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उत्तराखंड: 200 परिवारों की कुपोषण से जंग, यहां घर-आंगन में हो रही पोषण की परवरिश

कुपोषण से लड़ने के लिए उत्तरकाशी के 200 परिवार एक अलग ही बानगी पेश कर रहे हैं। ये सभी परिवार 2015 से अपने घर आंगन में पोषण की परिवरिश कर रहे हैं।

By Ayushi TyagiEdited By: Published: Sun, 15 Sep 2019 10:01 AM (IST)Updated: Sun, 15 Sep 2019 10:07 AM (IST)
उत्तराखंड: 200 परिवारों की कुपोषण से जंग, यहां घर-आंगन में हो रही पोषण की परवरिश
उत्तराखंड: 200 परिवारों की कुपोषण से जंग, यहां घर-आंगन में हो रही पोषण की परवरिश

उत्तरकाशी, शैलेंद्र गोदियाल।  कुपोषण दूर करने में परिवार के सभी सदस्यों का जागरूक होना नितांत जरूरी है। इसकी बानगी पेश कर रहे हैं उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में भटवाड़ी ब्लॉक के 12 गांवों के 200 परिवार। ये सभी परिवार 2015 से अपने घर-आंगन में पोषक तत्व युक्त सब्जियां उगाकर कुपोषण के खिलाफ जंग छेड़े हुए हैं। 

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इससे गांवों में एनीमिया (खून की कमी) से ग्रसित महिलाओं के स्वास्थ्य में काफी सुधार आया है। उत्तरकाशी में वर्ष 2013 की आपदा के बाद सरकार समेत कई संस्थाओं ने प्रभावित ग्रामीणों का सहयोग करना शुरू किया। 2015 में ग्रामीणों की पोषण सुरक्षा को लेकर रिलायंस फाउंडेशन ने भी काम करना शुरू किया। इसके लिए भटवाड़ी ब्लॉक के 12 गांवों का चयन किया गया।

 

गांव की अधिकांश महिलाओं में हीमोग्लोबिन की कमी
इन गांवों में शिविर लगाकर चिकित्सकों ने महिलाओं के स्वास्थ की जांच की तो अधिकांश महिलाओं में हीमोग्लोबिन की कमी पाई गई। रिलायंस फाउंडेशन के परियोजना निदेशक कमलेश गुरुरानी बताते हैं कि महिलाओं में हीमोग्लोबिन की कमी को दूर करने के लिए 195 परिवारों के आंगन में मिनी पॉलीहाउस लगाए गए। 

ग्रामीणों ने समझा पोषण का महत्व
इसके साथ ही सभी परिवारों को चुकंदर, राई, पालक, छप्पन कद्दू, मूली, टमाटर, शिमला मिर्च, धनिया, मेथी आदि के उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध कराए। इसके साथ ही चिकित्सकों और विशेषज्ञों की टीम ने हर परिवार को इन सब्जियों का उत्पादन करने और इन्हें खाने के उपयोग में लाने के तरीके भी बताए।

इसके अलावा 12 गांवों में हर माह चिकित्सा शिविर लगाकर लोगों के स्वास्थ्य की जांच की गई। जो समङो उन्होंने औरों को भी समझाया। ग्रामीणों ने जब पोषण के महत्व को समझा तो इसके लिए उन्होंने अन्य ग्रामीणों को भी प्रेरित किया।

 

क्या कहते है गांव वाले 
इनमें शामिल पाही गांव के प्रीतम सिंह रावत कहते हैं कि उन्होंने मिनी पॉलीहाउस में टमाटर, चुकंदर, शिमला मिर्च समेत धनिया और हरी सब्जियां उगाईं। इसका असर परिवार के पोषण पर भी दिखा। इससे गांव में अन्य परिवार भी अपने आंगन में चुकंदर सहित आदि पोषण युक्त सब्जियों के उत्पादन को प्रेरित हुए हैं।

जामक गांव की अमरा देवी कहती हैं कि पहाड़ों में चौका-चूल्हा से लेकर पशुओं की रेख-देख, खेतों का काम और जंगल से घास-लकड़ी का इंतजाम करने तक की जिम्मेदारी महिलाओं की है। जिस कारण उनमें खून की कमी रहती है। लेकिन, अब उनके गांव की महिलाएं खानपान को लेकर जागरूक हो गई हैं। 

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