भ्रष्ट जज पर जस्टिस काटजू के एक खुलासे से उठे कई सवाल
अपने दामाद की कथित आय से ज्यादा सम्पत्ति ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन को भी परेशानी में डाल दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू के इस खुलासे से बवाल मचा है कि यूपीए सरकार ने खुद को बचाने के लिए एक सहयोगी दल के दबाव में आकर एक भ्रष्ट जज का प्रमोशन किया था।
जस्टिस काटजू के दावों पर वाद-विवाद जारी है। साथ ही कई सवाल भी उठे हैं। कोई जस्टिस काटजू पर ही अंगुली उठा रहा है तो कोई जजों की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया ही बदलने की वकालत कर रहा है। बहरहाल, यह पहली बार नहीं है जब किसी जज पर सवाल उठाया गया हो। लंबी फेहरिस्त है।
जस्टिस काटजू : खुलासे के वक्त पर साथी जजों को भी शक
जस्टिस काटजू के ताजा खुलासे को लेकर कई तरह के सवाल खड़े किए जा रहे हैं। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि उन्होंने यह बात कहने में 10 साल क्यों लगा दिए? क्या इसके पीछे उनका कोई स्वार्थ है। इस बारे में जब एक टीवी चैनल ने उनसे पूछा तो वे बातचीत बीच में ही छोड़कर चले गए।
ओडिशा हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस इशरत मसरूर कुद्दूसी ने एक वेबसाइट से चर्चा में आरोप लगाया कि जस्टिस काटजू का मकसद केंद्र में बनी नई सरकार से नजदीकी बनाना है।
बकौल जस्टिस कुद्दूसी, यूपीए सरकार ने जस्टिस काटजू को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया का अध्यक्ष बनाया था, जिस पर वो अभी भी तैनात हैं। हो सकता है कि वो इस पद पर बने रहना चाहते हों और इसके लिए एनडीए सरकार को खुश करना चाहते हैं।
हालांकि जस्टिस काटजू पहले भी विवादित बयान दे चुके हैं। एक बार उन्होंने कहा था, अगर कश्मीर समस्या को हल करना है तो भारत और पाकिस्तान को एक होना पड़ेगा। एक अन्य मौके पर उन्होंने 90 फीसदी भारतीयों को मूर्ख करार दे दिया था।
दामाद की आय पर जस्टिस बालकृष्णन से सवाल
अपने दामाद की कथित आय से ज्यादा सम्पत्ति ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन को भी परेशानी में डाल दिया था।
दरअसल, जस्टिस बालाकृष्णन के दामाद श्रीनिजन ने 2006 में एर्नाकुलम की नजाराक्कल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था, उस समय उन्होंने हलफनामे में अपना बैंक बैलेंस महज 25 हजार रूपए बताया था, लेकिन महज चार साल में उनकी दौलत करोड़ों में हो गई।पेशे से वकील श्रीनिजन केरल युवा कांग्रेस के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं।
दिसंबर 2010 में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश वीआर कृष्णा अय्यर ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। जस्टिस अय्यर ने दामाद पर लगे आरोपों की न्यायिक जांच की मांग की थी। आरोप है कि अपने ससुर की हैसियत का इस्तेमाल करते हुए श्रीनिजन ने महज 4 साल में करोड़ों की संपत्ति हासिल की।
जस्टिस दिनाकरन ने नहीं मानी थी सीजेआई की बात
सिक्किम हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य जज जस्टिस दिनाकरन पर 2009 में भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे, जिसके बाद उन्होंने जुलाई 2011 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। दिनाकरन पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया के कई सदस्यों ने आरोप लगाए थे उन्होंने तमिलनाडु में अपने गृहनगर आराकोनम में बड़ी संपत्ति जमा की है। मामला सामने आने के बाद तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने उन्हें छुट्टी पर चले जाने को कहा, लेकिन दिनाकरन ने उनकी बात नहीं मानी।
