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बिहार का एक गांव जो 43 बार बाढ़ में बहा और फिर बसा, कम नहीं हुआ ग्रामीणों का हौसला

गांव के सबसे बुजुर्ग 85 वर्षीय ब्रह्मदेव सहनी कहते हैं कि वह अब तक 50 बार बाढ़ का कहर देख चुके हैं। 20 बार तो अपना घर बना चुके हैं। ग्रामीण सत्यनारायण सहनी कहते हैं कि बागमती की तबाही के चलते गांव में कोई पक्का घर नहीं बनाता।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 06:05 PM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 06:05 PM (IST)
बिहार का एक गांव जो 43 बार बाढ़ में बहा और फिर बसा, कम नहीं हुआ ग्रामीणों का हौसला
बीते 87 साल में 43 बार यह गांव उजड़ चुका है।

 नीरज, शिवहर। यह कहानी नरकटिया के ग्रामीणों की जिजीविषा और सबकुछ खोकर फिर से खड़ा होने की जीवटता की है। बागमती की बाढ़ से उजड़ना उनकी नियति है तो पुरुषार्थ से फिर गांव को आबाद करना कर्म है। बीते 87 साल में 43 बार यह गांव उजड़ चुका है। इसके बावजूद ग्रामीणों ने हार नहीं मानी है। इस बार भी यही स्थिति है। बेघर हो चुके ग्रामीण बरसात बीत जाने का इंतजार कर रहे हैं। उजड़ गया गांव एक बार फिर आबाद होगा।

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गांव में तीन सौ घर, आबादी डेढ़ हजार

बिहार के शिवहर जिले के पिपराही प्रखंड की बेलवा पंचायत स्थित नरकटिया गांव में 300 घर हैं। आबादी तकरीबन डेढ़ हजार है। यह गांव कभी बाढ़ की तबाही से दूर था, लेकिन वर्ष 1934 में आए भूकंप के चलते दो किलोमीटर दूर बहने वाली बागमती की धारा मुड़कर गांव के पास पहुंच गई। उस साल बरसात में पहली बार बागमती ने तबाही मचाई। उसके बाद साल दो साल बाद तबाही नियति बन गई।

50 बार देख चुके बाढ़ का कहर

गांव के सबसे बुजुर्ग 85 वर्षीय ब्रह्मदेव सहनी कहते हैं कि वह अब तक 50 बार बाढ़ का कहर देख चुके हैं। 20 बार तो अपना घर बना चुके हैं। ग्रामीण सत्यनारायण सहनी कहते हैं कि बागमती की तबाही के चलते गांव में कोई पक्का घर नहीं बनाता। महज 10 पक्के मकान बने हैं। बरसात शुरू होने से पहले अधिकतर घरों की महिलाएं बच्चों को लेकर रिश्तेदारों के घर चली जाती हैं।

बरसात में बीमार को अस्पताल पहुंचाना काफी मुश्किल होता है। रामचंद्र मांझी बताते हैं कि पिछले साल बागमती के कटाव में 47 घर बह गए थे। सभी कच्चे घर गिर गए थे। इस बार पहली जुलाई को बाढ़ में 50 घर बह गए। बहुत से घर गिर गए हैं। लोग प्लास्टिक टांगकर और मचान बनाकर रह रहे हैं। बरसात के बाद सितंबर में ग्रामीण फिर से घर बनाने में जुट जाएंगे।

बदलता रहता है गांव का नक्शा

दवा व्यवसायी मनोज कुमार की आधी से अधिक जमीन समेत घर बागमती की धारा में विलीन हो चुका है। कहते हैं कि बागमती कब धारा बदल ले और किसके घर को बहाकर ले जाए, कहना मुश्किल है। इसके बाद भी हम हार मानने वालों में नहीं हैं। नदी से कोई शिकवा नहीं है। शिकायत व्यवस्था से है। इस गांव में एक दशक से कोई अधिकारी नहीं आया। बाढ़ के दौरान बांध से अधिकारी जायजा लेकर चले जाते हैं। मुखिया कमलेश पासवान का कहना है कि बाढ़ से उजडऩे के बाद ग्रामीण दूसरी जगह घर बनाते हैं। इस कारण गांव का नक्शा बदलता रहता है। इसी के चलते हर घर नल का जल, सड़क और शौचालय जैसी सुविधाओं का लाभ इस गांव को नहीं मिल सका है। बिजली की सुविधा है।

नरकटिया को बाढ़ से बचाने के लिए बेलवाघाट पर डैम बन रहा है। इसके जरिए बागमती के पानी को रोककर उसकी पुरानी धारा में डिस्चार्ज किया जाएगा। निर्माण वर्ष 2020 में ही पूरा करना था, लेकिन बाढ़ की वजह से कार्य प्रभावित हुआ है। इसे जल्द पूरा किया जाएगा।

-सज्जन राजशेखर, जिलाधिकारी


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