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Jaihind: ‘आत्मनिर्भरता की राह’ गढ़ने में जुटा एक गांव, हर कोई दे रहा अपने हिस्से का योगदान

विकास की राह में पड़े रोड़े हटा गांव तक तीन किमी लंबी सड़क बनाने को पसीना बहा रहा मप्र के बैतूल का गांव।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 10 Aug 2020 01:10 PM (IST)Updated: Mon, 10 Aug 2020 01:11 PM (IST)
Jaihind: ‘आत्मनिर्भरता की राह’ गढ़ने में जुटा एक गांव, हर कोई दे रहा अपने हिस्से का योगदान
Jaihind: ‘आत्मनिर्भरता की राह’ गढ़ने में जुटा एक गांव, हर कोई दे रहा अपने हिस्से का योगदान

नवदुनिया, उत्तम मालवीय। ‘ग्राम स्वराज की मेरी कल्पना है कि यहां हर व्यक्ति अपने आप में आत्मनिर्भर होगा और यह तंत्र अपनी सभी आवश्यकताएं स्वयं पूरी कर सकेगा...।’ मप्र के बैतूल जिले का मलियाढाना गांव यह भले ही नहीं जानता कि महात्मा गांधी ने ग्राम विकास की परिभाषा इस रूप में दी, किंतु वह उसी आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने को दृढ़संकल्पित है, जो गांधी ने कही और मोदी कह रहे हैं।

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जिस देश ने कृषि आधारित अर्थव्यवस्था से शुरुआत कर आर्थिक महाशक्ति बनने तक की लंबी यात्रा तय की है, वहां स्वदेशी, स्वराज और आत्मनिर्भरता के महामंत्र जड़ों तक गहरे समाए हुए हैं। ये आज भी प्रासंगिक हैं और आगे भी रहेंगे। मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल बैतूल जिले का गांव मलियाढाना इन दिनों दृढ़संकल्पित हो तीन किलोमीटर लंबी सड़क बनाने में जुटा हुआ है, जो उसे आत्मनिर्भर बनाकर विकास की मुख्यधारा से जोड़ सकती है।

संकल्प से सिद्धी प्राप्त करने की यह ललक गांव के हर व्यक्ति के चेहरे पर पढ़ी जा सकती है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, हर कोई इस सड़क को गढ़ने में अपने हिस्से का पसीना बहा रहा है। इंसानी जज्बे और जुनून की मिसाल भी यहां देखी जा सकती है। काम आसान नहीं है। तीन किलोमीटर का पगडंडीनुमा यह हिस्सा, जो गांव का पहुंच मार्ग है, बेहद दुरूह है। गांव वालों ने तय किया है कि इसे सुव्यवस्थित सड़क में बदल देंगे। इसके लिए जमीन को समतल कर चुके हैं। पहाड़ से बड़ी-बड़ी चट्टानें तोड़कर, छोटे पत्थरों में बदल समतल पर बिछा रहे हैं।

बैतूल जिले के भीमपुर विकासखंड की ग्राम पंचायत चूनालोहमा का यह गांव ताप्ती नदी के किनारे बसा हुआ है। चूनालोहमा से मलियाढाना पहुंचने के लिए कोई व्यवस्थित रास्ता नहीं है। ऐसे में गांव में रहने वाले 600 लोग पहाड़ी के किनारे बनी पगडंडी से होकर मुख्य मार्ग तक पहुंचते हैं। बीमार व्यक्तियों को कंधे पर बैठाकर मुख्य मार्ग तक लेकर आते हैं। गर्भवती महिलाओं के साथ भी कुछ ऐसी ही स्थिति रहती है। जब किसी ने सुनी नहीं, तो सभी ने तय किया कि अपनी राह खुद बनाएंगे। करीब एक किलोमीटर का रास्ता बना चुके हैं और शेष हिस्से के लिए दिनभर मिलकर मेहनत कर रहे हैं। ग्रामीण भले ही पक्की सड़क न बना सकें, लेकिन पत्थरों से पटा सुव्यवस्थित रास्ता बनने से उनकी मुश्किलें जरूर कम होंगी।

चंदा करके खरीदे हथौड़े और सब्बल: गांव के दसरू बताते हैं, जब समस्या बढ़ती गई, तब ग्रामीणों ने एक बैठक की और खुद सड़क बनाने का फैसला किया। इसके बाद हम गांव वालों ने मिलकर ही सड़क बनाने के लिए जरूरी औजार खरीदने को चंदा किया। पत्थर तोड़ने के लिए हथौड़े, सब्बल, बल्लियां खरीदीं और काम शुरू कर दिया। पत्थरों को छोटे टुकड़ों में तोड़ने में बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सहयोग कर रहे हैं।

पंच जंगल सिंग भलावी ने बताया कि हमने मिलकर बड़ी-बड़ी चट्टानों को तोड़कर एक किलोमीटर लंबी सड़क तैयार कर ली है। दो किलोमीटर का काम पूरा होने के बाद गांव से चूनालोहमा तक आसानी से आ जा सकेंगे। पंचायत के माध्यम से कई बार प्रस्ताव बनाकर भेजे गए थे, लेकिन सड़क नहीं बनी। सड़क नहीं होने से आज तक कोई जनप्रतिनिधि गांव में नहीं पहुंचा है।


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