' भी कहते हैं और इसीलिए एलीफेंटा की मूर्तियां सबसे अच्छी और विशेष मानी जाती हैं। यहां पर शिव-पार्वती के विवाह का भी सुंदर चित्रण किया गया है। यही खासियतें हैं जिनके चलते 1986 में यूनेस्को ने एलीफेंटा गुफाओं को विश्व धरोहर घोषित कर दिया था। यह पत्‍थरों पर उकेरा गया गुफाओं का मंदिर समूह लगभग 6,000 वर्ग फीट के इलाके में फैला है, जिसमें एक मुख्य कक्ष, दो पार्श्व कक्ष, आंगन और दो अन्‍य मंदिर हैं। ये गुफाएं ठोस चट्टानों से काट कर बनाई गई हैं। बताते हैं कि इन्‍हें नौंवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी तक के सिल्हारा वंश (8100–1260) के राजाओं ने निर्मित करवाया था।


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