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    जन आंदोलन में पर्दे के पीछे कौन... लोगो को भड़काने वाले एनजीओ, नेता और फंडिंग करने वाले संगठनों पर होगी कार्रवाई

    Updated: Sun, 07 Dec 2025 06:33 AM (IST)

    अलग-अलग राज्यों के तीन आइपीएस अधिकारियों ने प्रजेंटेशन देकर बताया कि जन-आंदोलन किस तरह चुनौती बन रहे हैं। तमिलनाडु के आइपीएस अधिकारी ई. सुंदरवथनम ने ब ...और पढ़ें

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    तीन अधिकारियों ने जन-आंदोलनों के बदले पैटर्न, चुनौतियां और रोकने के तरीके बताए (सांकेतिक तस्वीर क्रेडिट-एआई)

    जेएनएन, भोपाल। देश के विभिन्न राज्यों में पिछले एक वर्ष में हुए बड़े जन-आंदोलनों को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती माना है। इसी कारण एक सप्ताह पहले रायपुर में हुई डीजीपी-आइजी कान्फ्रेंस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में लंबी चर्चा हुई।

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    तीन आइपीएस अधिकारियों ने प्रजेंटेशन दी

    अलग-अलग राज्यों के तीन आइपीएस अधिकारियों ने प्रजेंटेशन देकर बताया कि जन-आंदोलन किस तरह चुनौती बन रहे हैं। तमिलनाडु के आइपीएस अधिकारी ई. सुंदरवथनम ने बताया कि उनके राज्य में मछुआरों की आड़ में आंदोलन कर रहे कुछ लोग सुरक्षा के लिए खतरा बन रहे थे।

    इसमें यह बताया गया कि आंदोलन करने वालों के पीछे एनजीओ, नेता, दबाव समूह या कौन लोग हैं, कहां से फंडिंग आ रही है, उनके क्या हित हैं, इस पर पुलिस को खुफिया जानकारी रखकर कार्रवाई करनी चाहिए।

    किसानों ने ट्रैक्टर को हथियार के रूप में उपयोग किया

    इसी तरह, गुजरात में मतांतरण के मुद्दे पर हुए जन-आंदोलन को केस स्टडी के रूप में वहां के एक वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी ने प्रस्तुत किया। पंजाब के किसानों के आंदोलन का उदाहरण देकर वहां के एक अधिकारी ने बताया कि किसानों ने ट्रैक्टर को हथियार के रूप में उपयोग किया।

    कुल मिलाकर तीनों अधिकारियों द्वारा दिए प्रजेंटेशन का निष्कर्ष यही रहा कि जन-आंदोलनों के नाम पर जनता की आड़ में कोई और अपनी रोटी सेक रहा है। अधिकारियों ने यह भी बताया कि जन-आंदोलनों के बदले तरीके बड़ी चुनौती हैं और उनसे निपटने के लिए रणनीति के साथ काम करना होगा।

    इन आंदोलनों के लिए वित्तीय मदद कौन कर रहा है?

    इस बात पर भी जोर दिया गया है कि इन आंदोलनों के लिए वित्तीय मदद कौन कर रहा है। दूसरे देश से तो इन्हें मदद नहीं मिल रही है। मिल रही तो उस देश से भारत के रिश्ते कैसे हैं? ये सब देखने का मतलब यह है कि विदेशी ताकतें तो भारत की आंतरिक सुरक्षा को आस्थिर नहीं कर रही हैं।

    समस्या न बन जाएं आंदोलन

    देश में माओवादी समस्या जैसी दिखती है वैसी नहीं है। केंद्र व राज्यों की पुलिस की खुफिया जानकारी के अनुसार इसके पीछे बड़ी ताकतें हैं, जो इस आंदोलन का हवा दे रही हैं। गरीब और कम पढ़े-लिखे लेागों को बरगलाकर उन्हें देश विरोधी गतिविधियों में धकेल रही हैं।

    मप्र में भी जनआंदोलन बन चुके हैं चुनौती

    10 वर्ष पहले प्रदेश में किसानों का बड़ा आंदोलन भोपाल में हुआ। किसानों ने ट्रैक्टर ट्राली से पूरा भोपाल जाम कर दिया था। सरकार के साथ कई स्तर की बातचीत के बाद आंदोलन समाप्त हुआ। सामने आया था कि किसानों के पीछे कुछ राजनीतिक लोग भी हैं।

    लगभग आठ वर्ष पहले गैस त्रासदी की बरसी पर गैस पीड़ित संगठनों ने प्रदर्शन के दौरान ट्रेनें रोक दीं। पथराव में आइपीएस अधिकारी अभय सिंह की आंख में चोट लगी थी। पुलिस की जांच में सामने आया था कि कुछ गैर सरकारी संगठन भी इसके पीछे हैं।