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संघ के पूर्व सरकार्यवाह ने पुस्तक लिखी थी अन्ना पर

भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए मजबूत लोकपाल विधयेक बनवाने पर अड़े गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से अपने रिश्तों की हामी भरते हुए असहज महसूस करते हैं। मगर संघ से न सिर्फ वह प्रेरणा लेते रहे हैं, बल्कि संघ भी उनकी समाजसेवा का प्रशंसक रहा है ।

By Edited By: Published: Thu, 29 Dec 2011 06:46 PM (IST)Updated: Thu, 29 Dec 2011 07:03 PM (IST)
संघ के पूर्व सरकार्यवाह ने पुस्तक लिखी थी अन्ना पर

मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी], भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए मजबूत लोकपाल विधयेक बनवाने पर अड़े गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से अपने रिश्तों की हामी भरते हुए असहज महसूस करते हैं। मगर संघ से न सिर्फ वह प्रेरणा लेते रहे हैं, बल्कि संघ भी उनकी समाजसेवा का प्रशंसक रहा है । इसका प्रमाण संघ के एक पूर्व सरकार्यवाह की अन्ना पर लिखी पुस्तक से मिलता है ।

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हाल ही में संघ के पूर्व वरिष्ठ नेता नानाजी देशमुख के साथ अन्ना हजारे के संबंधों को लेकर उन्हें घेरने की कोशिश की गई। इन संबंधों पर अन्ना हजारे की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं आया। उलटे जनलोकपाल आंदोलन में अन्ना के प्रमुख रणनीतिकार अरविंद केजरीवाल मुस्लिम नेताओं के सामने सफाई देते पाए गए। जबकि अन्ना हजारे को आदर्श ग्राम रचना की प्रेरणा नानाजी देशमुख से ही मिली थी और इसके लिए उन्हें कुछ समय भी नानाजी के साथ बिताना पड़ा था।

उल्लेखनीय है कि नानाजी देशमुख पिछली सदी के सातवें दशक में बनी जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव भी रहे और उन्होंने अपनी उम्र के 60 वर्ष पूरे करते ही यह कहते हुए राजनीति से संन्यास ले लिया था कि अब वह अपना जीवन समाजसेवा को समर्पित करना चाहते हैं।

अन्ना हजारे आज भले ही उन नानाजी देशमुख से स्वयं को अलग दिखाने की कोशिश में लगे हों, लेकिन संघ परिवार उनके ग्राम सुधार कार्यो का हमेशा प्रशंसक रहा है। लंबे समय तक संघ में सरकार्यवाह [महासचिव] के रूप में काम कर चुके हो.वे.शेषाद्रि ने तो अन्ना हजारे के ग्राम सुधार की चर्चा सुनकर उनके गांव रालेगणसिद्धि का दौरा भी किया था। वहां अन्ना हजारे से हुई उनकी लंबी बातचीत के आधार पर ही शेषाद्रि ने वहां से लौटकर एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक है 'कर्मयोगी अन्ना हजारे का गांव'। शेषाद्रि ने इस पुस्तक में अन्ना हजारे के गांव को एक ऐसा गांव बताया है, जिसे देखकर रामराज्य की याद आ जाती है । शेषाद्रि की लिखी इस पुस्तक का प्रकाशन संघ से ही जुड़े एक संगठन सेवाभारती ने किया था। इसका दूसरा संस्करण भी संघ की ही एक प्रकाशन संस्था लोकहित प्रकाशन [लखनऊ] ने पिछले अगस्त माह में तब प्रकाशित किया, जब अन्ना दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन कर रहे थे ।

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