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RTI को बीता पूरा डेढ़ दशक, दो लाख से अधिक मामले हैं लंबित, कुछ जगह नहीं हुई आयुक्‍तों की नियुक्ति

सूचना का अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं का अंबार बढ़ता ही जा रहा है। कई जगहों पर सूचना आयुक्‍त ही नहीं है। मौजूदा समय में कर्मियों की कमी की वजह से करीब दो लाख से अधिक मामले लंबित हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 12 Oct 2020 03:07 PM (IST)Updated: Mon, 12 Oct 2020 03:07 PM (IST)
RTI  को बीता पूरा डेढ़ दशक, दो लाख से अधिक मामले हैं लंबित, कुछ जगह नहीं हुई आयुक्‍तों की नियुक्ति
आरटीआई को लगू हुए हो गए पूरे 15 वर्ष

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। भारत में सूचना के अधिकार को लागू हुए आज पूरे 15 वर्ष बीत चुके हैं। इस दौरान कई जानकारियां लोगों द्वारा मांगी गई और कई दी गईं। हालांकि अब भी दो लाख से अधिक मामले अब भी लंबित हैं। इससे भी अफसोस की बात है कि कई जगहों पर सूचना आयुक्‍त ही नहीं है। अगस्‍त 2020 से मुख्‍य सूचना आयुक्‍त का पद भी खाली ही है। मौजूदा समय में मुख्‍य सूचना आयुक्‍त या चीफ इंफॉर्मेशन कमीशन में पांच आयुक्‍तों की नियुक्ति नहीं हो सकी है। वहीं सूचना का अधिकार के तहत मांगी जाने वाली सूचनाओ करअंबरी लगातार बढ़ रहा है। क आंकड़े के मुताबिक 1 अप्रैल 2019 से लेकर3 31 जुलाई 2020 तक देश में करीब दो लाख मामले निपटाए गए। गौरतलब है कि 15 जून 2005 को भारत में सूचना का अधिकार कानून (Right To Information) को अधिनियमित किया गया और 12 अक्टूबर 2005 को सम्पूर्ण धाराओं के साथ लागू किया गया था। लेकिन कानून के दायरे में राष्ट्रीय सुरक्षा के विषय पर कोई जानकारी साझा नहीं की जा सकती है।

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इस कानून से उलट से अंग्रेजों ने 1923 में एक कानून बनाया था जिसका नाम था शासकीय गोपनीयता अधिनियम। इसके तहत वो किसी भी तरह की सूचना को गोपनीय करार दे सकती थी। आपको हैरत होगी कि जब भारत के आजाद होने के बाद देश का नया संविधान लागू हुआ था तब उसमें सूचना के अधिकार का कोई जिक्र नहीं था। इसमें अंग्रेजों का बनाए गए शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 को भी जस का तस रखा गया था। जहां तक सूचना के अधिकार के प्रति सजगता की बात है तो इसकी शुरुआत 1975 में उत्तर प्रदेश सरकार बनाम राज नारायण से हुई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में लोक प्राधिकारियों द्वारा सार्वजनिक कार्यों का ब्यौरा जनता को प्रदान करने की व्यवस्था दी। उसके इस निर्णय ने नागरिकों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दायरा बढ़ाकर सूचना के अधिकार को शामिल कर दिया। इसके बाद वर्ष 1982 में द्वितीय प्रेस आयोग ने शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 की विवादास्पद धारा 5 और वर्ष 2006 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में गठित द्वितीय प्रशासनिक आयोग ने इस कानून को निरस्त करने का सिफारिश की थी।

राजस्‍थान में सबसे पहले सूचना का अधिकार लागू करने की मांग सुनाई दी। 1989 में केंद्र की जनता दल सरकार सूचना का अधिकार कानून बनाने का वायदा किया था। इसके बाद 1990 के दशक में मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) ने अरूणा राय की अगुवाई में जनसुनवाई कार्यक्रम शुरू किया। 3 दिसंबर 1989 को तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने संविधान में संशोधन करके सूचना का अधिकार कानून बनाने तथा शासकीय गोपनीयता अधिनियम में संशोधन करने की घोषणा की थी। लेकिन वो इसको लागू नहीं करवा सके। वर्ष 2002 में संसद ने सूचना की स्वतंत्रता विधेयक (फ्रीडम ऑफ इन्फॉरमेशन बिल) पारित किया गया जिसको जनवरी 2003 में राष्ट्रपति की मंजूरी मिली। 12 मई 2005 को सूचना का अधिकार अधिनियम- 2005 संसद में पारित किया गया जिसे 15 जून 2005 को राष्ट्रपति की अनुमति मिली और 12 अक्टूबर 2005 को ये पूरे जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू हो गया। इसी के साथ सूचना की स्वतंत्रता विधेयक 2002 को निरस्त कर दिया गया था।

इसको सबसे पहले 1997 में तमिलनाडु और गोवा ने, वर्ष 2000 में कर्नाटक ने, 2001 में दिल्ली ने, 2002 में असम, मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं महाराष्ट्र ने और 2004 में जम्मू-कश्मीर इसको लागू किया। सूचना का अधिकार के अंतर्गत कार्यों, दस्तावेजों, रिकॉर्डों का निरीक्षण, दस्तावेज या रिकॉर्डों की प्रस्तावना, सारांश, नोट्स व प्रमाणित प्रतियां, सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना, प्रिंट आउट, डिस्क, फ्लॉपी, टेप, वीडियो कैसेटों के रूप में या कोई अन्य इलेक्ट्रानिक रूप में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

पूरी तरह से निजी संस्थाएं इस कानून के दायरे में नहीं आती हैं। जनसूचना अधिकारी को 30-45 दिनों के अंदर सूचना उपलब्‍ध करवानी होती है। अधिकारी द्वारा गलत सूचना देने या सूचना मुहैया करवाने में देरी करने पर 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से 25,000 तक का जुर्माना उसके वेतन में से काटा जा सकता है। यदि लोक सूचना अधिकारी निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना नहीं देते हैं या धारा 8 का गलत इस्तेमाल करते हुए सूचना देने से मना करते हैं, या फिर दी गई सूचना से सन्तुष्ट नहीं होने की स्थिति में 30 दिनों के भीतर सम्बंधित जनसूचना अधिकारी के वरिष्ठ अधिकारी यानि प्रथम अपील अधिकारी के समक्ष प्रथम अपील की जा सकती है। यदि यहां भी आप संतुष्‍ट न हों तो 60 दिनों के अंदर केंद्रीय या राज्य सूचना आयोग अपील की जा सकती है।


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