इसके बाद उनका ट्रांसफर सिक्किम हाईकोर्ट कर दिया गया। उन्हें हटाने के लिए 2010 में राज्यसभा में प्रस्ताव भी लाया गया। तत्कालीन राज्यसभा अध्यक्ष हामिद अंसारी ने आरोपों की जांच करने के लिए तीन जजों की एक पैनल गठित की। दिनाकरन ने महाभियोग और बदनामी से बचने के लिए अपने कदम पीछे खींच लिए।
जस्टिस सेन पहले जज जिन पर चला था महाभियोग
जस्टिस सौमित्र सेन देश के पहले ऐसे जज हैं जिन पर राशि के दुरुपयोग के लिए राज्यसभा में महाभियोग चलाया गया। कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व जज पर स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड और भारत के शिपिंग कार्पोरेशन के बीच 1993 में चले मुकदमे में रिसिवर रखने के लिए 32 लाख रुपए देने का आरोप लगा।
इस मामले की जांच के लिए बनी तीन जजों की पैनल ने 2008 में सेन को दोषी पाया। 2008 में सीजेआई केजी बालकृष्णन ने सेन पर महाभियोग चलाने के लिए प्रधानमंत्री की सिफारिश मांगी। सेन पर महाभियोग चलाने के लिए अगस्त 2011 में राज्यसभा में प्रस्ताव आया, जिसे बहुमत से पारित कर दिया गया। इसके पहले कि महाभियोग का प्रस्ताव लोकसभा में जाता, सेन ने इस्तीफा दे दिया।
जस्टिस निर्मलजीत यादव के घर पर पहुंच गई थी रिश्वत
13 अगस्त 2008 की सुबह जब पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की जज निर्मलजीत कौर उठीं तो उन्हें अपने घर के दरवाजे पर 15 लाख रुपए रखे मिले। जांच में पता चला कि यह पैसा दूसरी जज निर्मल यादव के लिए भेजा गया था। जिसके बाद उन्हें भ्रष्टाजचार निरोधी कानून के तहत 2011 में गिरफ्तार कर लिया गया। जांच सीबीआई को सौंप दी गई। सीबीआई ने यादव और चार अन्य लोगों के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र रचने तथा भ्रष्टाचार का मामला दर्ज कर लिया। केस दर्ज होने के एक दिन पहले ही यादव उत्तराखंड हाईकोर्ट जज पद से सेवानिवृत्त हुई थीं।
...लेकिन वर्तमान सीजेआई ने जगाई उम्मीद, कहा-
हम जज अलग मिट्टी के बने होते हैं...न्यायापालिका से विश्वास नहीं उठने देंगे
सुप्रीम कोर्ट में उस महिला इंटर्न (प्रशिक्षु) की याचिका पर सुनवाई चल रही है, जिसमें उसने जस्टिस स्वतंत्र कुमार के खिलाफ शारीरिक शोषण का आरोप लगाया है।
सुनवाई के दौरान इंटर्न ने कहा है कि यह बराबरी की लड़ाई नहीं है। मेरा मुकाबला देश के एक प्रभावी जज से है। मैं एक अजीब स्थिति में फंस गई हूं। दिल्ली हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई होगी तो मुझे न्याय नहीं मिलेगा। केस किसी अन्य कोर्ट में ट्रांसफर किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट की जिस बेंच के समक्ष यह केस रखा गया, उसकी अध्यक्षता स्वयं चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) आरएम लोढा कर रहे हैं। सोमवार को हुई सुनवाई में उन्होंने कई अच्छी बातें कहीं।
सीजेआई लोढा ने इंटर्न से कहा, कोर्ट को आपकी तरफ से ऐसी टिप्पणी की उम्मीद नहीं थी। हम जज अलग मिट्टी के बने होते हैं, हालांकि कुछ अपवाद भी हैं।
उन्होंने यह भी कहा, जब कोई वकील हमारे सामने खड़ा होता है तो हम सिर्फ उसकी बात सुनते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि सामने कोई छोटा वकील खड़ा है या बड़ा। हम यह सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं कि न्याय हो। हमारी प्राथमिकता है कि न्यायप्रणाली के प्रति लोगों का विश्वास बना रहे।
