48 साल बाद भोपाल के माथे से हटेगा कचरे का कलंक, पढ़ें- क्या है मामला
आठ लाख टन कचरे का 25 मीटर ऊंचा पहाड़ था कचरे से रोज बन रही 150 टन खाद। नवंबर अंत तक होगा 20 हजार टन बचे कचरे का निष्पादन - 21 एकड़ की बेशकीमती जमीन का होगा व्यावसायिक उपयोग।
भोपाल, जेएनएन। मध्य प्रदेश के भोपाल का भानपुर इलाका अगले माह पूरी तरह कचरा मुक्त हो जाएगा। यहां 48 साल तक लगातार शहर का कचरा फेंका गया था। 25 मीटर तक ऊंचे कचरे के कई पहाड़ अब यहां मैदान में तब्दील हो चुके हैं। जनवरी 2018 तक स्थिति यह थी कि प्रदूषण और बदबू के चलते इलाके में रहना तो मुश्किल था ही, यहां की बदनामी के चलते बेटे-बेटियों की शादियां तय करने में दिक्कत आ रही थी। करीब ढाई साल से 24 घंटे चल रहे कचरा निष्पादन से भोपाल के माथे से यह कलंक मिटने जा रहा है।
इससे जहां नगर निगम को करीब 21 एकड़ बेशकीमती जमीन मिलेगी वहीं भानपुर से लगे आसपास के दर्जनों रहवासी इलाकों के लोगों को बदबू, प्रदूषण और संक्रमण के खतरे जैसी तमाम समस्याओं से मुक्ति मिल जाएगी। भानपुर में वर्ष 1970 से जनवरी 2018 तक लगातार शहर का कचरा नगर निगम द्वारा फेंका गया। इससे यहां करीब आठ लाख टन कचरे के कई ऊंचे-ऊंचे पहाड़ खड़े हो गए थे। जनवरी 2018 में एनजीटी के आदेश के बाद यहां कचरा फेंकना बंद किया गया।
आदमपुर में कचरा निष्पादन संयंत्र के साथ नया क्षेत्र तैयार किया गया। वहीं भानपुर में जनवरी 2018 में ही कचरा निष्पादन का काम सौराष्ट्र एन्वायरो प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को सौंपा गया। 52 करोड़ के इस कार्य में कंपनी ने संयंत्र लगाकर 24 घंटे कचरे का निष्पादन शुरू किया। नगर निगम आयुक्त वीएस चौधरी कोलसानी ने बताया कि करीब 500 टन कचरा निष्पादित कर अब तक 31 एकड़ जमीन कचरा मुक्त की जा चुकी है वहीं पांच एकड़ भूमि पर पड़ा करीब 20 हजार टन कचरा 30 नवंबर तक खत्म कर दिया जाएगा।
जमीन का होगा व्यावसायिक उपयोग निष्पादन कंपनी कुल 36 एकड़ में से 21.03 एकड़ खाली जमीन निगम प्रशासन को सौंपेगी। नगर निगम की इस भूमि के व्यावसायिक उपयोग की योजना है। हालांकि इससे पहले नगर निगम यहां ओपन ग्रीन स्पेस व अन्य निर्माण संबंधित योजना भी बना चुका है। ऐसे हो रहा कचरे का निष्पादन - कचरे को पहले सुखाया गया। - प्लास्टिक व अन्य कचरा अलग-अलग किया गया। - प्लास्टिक व पॉलीथिन के बड़े-बड़े ब्रिक्स बनाकर जबलपुर के वेस्ट टू एनर्जी प्लांट को भेजे गए। - अन्य कचरे से प्रतिदिन करीब 150 टन जैविक खाद तैयार की जा रही है। यह मुफ्त में वितरित की जा रही है। कचरे के दुष्प्रभावों पर भी होगा अध्ययन 48 साल तक यहां फेंके गए कचरे का क्षेत्र के भूजल पर सबसे ज्यादा असर हुआ। पर्यावरणविद डा. सुभाष पांडे ने पांच साल पहले बताया था कि यहां से लगे क्षेत्र में भूमिगत जल पीने योग्य ही नहीं बचा। लोग कई बीमारियों के शिकार हुए। अब नगरीय प्रशासन इन तथ्यों पर अध्ययन कराएगा।