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59 साल का यह शख्स 111 बार कर चुका है रक्तदान

रक्तदान को जिंदगी का हिस्सा बना लेने वाले डॉ. अरविंद नेरलवार कहते हैं कि रक्तदान संस्कार की तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ना चाहिए।

By Mangal YadavEdited By: Published: Tue, 12 Feb 2019 09:14 PM (IST)Updated: Tue, 12 Feb 2019 10:45 PM (IST)
59 साल का यह शख्स 111 बार कर चुका है रक्तदान
59 साल का यह शख्स 111 बार कर चुका है रक्तदान

रायपुर, प्रशांत गुप्ता। कविताएं कही जाती हैं- खून का रंग लाल होता है.. इसका कोई मजहब नहीं होता..। हम सभी अच्छे से जानते भी हैं कि एक बोतल खून मौत के मुहाने पर खड़े मरीज को जिंदगी दे सकता है..। लेकिन सवाल जब यह उठे कि क्या आपने कभी रक्तदान किया है, तो सौ में से नब्बे हाथ नहीं उठेंगे। यही वजह है कि हमारे देश में खून बिकता है। उसकी कीमत तय की गई है..। यह कहना है 59 साल के 'ब्लड डोनर मैन' का, जो इस उम्र तक 111 बार रक्तदान कर चुका है।

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रक्तदान को जिंदगी का हिस्सा बना लेने वाले डॉ. अरविंद नेरलवार कहते हैं कि रक्तदान संस्कार की तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ना चाहिए। रायपुर, छत्तीसगढ़ स्थित पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. नेरलवार का परिवार भी रक्तदान में आगे है। अरविंद कहते हैं कि 65 की उम्र के बाद मेडिकल साइंस इजाजत नहीं देता वरना मरते दम तक रक्तदान करता। फिर चेहरे पर सुकून भरा भाव लाते हुए कहते हैं, खैर, कोई बात नहीं। अब भी पांच साल हैं मेरे पास। तब तक 135 तक पहुंच जाऊंगा। मेरा एक ही मकसद है, नई पीढ़ी के अंदर ब्लड डोनेशन को लेकर डर और भ्रांतियां खत्म करना।

इन हालात ने किया प्रेरित

डॉ. नेरलवार 22 साल की उम्र में मेडिकल कॉलेज से इंटर्नशिप कर रहे थे। वाडरें में ड्यूटी लगती थी। देखते थे कि मरीजों को एक-एक बोतल खून के लिए संघर्ष करना पड़ता था। खून की व्यवस्था नहीं कर पाने से कई बार सर्जरी की तारीख बढ़ा दी जाती थी। यह बात वर्ष 1982-83 की है। तब रक्तदान को लेकर नहीं के बराबर जागरूकता थी। इसी दौर में उन्होंने अपने भीतर की आवाज सुनी और यहीं से शुरू हो गई जिंदगी की पिच पर एक-एक डोनेशन के लिए दौड़। वे कभी रन-आउट नहीं हुए। हर साल नियमित रूप से तीन बार रक्तदान कर इस मिशन के 37 वषरें में 111 का आंकड़ा छू चुके हैं।

परिवार में भी सभी हैं ब्लड डोनर

पत्नी संगीता भी 27 बार रक्तदान कर चुकी हैं। हालांकि डायबिटिक होने की वजह से अब रक्तदान नहीं कर पा रही हैं। 28 वर्षीय बेटी अपूर्वा 20 बार और 22 वर्षीय बेटा अरिंदम 12 बार रक्तदान कर चुके हैं। बेटी की सास ने 55 साल की उम्र में पहली बार रक्तदान किया। वे गुजरात से रायपुर आई हुई थीं। यहां नेरलवार परिवार को रक्तदान करते देख प्रेरित हुईं। रक्तदान करने के बाद उन्होंने कहा- मैंने अपनी जिंदगी के कई साल गंवा दिए। अगर साल में एक बार भी खून देती तो 30-35 जरूरतमंदों को मदद मिल गई होती।

ये उपलब्धियां भी 

कॉलेज, स्कूल, एनसीसी, एनएसएस के कार्यक्रमों में अरविंद को रक्तदान विषय पर बोलने के लिए आमंत्रित किया जाता है। नेताजी सुभाष चंद बोस के नारे- तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा, से प्रेरित होकर डॉ. नेरलवार ने पूरी किताब ही लिख डाली है, जिसमें ब्लड डोनेशन के महत्व को बारीकी से समझाया है। 


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