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पात्रता के फेर में फंसे देश के करीब 12 लाख अप्रशिक्षित शिक्षक, बिहार से हुई विवाद की शुरूआत

सभी शिक्षकों को यह खास प्रशिक्षण शिक्षा के अधिकार (आरटीई) के उन प्रावधानों के तहत दिया गया है जिसमें 2014 के बाद वह बगैर प्रशिक्षण के नहीं पढा सकते थे।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 08 Oct 2019 08:01 PM (IST)Updated: Wed, 09 Oct 2019 07:05 AM (IST)
पात्रता के फेर में फंसे देश के करीब 12 लाख अप्रशिक्षित शिक्षक, बिहार से हुई विवाद की शुरूआत
पात्रता के फेर में फंसे देश के करीब 12 लाख अप्रशिक्षित शिक्षक, बिहार से हुई विवाद की शुरूआत

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। देश के करीब बारह लाख अप्रशिक्षित शिक्षकों ने तय समय में नया प्रशिक्षण पूरा करके भले ही अपनी मौजूदा नौकरी को जाने से बचा लिया है, लेकिन भविष्य की उनकी राहें फिलहाल बंद है। वजह एनसीटीई (राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद) की स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को लेकर वह अर्हता नियम है, जिसके तहत दो साल का डीईएलएड ( डिप्लोमा इन एलिमेंटरी एजुकेशन) करने वाले ही इसके पात्र है। ऐसे में 18 महीने का विशेष डीईएलएड कोर्स करने वाले इन लाखों शिक्षकों के सामने एक नई समस्या खड़ी हो गई है। वह इस कोर्स के आधार पर कहीं दूसरी जगह नौकरी नहीं कर सकते है।

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मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने किया शिक्षकों का बचाव

हालांकि इस सब के बीच देश भर के इन अप्रशिक्षित शिक्षकों को यह विशेष कोर्स कराने वाली मानव संसाधन विकास मंत्रालय की संस्था एनआईओएस (राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान) उनके साथ पूरी मजबूती के खड़ी है। संस्थान का कहना है कि उनकी डीईएलएड़ के कोर्स में कोई कमी नहीं है। वह डीईएलएड के दो साल के कोर्सो जैसी ही है।

एनसीटीई की चुप्पी

सरकार ने शिक्षकों के शिक्षण अनुभव को देखते हुए उन्हें राहत देते हुए 18 महीने में कराया है। जिसे एनसीटीई की भी मंजूरी है। ऐसे में वह इसके आधार पर कहीं भी नौकरी करने के लिए पात्र है। वहीं इस विवाद के बढ़ने पर एनसीटीई ने चुप्पी ओढ़ ली है। खासबात बात है कि अप्रशिक्षित शिक्षकों के इस प्रशिक्षण में निजी और सरकारी दोनों ही स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक शामिल थे। इनमें बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के सबसे ज्यादा थे।

विवाद की शुरूआत बिहार में शिक्षकों की भर्ती से शुरू हुई

वहीं इस पूरे विवाद की शुरूआत भी बिहार में शिक्षकों की भर्ती से शुरू हुई। इस दौरान निजी स्कूलों में पढ़ाने वाले उन शिक्षकों ने भी इसके लिए आवेदन किया, जिन्होंने सरकार के इस विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत एनआईओएस से 18 महीने का डीईएलएड कोर्स किया था। बिहार सरकार ने एनसीटीई से इसे लेकर सलाह मांगी, तो एनसीटीई ने सीधे तौर पर कुछ कहें बगैर स्कूली शिक्षकों की अर्हता को लेकर पूर्व में जारी की गई गाइड लाइन उन्हें भेज दी, लेकिन इनमें कहीं भी 18 महीने के डीएलएड कोर्स करने वालों का जिक्र नहीं था। इसके बाद से ही विवाद बढ़ गया है।

एनसीटीई की अर्हता में बदलाव जरूरी

अब यह बिहार के साथ दूसरे राज्यों में भी तूल पकड़ने लगा है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जुड़े सूत्रों की मानें तो इसे लेकर मंत्रालय ने यदि जल्द ही हस्तक्षेप कर एनसीटीई की अर्हता में बदलाव नहीं किया, तो यह विवाद देश भर में तेजी से फैल सकता है।

सभी शिक्षकों को खास प्रशिक्षण

गौरतलब है कि इन सभी शिक्षकों को यह खास प्रशिक्षण शिक्षा के अधिकार (आरटीई) के उन प्रावधानों के तहत दिया गया है, जिसमें 2014 के बाद वह बगैर प्रशिक्षण के नहीं पढा सकते थे। हालांकि यह काम 2014 तक जब नहीं हो पाया, तो सरकार ने संसद में आरटीई में संशोधन कर इसे पूरा करने के लिए मार्च 2019 तक का लक्ष्य रखा था। जो अब हो पूरा गया है।


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