शिशु मृत्यु दर को लेकर डराते हैं ये आंकड़े: एक दवा, जो हर साल बचाएगी लाखों बच्चों की जान
मेडिकल साइंस को मिल सकती है डायरिया की नई दवा, विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशन में मेरठ मेडिकल कॉलेज में रिसर्च जारी, शुरुआती नतीजे जगा रहे बड़ी उम्मीद...
मेरठ (संतोष शुक्ल)। भारत में डायरिया की नई दवा को लेकर एक शोध के शुरुआती नतीजे बड़ी उम्मीद जगा रहे हैं। यह दवा हर साल देश के एक लाख से अधिक बच्चों की जान बचा सकती है। डायरिया के हाई रिस्क जोन वाले छह अन्य देश पाकिस्तान, बांग्लादेश, नाइजीरिया, इथोपिया, श्रीलंका और कंबोडिया में भी इस एंटीबायोटिक पर रिसर्च चल रही है। भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का यह प्रोजेक्ट उत्तरप्रदेश के मेरठ मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग में चल रहा है। एक हजार शिशुओं पर ड्रग सेंसिटीविटी टेस्ट सफल रहा तो मेडिकल साइंस को डायरिया की नई दवा मिल जाएगी।
सामने आ सकता है डायरिया रोधी टीका : असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. डीवी सिंह के निर्देशन में डब्ल्यूएचओ के इस प्रोजेक्ट के तहत 0-2 वर्ष उम्र तक के एक हजार शिशुओं पर शोध किया जाना है। अब तक 110 शिशुओं की रिपोर्ट बनाई गई है। बच्चों का वजन, दवा लेने की हिस्ट्री, त्वचा की शुष्कता एवं पोषण समेत कई बिंदुओं पर विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट बनाई जा रही है। इलाज में नई संभावनाओं के लिए कान एवं गले के संक्रमण में प्रयोग की जाने वाली एंटीबॉयोटिक को अब डायरिया के मरीजों पर आजमाया जा रहा है। चिकित्सकों की मानें तो ये दवा शिशुओं की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर वायरल संक्रमण से होने वाले डायरिया को रोक देगी।
डायरिया से सर्वाधिक मौतें : भारत के तमाम इलाकों के भूजल में ई-कोलाई, फीकल कोलीफार्म जैसे घातक सूक्ष्मजीवियों समेत कई अन्य घातक रसायन मिले हैं। खाद्य वस्तुओं में मिलावट, बासी मिठाइयां, ठेलों पर कटे-फटे फल व जूस के सेवन से अमीबिक संक्रमण होने पर भी डायरिया हो जाता है। मलिन बस्तियों के बच्चों में संक्रमण का बड़ा कारण रोटा वायरस भी होता है। शुरुआत में बीमार बच्चे में दस्त, बाद में पानी की कमी, चिड़चिड़ापन, भूख न लगना, आंखों का धंसना, त्वचा की शुष्कता एवं खून की कमी समेत कई लक्षण उभरते हैं। शरीर में सोडियम, पोटेशियम एवं अन्य खनिज कम होने से बेहोशी भी आ सकती है। कुपोषित बच्चों में एनीमिया (खून की कमी) खतरनाक रूप से बढ़ती है।
इसलिए जरूरी है यह दवा
डब्ल्यूएचओ के प्रोजेक्ट के तहत डायरिया से पीड़ित शिशुओं पर एंटीबायोटिक के प्रभाव को लेकर भारत समेत सात देशों में रिसर्च चल रहा है। इस दवा में वायरल संक्रमण रोकने की क्षमता मिली तो ये डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन में आ सकती है, जिसके बाद इसका व्यापक इस्तेमाल किया जा सकेगा। -डॉ. डीवी सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर, मेडिकल कालेज
पांच वर्ष तक के बच्चों की मौत में सबसे बड़े कारक डायरिया और न्यूमोनिया हैं। बच्चों की मौत में इन दोनों बीमारियों की वजह 35 फीसद से ज्यादा है। ज्यादातर मामलों में एंटीबायोटिक देने से बचा जाता है। रिसर्च के शुरुआती नतीजों से लगता है कि यह एंटीबायोटिक बच्चों के लिए वरदान साबित होगी। -डा. अमित उपाध्याय, वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