दुनिया में सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर पर आज हुआ था आतंकी हमला, पढ़ें- पूरी कहानी
संसद पर हमले के लिए बाद में चार लोगों को दोषी करार दिया गया था। इसमें से अफजल गुरु को फांसी दी गई थी। जानें कैसे हुआ था पूरा हमला और उसके बाद क्या हुए सुरक्षा बंदोबश्त।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। दुनिया में सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर भारतीय संसद पर आज ही के दिन आतंकवादियों ने हमला किया था। इस घटना को 17 साल बीत चुके हैं, लेकिन आज भी इसके घाव हरे हैं। इस हमले में पांच आतंकियों समेत कुल 14 लोग मारे गए थे। इस हमले ने हमारी सुरक्षा व्यवस्था और खुफिया तंत्र की पोल खोल दी थी। इस हमले से सबक लेकर देश की सुरक्षा और खुफिया तंत्र को मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए। हालांकि अब भी पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था की दरकार है।
देश की राजधानी दिल्ली स्थित संसद भवन पर 13 दिसंबर 2001 को सुबह करीब 11:28 बजे सफेद एंबेसडर कार में आए पांच आतंकवादियों ने हमला कर दिया था। तकरीबन 45 मिनट तक चले इस हमले में संसद भवन के गार्ड व दिल्ली पुलिस के जवान समेत कुल नौ जवान शहीद हुए थे। उस दौरान संसद में शीतकालीन सत्र चल रहा था। संसद सत्र के दौरान विपक्ष के जबरदस्त हंगामे के बाद दोनों सदनों को 40 मिनट के लिए स्थगित कर दिया गया था।
सदन स्थगित होते ही तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, विपक्ष की नेता सोनिया गांधी और कई सांसद संसद से निकल चुके थे। हमले के वक्त तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, कई मंत्रियों और तकरीबन 200 सांसदों के साथ लोकसभा में ही मौजूद थे। बहुत से सांसद गुनगुनी धूप का मजा लेने के लिए सदन के बाहर निकल चुके थे। उस वक्त यहां मीडिया का भी जमावड़ा लगा था।
उपराष्ट्रपति कृष्णकांत शर्मा के सुरक्षाकर्मी उनके काफिले के साथ उनके सदन से बाहर निकलने का इंतजार कर रहे थे। तभी सफेद रंग की संदिग्ध अंबेसडर कार गेट नंबर-11 से तेज रफ्तार में उनके काफिले की तरफ आ रही थी। इस संदिग्ध कार के पीछे भाग रहे लोकसभा के सुरक्षा कर्मी जगदीश यादव लगातार उन्हें रुकने का इशारा कर रहे थे। ये नजारा देखकर उपराष्ट्रपति के काफिले में तैनात सुरक्षाकर्मी एएसआइ जीत राम, एएसआइ नानक चंद और एएसआइ श्याम सिंह भी संदिग्ध अंबेस्डर को रोकने की कोशिश में आगे बढ़े।
सुरक्षाकर्मियों को अपनी तरफ आता देख संदिग्ध अंबेस्डर के ड्राइवर ने गाड़ी गेट नंबर एक की तरफ मोड़ दी। इधर ही उपराष्ट्रपति की कार खड़ी थी। तेज रफ्तार अंबेस्डर कार ने उनकी गाड़ी में टक्कर मार दी। टक्कर होते ही अंबेस्डर कार से पांचों फिदायीन आतंकी बाहर निकलते हैं और एके-47 से अंधाधुंध गोलिया दागनी शुरू कर देते हैं। उन्होंने सबसे पहले उन चार सुरक्षाकर्मियों को गोली मारी जो कार का पीछा कर रहे थे।
अब तक संसद भवन में मौजूद ज्यादातर लोग आतंकी हमले से अनजान थे। उन्हें हमले का पता तब चला जब एक आतंकी ने हैंड ग्रेनेड फेंका और जोरदार धमाका हुआ। तब गोलियों और ग्रेनेड धमाके से कई सुरक्षाकर्मी घायल हो चुके थे। आतंकी हमले का पता चलते ही संसद भवन में भगदड़ मच गई, जिसे जो कोना मिला वो वहीं जान बचाने के लिए दुबक गया। आतंकी काफी देर तक गेट नंबर 11 के करीब अपनी अंबेस्डर कार के पास से ही गोलियों और हैंड ग्रेनेड से हमला कर रहे थे।
आतंकी हमले का पता चलते ही गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडीज समेत तमाम मंत्रियों और सांसदों को सदन के अंदर ही महफूज जगहों पर ले जाया गया। साथ ही सदन के अंदर जाने वाले सभी दरवाजे बंद कर सुरक्षाकर्मियों ने मोर्चा संभाल लिया। संसद में घुसने का प्रयास कर रहे आतंकी भी लगातार अपनी पोजिशन बदल रहे थे। उन्हें सदन के अंदर घुसने के रास्तों के बारे में जानकारी नहीं थी।
इस अफरातफरी में गेट नंबर एक की तरङ से एक आतंकी फायरिंग करता हुआ सदन के गलियारे से होते हुए एक दरवाजे की तरफ बढ़ रहा था। सुरक्षाकर्मियों ने उसे गोली मार गिरा दिया। खुद को घिरता देख इस घायल आतंकी ने खुद को शरीर पर बंधे बम में बिस्फोट कर उड़ा लिया। जिंदा बचे चार आतंकियों के पास अब भी गोलियों और बमों का पूरा जखीरा मौजूद था, जिससे वह लगातार लड़ रहे थे।