बेंच ने जस्टिस स्वतंत्र कुमार को चार हफ्तों में अपने जवाब देने को कहा। साथ ही टिप्पणी कि इंटर्न को न केवल न्याय मिलना चाहिए, बल्कि न्याय मिलता हुए दिखना भी चाहिए, लेकिन दोनों पक्षों को पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं होना चाहिए।
इससे पहले 16 जनवरी 2014 में दिल्ली हाई कोर्ट ने इंटर्न की बात सुने बगैर उसे पहली नजर में जस्टिस स्वतंत्र कुमार की मानहानि का दोषी पाया था। साथ ही जस्टिस मनमोहन सिंह ने इंटर्न की शिकायत का हिस्सों को मीडिया प्रकाशन पर भी रोक लगाई थी।
बहरहाल, इंटर्न की वकील इंदिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दलील पेश की कि जस्टिस स्वतंत्र कुमार वर्षों तक उस कोर्ट के जज रहे हैं। उन्होंने यह केस लड़ने के लिए 24 वकीलों की फौज खड़ी की है। इतने तो सुप्रीम कोर्ट के कुल सीनियर वकील ही हैं। इन 24 वकीलों में से कुछ आज सरकार में हैं, जैसे- मुकुल रोहतगी, मनिंदर सिंह, एनके कौल। इससे स्पष्ट है कि जस्टिस स्वतंत्र कुमार कितने ताकतवर हैं।
जयसिंह ने यह भी बताया कि जब अपने केस की सुनवाई के लिए इंटर्न ने वरिष्ठ वकीलों से संपर्क किया तो अधिकांश ने केस लड़ने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वे जस्टिस स्वतंत्र कुमार को बहुत अच्छे से जानते हैं।
जयसिंह के मुताबिक, ऐसे में इंटर्न को लगता है कि संस्थागत पक्षपात से केस जस्टिस स्वतंत्र कुमार के पक्ष में है। इंटर्न बेंगलुरू में रहती और वहीं काम करती है और उसे हर सुनवाई के लिए दिल्ली आना पड़ता है। साथ ही वकीलों का समर्थन भी उसे हासिल नहीं है।
केस अब तक
- 10 जनवरी 2014 – इंटर्न द्वारा जस्टिस स्वतंत्र कुमार पर लगाए गए यौन शोषण के आरोप सार्वजनिक हुए।
- 13 जनवरी 2014 – इंटर्न ने आरोपी जज पर कार्रवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
- 14 जनवरी 2014 – जस्टिस स्वतंत्र कुमार ने जवाब दिया कि यह उनके खिलाफ साजिश है।
- 17 जनवरी 2014 – दिल्ली हाईकोर्ट ने मीडिया को केस से जुड़ी आधिकारिक जानकारी के अलावा अन्य सूचना प्रकाशित करने से रोका।
- 26 मार्च 2014 – फली एस.नरीमन ने मांग की कि जजों के खिलाफ लगने वाले यौनशोषण के आरोपों की जांच के लिए अलग व्यवस्था बनाई जाए।
- 21 जुलाई 2014 – केस को दिल्ली से बाहर ट्रांसफर करने की इंटर्न की याचिका पर जस्टिस स्वतंत्र कुमार को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस।
टाइम लाइन
- 16 नवंबर 1987 – एस. अशोक कुमार की नियुक्ति सीधे तौर पर जिला तथा सत्र जज के रूप में की गई।
- 07 जुलाई 2001 – फ्लायओवर केस में तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि व अन्य के खिलाफ दर्ज केस सबसे पहले जस्टिस कुमार के समक्ष सुनवाई के लिए आए क्योंकि वे चेन्नई के प्रिंसिपल सेशन्स जज थे।
- 03 अप्रैल 2003 – जस्टिस कुमार व सात अन्य जजों को दो साल के कार्यकाल के लिए मद्रास हाईकोर्ट का अतिरिक्त जज नियुक्त किया गया।
- 01 अप्रैल 2005 – सभी आठ जजों का कार्यकाल चार माह के लिए बढ़ाया गया।
- 27 जुलाई 2005 – जस्टिस कुमार को स्थायी जज के रूप में नियुक्त किया गया।
- 03 अगस्त 2005 – सीजेआई लाहोटी ने अतिरिक्त जज के रूप में जस्टिस कुमार का कार्यकाल एक साल बढ़ाया।
- 03 अगस्त 2006 –सीजेआई वायके सभरवाल ने जस्टिस कुमार का कार्यकाल छह माह बढ़ाने की अनुशंसा की।-03 फरवरी 2007 – मद्रास हाईकोर्ट के स्थायी जज नियुक्त किए गए।
- जुलाई 2007 – जस्टिस कुमार को स्थायी जज नियुक्त किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल।
- 24 मार्च 2008 – जस्टिस कुमार का आंध्रप्रदेश हाई कोर्ट में तबादला।
- 17 जुलाई 2009 – जस्टिस कुमार रिटायर हुए।
- 25 अक्टूबर 2009- जस्टिस कुमार का निधन।