कोरोना काल में सोशल मीडिया पर सक्रियता से बढ़ा बीमारियों का खतरा, रेडिएशन का पड़ रहा बुरा असर
विश्वविद्यालय ने यह निष्कर्ष लॉकडाउन के पहले और लॉकडाउन के बाद सोशल मीडिया पर लोगों की सक्रियता को लेकर किए गए सर्वे के बाद निकाला है।
संदीप तिवारी, रायपुर। कोरोना संक्रमण काल में लोगों की सोशल मीडिया पर सक्रियता 10 फीसद तक बढ़ गई है। इससे आंख, पेट और दिनचर्या संबंधी कई तरह की बीमारियों का खतरा भी बढ़ गया है। यह दावा किया है पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के लाइफ साइंस विभाग ने। विश्वविद्यालय ने यह निष्कर्ष लॉकडाउन के पहले और लॉकडाउन के बाद सोशल मीडिया पर लोगों की सक्रियता को लेकर किए गए सर्वे के बाद निकाला है।
शोधकर्ता और लाइफ साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. एके पति, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. आरती परगनिहा, शोधार्थी राकेश कुमार स्वेन, सरोजनी मिंज और अनन्या दिवान ने मिलकर इस अध्ययन को पूरा किया है। शोधार्थियों ने लॉकडाउन के पहले और लॉकडाउन के बाद फेसबुक मैसेंजर के पांच समूहों के 2,637 लोगों पर लगातार 16 दिन तक नजर रखी। मोबाइल, लैपटॉप और कम्प्यूटर पर सक्रिय होने से लोगों की जैविक घड़ी के साथ-साथ दिनचर्या में भी बदलाव के संकेत मिले हैं। शोध वेब ऑफ साइंस यूनाइटेड किंगडम के टेलर एंड फ्रांसिस में भी प्रकाशित हुआ है।
रेडिएशन का पड़ रहा बुरा असर
डॉ. एके पति कहते हैं कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी के कारण मानव की जैविक घड़ी लगातार प्रभावित हो रही है। समय पर न सोना, समय पर न जागना, भोजन करने के समय में अनियमितता, तकनीक के जरिए पढ़ाई, मोबाइल और टीवी आदि इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों के रेडिएशन से घिरे रहने के कारण जैविक घड़ी पर बुरा असर पड़ रहा है।
सबसे अधिक खतरा आंखों पर
रायपुर के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. दिनेश मिश्रा बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान लोग फेसबुक, ट्विटर, इंटरनेट की विभिन्न साइट्स, वाट्सएप, कम्प्यूटर, लैपटॉप और टीवी पर काफी ज्यादा समय व्यतीत कर रहे हैं। इसके चलते उनकी आंखों में तनाव बढ़ रहा है। इससे उनकी आंखों में सूखापन, जलन, आंसू आना, चिपचिपापन, आंखें लाल हो जाने सहित कई प्रकार की समस्याएं आ रहीं हैं। इसके अलावा गैजेट्स के जरूरत से ज्यादा उपयोग की वजह से सिरदर्द की समस्या बढ़ रही है और उनके चश्मे का नंबर बढ़ रहा है।
क्या होती है जैविक घड़ी
जिस तरह से समय बताने वाली घड़ी होती है, उसी तरह हमारे शरीर के अंग भी प्रकृति के अनुसार अपने आप को ढाल लेते हैं। जैसे अगर कोई व्यक्ति रोजाना आठ बजे सोता है तो आठ बजे के पहले ही शरीर नींद का संकेत देने लगता है। क्योंकि शरीर ने आठ बजे के समय को सोने के लिए तय कर लिया है। इसे ही जैविक घड़ी कहते हैं।