जागरण फिल्म फेस्टिवल: अब हम भी बनेंगे चैपिंयन
जागरण फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन शनिवार को कानपुर में डायरेक्टर अमोल गुप्ते की फिल्म 'हवा हवाई' को देखकर स्कूली बच्चे बाहर निकले तो उनके चेहरे की चमक बता रही थी कि जैसे उनके सपनों को पंख लग गए हों। इसी तरह लखनऊ में परदे पर जहां साइप्रस की फिल्म जाय एंड सारो आफ बाडी व मंजुनाथ दिखाई गई वह
लखनऊ। जागरण फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन शनिवार को कानपुर में डायरेक्टर अमोल गुप्ते की फिल्म 'हवा हवाई' को देखकर स्कूली बच्चे बाहर निकले तो उनके चेहरे की चमक बता रही थी कि जैसे उनके सपनों को पंख लग गए हों। इसी तरह लखनऊ में परदे पर जहां साइप्रस की फिल्म जाय एंड सारो आफ बाडी व मंजूनाथ दिखाई गई वहीं मास्टर क्लास व पैनल डिस्कशन में पर्दे के पीछे की बारीकियों पर चर्चा हुई। सिनेमा के हालात और दर्शकों के सरोकार पर भी चर्चा हुई।
कानपुर में चंद्रविहार स्थित हरे रामा हरे कृष्णा सीनियर सेकेंड्री स्कूल की क्लास-6 के बच्चों के लिए तो जैसे यह दिन किसी पिकनिक की तरह था। ऐसे में उनको जब मनपसंद फिल्म देखने को मिल गई तो सोने पर सुहागा हो गया। एक बच्चे के स्केटिंग चैंपियन बनने की कहानी पर आधारित इस फिल्म को देखकर स्केटिंग का शौक रखने वाले जैश कश्यप की खुशी का ठिकाना ही नहीं था। वजह पूछने पर वह कहते है, 'मैं अब तक शौक में स्केटिंग करता हूं, पर इस मूवी को देखने के बाद मैंने सोच लिया है कि मैं स्केटिंग चैंपियन बनकर ही रहूंगा।
इससे मुझे सबसे अच्छा मैसेज मिला कि 'हार मत मानो' और 'जो काम करना चाहते हो उसे दिल से करो सफलता जरूर मिलेगी।' इसमें टीम भावना का जो संदेश है वह सबसे अच्छा है। मैं दैनिक जागरण को भी धन्यवाद दूंगा कि उन्होंने मुझे मेरे सपने को जीने की राह दिखाई है।'
जैश की तरह ही जागरण फिल्म फेस्टिवल ने उनके साथी प्रखर, करन और साहिल को भी इस फिल्म के जरिए उनके सपने को पूरा करने की सीख दी है। सिर्फ इन स्टूडेंट्स ने ही नहीं बल्कि स्कूल के टीचर्स ने भी फिल्म से काफी सीख हासिल की।
लखनऊ में फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत सुबह शाहिद और काय पो चे के अभिनेता राजकुमार की मास्टर क्लास से हुई। उन्होंने अभिनय की बारीकियां समझाते हुए कहा कि रंगमंच आज भी लाउड है जबकि फिल्मों में सहज अभिनय की जरूरत है। राजकुमार ने भारतेंदु नाट्य अकादमी के विनोद राज सहित अन्य श्रोताओं के अभिनय की बारीकियों से जुड़े सवालों के जवाब भी दिए। यहां शहर के वरिष्ठ रंगकर्मी जुगल किशोर ने भी अपनी राय दी। इसके बाद आयोजित पैनल डिस्कशन में बायोपिक सिनेमा (वास्तविक किरदार पर आधारित फिल्मों) पर चर्चा हुई। पैनल में फिल्म निर्देशक विनोद अनुपम, मंजूनाथ फिल्म के निर्देशक संदीप वर्मा, शाहिद फिल्म के निर्देशक हंसल मेहता, राजधानी के वरिष्ठ रंगकर्मी व अभिनेता जुगल किशोर शामिल थे।
विनोद अनुपम ने अपनी राय रखते हुए कहा कि भारत में बायोपिक फिल्मों का निर्माण बहुत कम है। हंसल मेहता ने शाहिद बनाने के सफर की चर्चा की। कहा कि वुड्स आफ विला देखकर उन्होंने ठान लिया कि जब तक ऐसी कोई दमदार कहानी नहीं मिल जाती तब तक फिल्म नहीं बनाऊंगा, इसके बाद शाहिद बनी। संदीप वर्मा ने यहां अपनी मंजूनाथ की चर्चा की। कहा कि अब बायोपिक का क्रेज बढ़ा है।
खास आकर्षण आइआइएम लखनऊ के पूर्व छात्र और इंडियन आयल के सेल्स मैनेजर मंजूनाथ पर बनी फिल्म रही। यह फिल्म मुख्यत: लखनऊ में ही शूट हुई है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे एक ईमानदार अधिकारी की शहादत और उसके मूल्यों ने सभी को झकझोरा।
वहीं, पैनल डिस्कशन के दौरान दर्शक दीर्घा से सवाल पूछने खड़े हुए स्वामी राम शंकर दास ने सभी को चौंका दिया। गेरुआ वस्त्र और त्रिपुंडधारी इस युवा संन्यासी ने फिल्म निर्देशकों से समाज को संदेश प्रदान करने वाली फिल्में बनाने का आग्रह करते हुए बताया कि वह अक्सर फिल्में देखने जाते हैं तो लोग उन्हें कौतुहल से देखते हैं। उन्होंने बताया कि वह संन्यासी अवश्य हैं पर खुद को अपडेट रखने के लिए फिल्में देखते हैं। वह हिमाचल प्रदेश में रहते हैं किंतु एक कार्यक्रम के सिलसिले में उनका गोमतीनगर आना हुआ है।