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मनुष्य की अजेय जिजीविषा व दुर्लभ प्राणशक्ति के लिए याद किया जाएगा बीता वर्ष

चुनौतियां हमारे जीवन में केवल व्यवधान ही नहीं डालतीं अपितु वह हमारी ताकत सामाजिक एवं राष्ट्रीय चारित्र और संकल्प-शक्ति की परीक्षा भी लेती हैं। वह हमें उन आंतरिक शक्तियों की अनुभूति भी करा जाती हैं जो किसी व्यक्ति-समाज-राष्ट्र के भीतर होती तो हैं।

By Monika MinalEdited By: Published: Fri, 01 Jan 2021 12:17 PM (IST)Updated: Fri, 01 Jan 2021 12:17 PM (IST)
मनुष्य की अजेय जिजीविषा व दुर्लभ प्राणशक्ति के लिए याद किया जाएगा बीता वर्ष
बीता साल महामारी और उसकी विनाशलीला के लिए किया जाएगा याद

नई दिल्‍ली, प्रणय कुमार। 2021 दरवाजे पर दस्तक दे चुका है। बीते वर्ष का आकलन-विश्लेषण करने वाले बहुत-से विचारकों-विश्लेषकों का कहना है कि वर्ष 2020 शताब्दियों में कभी-कभार फैलने वाली कोविड-19 जैसी महामारी और उसकी विनाशलीला के लिए याद किया जाएगा पर यह सरलीकृत एवं एकपक्षीय निष्कर्ष है। समग्र एवं सकारात्मक निष्कर्ष तो यह है कि 2020 मनुष्य की अजेय जिजीविषा और दुर्लभ प्राणशक्ति के लिए याद किया जाएगा। यह याद किया जाएगा पारस्परिक सहयोग और समूहिक संकल्प-शक्ति के लिए, यह याद किया जाएगा बचाव एवं रोक-थाम में अपना सब कुछ झोंक देने वाले कोविड-योद्धाओं और उनके फौलादी हौसलों के लिए, यह याद किया जाएगा मानवता के प्रति उनके त्याग, समर्पण और कर्तव्यपरायणता के लिए, यह याद किया जाएगा प्रकृति-पर्यावरण के प्रति संवेदनशील मानव के चिंतन और सरोकारों के लिए।

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चुनौतियां हमारे जीवन में केवल व्यवधान ही नहीं डालतीं, अपितु वह हमारी ताकत, सामाजिक एवं राष्ट्रीय चारित्र और संकल्प-शक्ति की परीक्षा भी लेती हैं। वह हमें उन आंतरिक शक्तियों की अनुभूति भी करा जाती हैं जो किसी व्यक्ति-समाज-राष्ट्र के भीतर होती तो हैं, पर सामान्य परिस्थितियों में हमें उनका भान नहीं रहता। मानव-जीवन की सबसे बड़ी सुंदरता ही यह है कि वह प्रतिकूल-से-प्रतिकूल परिस्थितियों में भी निरंतर गतिशील रहता है। अपितु यह कहना चाहिए कि गति ही जीवन है, जड़ता और ठहराव ही मृत्यु है। विनाश और विध्वंस के मध्य भी सृजन और निर्माण कभी थमता नहीं। 

संपूर्ण चराचर गतिशील एवं सृजनधर्मा है और मनुष्य की तो प्रधान विशेषता ही उसकी सक्रियता, संवेदनशीलता एवं सृजनधर्मिता है। उसे विषम एवं प्रतिकूल परिस्थितियों में से मार्ग निकालना आता है। यों तो भारतीय जीवन-दृष्टि प्रकृति के साथ सहयोग, सामंजस्य एवं साहचर्य का भाव रखती आई है, पर यह भी सत्य है कि मनुष्य की अजेय जिजीविषा एवं सर्वव्यापक कालाग्नि के बीच सतत संघर्ष छिड़ा रहता है। जीर्ण और दुर्बल झड़ जाते हैं, परंतु वे सभी टिके, डटे और बचे रहते हैं जिनकी प्राणशक्ति मजबूत है, जो अपने भीतर से ही जीवन-रस खींचकर स्वयं को हर हाल में मजबूत और सकारात्मक बनाए रखते हैं। इस दृष्टि से भारत और भारत के अधिकांश लोगों ने विषम, प्रतिकूल एवं भयावह कोविड-काल में जैसा अभूतपूर्व धैर्य, संयम एवं साहस का परिचय दिया है, वह पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल है। सरकार ने भी किसी प्रकार की सुस्ती, पंगुता या निष्क्रियता का परिचय न देते हुए कोविड-19 के अप्रसार हेतु निरंतर सजग, सतर्क एवं सक्रिय रहते हुए सभी आवश्यक कदम उठाए। भारतवासियों के संघर्ष की यह गाथा अभी अधूरी है। कोविड पर संपूर्ण विजय के साथ यह शीघ्र ही पूरी होगी।  चुनौतियां हमारे जीवन में केवल व्यवधान ही नहीं डालतीं, अपितु संकल्प-शक्ति की परीक्षा भी लेती हैं। 

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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