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एक आलू में बनेगी पूरे परिवार के लिए सब्जी, चिप्स भी पापड़ जैसे

भोपाल में कृषि वैज्ञानिकों ने तीन साल तक शो करने के बाद सामान्य किस्म के आलू की उन्नत खेती कर चौगुनी पैदावार करने का करिश्मा कर दिखाया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 21 Mar 2018 09:43 AM (IST)Updated: Wed, 21 Mar 2018 04:10 PM (IST)
एक आलू में बनेगी पूरे परिवार के लिए सब्जी, चिप्स भी पापड़ जैसे
एक आलू में बनेगी पूरे परिवार के लिए सब्जी, चिप्स भी पापड़ जैसे

भोपाल (आनंद दुबे)। मप्र के भोपाल में कृषि वैज्ञानिकों ने तीन साल तक शो करने के बाद सामान्य किस्म के आलू की उन्नत खेती कर चौगुनी पैदावार करने का करिश्मा कर दिखाया है। आलू भी एक-एक किलो वजन तक के हुए हैं। इससे जहां एक ही आलू से पूरे परिवार के लिए सब्जी तैयार हो जाएगी, वहीं उसके चिप्स भी पापड़ जैसे बनेंगे। खास बात यह है कि पूरी फसल के दौरान आम खेती से सिंचाई में पचास फीसदी पानी की भी बचत हुई है। जबकि इस आलू की पौष्टिकता और गुणवत्ता में भी कोई कमी नहीं पाई गई है।

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बैरसिया रोड के नबीबाग स्थित केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. केवीएस राव ने बताया कि प्रयोग संस्थान के खेत पर ही किया गया। आलू के बीज के लिए कुफरी बादशाह किस्म का इस्तेमाल किया गया।

इसका बीज 30 से 35 ग्राम वजन का होता है। डॉ. राव ने बताया कि उन्नत खेती के लिए बीज को 60 गुणा 30 सेमी. पर लगाया गया। खेती में पलवार (मंचिंग) तकनीक का इस्तेमाल किया गया। साथ ही टपक तकनीक से सिंचाई की गई। खाद भी तरल बनाने के बाद सिंचाई के साथ ही समय-समय पर दी गई।

क्या है पलवार तकनीक

इस पद्धति में मेढ़ पर आलू बीच के पनपने के साथ पूरी मेढ़ को काली/चमकीली पॉलीथिन से ढंक दिया जाता है। पॉलीथिन में उतने स्थान पर छेद किया जाता है, जहां से पौधा निकलता है। पॉलीथिन के नीचे से ही पतले पाइपों के जरिए एक-एक दिन के अंतराल में टपक वि से सिंचाई (2 लीटर प्रति घंटा) की जाती है। समय-समय पर पानी में मिलाकर ही खाद भी दी जाती है।

60 दिन बाद पलवार हटाने से हुआ करिश्मा

राव ने बताया कि अमूमन रबी सीजन में होने वाली आलू की फसल 100 से 115 दिन में आ जाती है। शो के तहत 60 दिन बाद मेढ़ से पलवार (पॉलीथिन) हटा ली गई। इस कारण मिट्टी के नीचे आलू के कंदों के लिए एक सूक्ष्म वातावरण तैयार हुआ। इससे विकसित कंद को उचित तापमान मिला।

नतीजतन प्रति पौधा कंदों की संख्या तो बढ़ी ही साथ में उनका वजन भी आश्चर्यजनक ढंग से बढ़ा। बिना पलवार तकनीक से एक पौधे में अच्छी किस्म के 5-6 आलू लगते हैं। उनका वजन भी प्रति आलू अधिकतम 250 ग्राम तक होता है, लेकिन पलवार तकनीक से एक पौधे में 10-12 आलू लगे।

इनमें अधिकांश का वजन 500 ग्राम से एक किलो तक निकला। बिना पलवार के आलू की खेती करने पर लागत प्रति हेक्टेयर 83,506 रुपए आती है। पलवार के साथ खेती करने पर लागत प्रति हेक्टेयर 1 लाख 3 हजार 707 रुपए आती है।

इसमें भी यदि चमकीली पलवार का इस्तेमाल किया जाए तो आलू से आय 2,76,293 रुपए की होती है। काली पलवार के साथ यह आय 2,46,293 रुपए होती है। बिना पलवार के प्रति हेक्टेयर आय 1,76,494 रुपए होती है। 


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