बम धमाके में साथी की मौत के बाद घबराए आतंकी इधर-उधर भाग रहे थे। इसी दौरान गेट नंबर पांच के पास भी एक आतंकी मार गिराया गया। इसके बाद जिंदा बचे तीनों आतंकियों ने गेट नंबर नौ की तरफ बढ़ते हुए संसद में घुसने का प्रयास किया। गेट नंबर नौ के पास सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें घेर लिया। इसके बाद भी आतंकी अंधाधुंध फायरिंग कर और बम धमाके कर लड़ रहे थे। हालांकि थोड़ी देर बाद सुरक्षाकर्मियों ने तीनों को मार गिराया।
अफजल गुरु को हुई थी फांसी
संसद पर हमला करने वाले पांचों आतंकी फर्जी पहचान पत्र के जरिए अंदर घुसे थे। इस हमले के लिए अफजल गुरु समेत चार लोगों को बाद में अदालत ने दोषी करार दिया था। इसमें से मुख्य साजिशकर्ता अफजल गुरु को नौ फरवरी 2013 को फांसी दी गई थी। संसद भवन पर हुआ ये हमला भारतीय इतिहास की बड़ी आतंकी घटनाओं में से एक है।
संसद की सुरक्षा में अब परिंदा भी नहीं मार सकता पर
हमले के बाद संसद की सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गयी है। संसद भवन के अंदर सीआरपीएफ, दिल्ली पुलिस और क्यूआरटी(क्यूषक रिस्पॉरन्स टीम) को तैनात किया गया है। मुख्य जगहों पर अतिरिक्त स्नाइपर भी तैनात किये गये हैं। इसके साथ न दिखने वाला सुरक्षा कवर भी बढ़ा दिया गया है। किसी भी अप्रिय स्थिति को रोकने के लिए आतंक निरोधी दस्ते लगातार औचक निरीक्षण करते रहते हैं। बता दें कई उच्च तकनीक वाले उपकरण जैसे बूम बैरियर्स और टायर बस्टर्स लगाने पर भी करीब 100 करोड़ रुपये खर्च किये गये। इसके अलावा संसद परिसर में प्रवेश के नियम आम और खास सभी लोगों के लिए सख्त कर दिए गए हैं।
संसद हमले का सिलसिलेवार घटनाक्रम :-
13 दिसंबर 2001:- पांच चरमपंथियों ने संसद पर हमला किया। हमले में पांच चरमपंथियों के अलावा सात पुलिसकर्मी सहित नौ लोगों की मौत हुई।
15 दिसंबर 2001:- दिल्ली पुलिस ने जैश-ए-मोहम्मद के चरमपंथी अफजल गुरु को गिरफ्तार किया। उनके साथ दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एसएआर गिलानी को भी गिरफ्तार किया गया। इन दोनों के अलावा अफशान गुरु और शौकत हसन गुरु को गिरफ्तार किया गया।
29 दिसंबर 2001:- अफजल गुरु को दस दिनों के पुलिस रिमांड पर भेजा गया।
4 जून 2002:- अफजल गुरु, एएसआर गिलानी, अफशान गुरु और शौकत हसन गुरु के खिलाफ दोषी करार।
18 दिसंबर 2002:- अफजल गुरु, एएसआर गिलानी और शौकत हसन गुरु को फांसी की सजा दी गई। अफशान गुरु को रिहा किया गया।
30 अगस्त 2003:- जैश-ए- मोहम्मद के चरमपंथी गाजी बाबा, जो संसद पर हमले का मुख्य अभियुक्त को सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने दस घंटे तक चले इनकाउंटर में श्रीनगर में मार गिराया।
29 अक्टूबर 2003:- मामले में एएसआर गिलानी बरी किए गए।
4 अगस्त 2005:- सुप्रीम कोर्ट ने अफजल गुरु की फांसी की सजा बरकरार रखा। शौकत हसन गुरु की फांसी की सजा को 10 साल कड़ी कैद की सजा में तब्दील किया गया।
26 सितंबर 2006:- दिल्ली हाईकोर्ट ने अफजल गुरु को फांसी देने का आदेश दिया।
3 अक्टूबर 2006:- अफजल गुरु की पत्नी तबस्सुम गुरु ने राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सामने दया याचिका दायर की।
12 जनवरी 2007:- सुप्रीम कोर्ट ने अफजल गुरु की दया याचिका को खारिज किया।
16 नवम्बर 2012:- राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अफजल गुरु की दया याचिका गृह मंत्रालय को लौटाई।
30 दिसंबर 2012:- शौकत हसन गुरु को तिहाड़ जेल से रिहा किया गया।
10 दिसंबर 2012:- केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि अफजल गुरु के मामले की पड़ताल करेंगे।
13 दिसंबर 2012:- भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा में प्रश्न काल के दौरान अफजल गुरु को फांसी दिए जाने का मुद्दा उठाया।
23 जनवरी 2013:- राष्ट्रपति ने अफजल गुरु की दया याचिका खारिज की गई।
03 फरवरी 2013:- गृह मंत्रालय को राष्ट्रपति द्वारा खारिज याचिका मिली।
09 फरवरी 2013:- अफजल गुरु को नई दिल्ली को तिहाड़ जेल में सुबह 8 बजे फांसी पर लटकाया गया।