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फर्जी पासपोर्ट मामले में अबू सलेम को जमानत

लखनऊ [जासं] फर्जी पासपोर्ट मामले में वर्ष 200

By Edited By: Published: Wed, 20 Mar 2013 09:10 PM (IST)Updated: Wed, 20 Mar 2013 10:15 PM (IST)
फर्जी पासपोर्ट मामले में अबू सलेम को जमानत

लखनऊ [जासं] फर्जी पासपोर्ट मामले में वर्ष 2009 से जेल में निरुद्ध अंतरराष्ट्रीय माफिया अबू सलेम को विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट [सीबीआइ] नीलकांत मणि त्रिपाठी ने सशर्त जमानत पर रिहा किए जाने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा है कि अभियुक्त अबू सलेम द्वारा पचास-पचास हजार रुपये की दो जमानत एवं इसी धनराशि का स्वयं का मुचलका तथा इस शर्त का अनुबंध पत्र कि वह जमानत पर छोड़े जाने के बाद देश छोड़कर बाहर नहीं जाएगा, देगा। इसके बाद उसे जमानत पर रिहा कर दिया जाए।

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मामले में सीबीआइ की ओर से कहा गया था कि अभियुक्त शातिर किस्म का अपराध है तथा व मुंबई में श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट में शामिल रहा है। इसमें 12 मार्च 1993 को लगभग 257 व्यक्तियों की मौत हो गई थी तथा 713 व्यक्ति घायल हुए थे एवं लगभग 27 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ था। इसके बाद अभियुक्त फर्जी पासपोर्ट के जरिए भारत से भाग गया था। काफी प्रयास के बाद 11 नवंबर 2005 को उसको पुर्तगाल से प्रत्यर्पण संधि करके भारत लाया गया था।

बचाव पक्ष की ओर से कहा गया कि अभियुक्त को तीन अन्य मामलों में दिल्ली की अदालतों से जमानत पर छोड़े जाने का आदेश दिया जा चुका है। इसके अलावा वह जब से भारत आया है तब से उसके आचरण को देखते हुए जमानत पर रिहा किया जाए। यहां उसका स्थाई निवास है तथा उसके भागने की कोई आशंका नहीं है। सीबीआइ का तर्क था कि अभियुक्त का आचरण जमानत का आधार नहीं है। अभियुक्त को पूर्व में भगोड़ा घोषित किया जा चुका है। यदि उसे इस मामले में जमानत दी गई तो वह देश छोड़कर भाग जाएगा। अभियुक्त कानून का पालन करने वाला नहीं है। वह देश छोड़कर भाग चुका है तथा प्रत्यर्पण के आधार पर उसे भारत लाया गया है।

बचाव पक्ष की ओर से पुन: कहा गया कि अभियुक्त के कई मामलों की कार्यवाही उच्चतम न्यायालय द्वारा तथा उच्च न्यायालय आंध्र प्रदेश द्वारा स्थगित कर दी गई है। इसके अलावा अभियुक्त की प्रत्यर्पण संधि पुर्तगाल के सर्वोच्च न्यायालय तथा संवैधानिकों द्वारा खारिज कर दी गई है जिसके आधार पर पुर्तगाल की सरकार अभियुक्त को भारत से वापस मांगने के लिए औपचारिक प्रार्थनापत्र दे सकती है। अदालत ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति अपराध की अधिकतम सजा का आधा न्यायिक हिरासत में बिता चुका है तो उसे जमानत पर रिहा कर देना चाहिए। अपराध की अवधि सात वर्ष है तथा वह साढ़े तीन वर्ष से अधिक समय से जेल में है।

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