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जानिए, किडनी चोरी होने के बाद कैसे बदल गई रिक्शा चालक की जिंदगी, आज है करोड़पति

अकरम बताते हैं कि उन्हें दो दिन दिल्ली में गुप्ता ने अपने साथ रखा। इसके बाद वह उन्हें जालंधर ले गया। यहां उन्हें माली का काम मिला।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Sat, 24 Mar 2018 06:52 PM (IST)Updated: Sun, 25 Mar 2018 01:39 PM (IST)
जानिए, किडनी चोरी होने के बाद कैसे बदल गई रिक्शा चालक की जिंदगी, आज है करोड़पति
जानिए, किडनी चोरी होने के बाद कैसे बदल गई रिक्शा चालक की जिंदगी, आज है करोड़पति

नई दिल्ली (दृगराज मद्धेशिया)। मूल रूप से बरेली, उत्तरप्रदेश के रहने वाले अकरम राजा खान के पूर्वज कभी जमींदार थे, लेकिन आजादी के बाद जमींदारी नहीं रही। अकरम का बचपन गरीबी में बीता। परिवार की हालत को बेहतर करने के लिए 1998 में उन्होंने लखनऊ का रख किया। किराये पर रिक्शा लेकर चलाने लगे। पेट पालने लायक कमाई होने लगी।

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लखनऊ से दिल्ली

13 मार्च 1998 को होली थी और अकरम अपना रिक्शा चारबाग रेलवे स्टेशन के सामने खडा कर सवारी का इंतजार कर रहे थे। इतने में सूटबूट पहने एक आदमी आया और लालबाग चलने को कहा। यात्रा के दौरान उसने बताया कि उसका नाम आरसी गुप्ता है और वह बडा सरकारी अफसर है। उसने अकरम से कहा कि यदि वह उसके साथ दिल्ली चले तो सरकारी नौकरी लगवा देगा। अकरम की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। एक तो सरकारी नौकरी ऊपर से पगार चार हजार रुपए महीना। अगले ही दिन वह उस अफसर के साथ दिल्ली रवाना हो गए।

दिल्ली से जालंधर

अकरम बताते हैं कि उन्हें दो दिन दिल्ली में गुप्ता ने अपने साथ रखा। इसके बाद वह उन्हें जालंधर ले गया। यहां उन्हें माली का काम मिला। इस बीच गुप्ता ने बताया कि सरकारी नौकरी के लिए मेडिकल फिटनेस जरूरी है और इसके लिए बहुत से टेस्ट कराने पडेंगे। सवाल नौकरी का था तो वह सहर्ष तैयार हो गए। अकरम के मेडिकल टेस्ट शुरू हो गए।

हो गई किडनी की चोरी

26 अप्रैल 1998 को गुर्दे में पथरी बताकर अकरम का ऑपरेशन किया गया। अकरम के अनुसार अस्पताल की एक नर्स ने उनकी तारीफ करते हुए कहा, आपने गुर्दा दान करके गुप्ताजी की पत्नी की जान बचा ली। यह सुनकर अकरम सन्न रह गए। गुप्ता ने उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कराकर अपने घर में नजरबंद कर लिया। सितंबर 1998 में किसी तरह वहां से निकलने में सफल हो गए।

इंसाफ की लडाई से अभिनेता तक

अकरम ने इंसाफ के लिए लडाई लडने और किडनी चोरों को उनके अंजाम तक पहुंचाने की ठान ली। लेकिन इसके लिए जीना जरूरी था। लखनऊ में काम की तलाश के दौरान नाट्यकर्मी रूपरेखा वर्मा के संपर्क में आए। उन्होंने नुक्कड नाटकों में काम करने का मौका दिया। इसी दौरान नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से नीलम गुप्ता और फिल्म अभिनेता अमोल पालेकर ने अकरम की प्रतिभा पहचानी और उन्हें दिल्ली बुलाया। नीलम ने दिल्ली में न केवल अकरम को अभिनय की बारीकियां सिखाई बल्कि भाषा व रहन-सहन का सलीका भी सुधारा। इसके बाद उनको कई धारावाहिकों में छोटे मोटे रोल मिले।

अभिनेता से लेखक

इसी दौरान अकरम की मुलाकात समाज सेविका शबनम हाशमी से हुई। हाशमी की मदद से उनकी आपबीती हिंदी-अंग्रेजी अखबारों की सुर्खियां बनी। इसी दौरान उनकी मुलाकात दिल्ली के गोल डाकखाना चर्च में आर्क बिशप से हुई। उन्होंने अकरम को एक वकील मेरी सकारिया से मिलाया और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की पहल पर लखनऊ में गुर्दा चोरों पर केस दर्ज हुआ। सकारिया की प्रेरणा और नीलम की मदद से अकरम ने 'दे स्टोल माय किडनी' शीर्षक से एक किताब लिखी। तीन भाषाओं में छपकर यह किताब बाजार में आई।

और जा पहुंचे स्विट्जरलैंड

दिल्ली में एक दिन अकरम की मुलाकात स्पेन के राजदूत से हो गई। उन्होंने अकरम को स्पेनिश सीखने की सलाह दी। वह स्पेनिश सीखकर उनकी मदद से स्पेन पहुंच गए। वहां पर उन्होंने आगे की पढाई जारी रखी। इसका सारा खर्च ईसाई मिशनरीज उठा रही थी। इसके बाद वह स्विट्जरलैंड गए, जहां एक टीवी चैनल में उन्हें काम मिल गया। अकरम के अनुसार वहां वह बतौर पेइंग गेस्ट एक बुजुर्ग महिला क्रिस्टियन अगाथ के घर में रहने लगे। उनके व्यवहार से खुश होकर अगाथ ने एक भव्य समारोह में उनको अपना दत्तक पुत्र घोषित कर दिया। इसकी वजह से अकरम को वहां की नागरिकता और करोड़ो की संपति मिल गई। इसके बाद अकरम बरेली में बुजुर्गो और बच्चों के लिए एक आश्रम बनवाकर वहां का सारा खर्च उठा रहे हैं।


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