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तीन महिनों से फंसे हुए है 100 बंदर, रेस्क्यू के लिए बनाया गया तीन सौ मीटर लंबा पुल

पिछले तीन महीनें से बंदर टापू पर फंसे हुए है। उन्हें बचाने के लिए तीन सौ मीटर लंबा पुल बनाया गया है।

By Ayushi TyagiEdited By: Published: Tue, 19 Nov 2019 01:55 PM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2019 01:55 PM (IST)
तीन महिनों से फंसे हुए है 100 बंदर, रेस्क्यू के लिए बनाया गया तीन सौ मीटर लंबा पुल
तीन महिनों से फंसे हुए है 100 बंदर, रेस्क्यू के लिए बनाया गया तीन सौ मीटर लंबा पुल

 कांकेर, जेएनएन। छत्तीसगढ़ में पिछले तीन महीनें से बंदर फंसे हुए हैं। दरअसल, यहां के कांकेर जिला स्थित दुधावा बांध के बीच बने टापू में बीते तीन महीने से सौ से अधिक बंदर फंसे हुए हैं। टापू के चारों तरफ पानी भरा हुआ है जिस वजह से बंदर वहां से निकल नहीं पा रहे थे।

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जैसे ही वनकर्मियों की नजर इन सभी पर पड़ी तब जाकर मामला प्रकाश में आया और इसके बाद बंदरों को बचाने का काम शुरू किया गया। इस टापू से बंदरों को निकालने के लिए करीब सवा तीन सौ मीटर लंबा बांस का पुल तैयार किया गया। बंदरों को यहां से निकालने के लिए पुल पर केले टांगे गए हैं। वहीं, इन्हें देखकर बंदर धीरे-धीरे टापू पर आने लगे हैं।

कैसे टापू पर फंसे बंदर 

बारिश के शुरुआती दिनों में दुधावा बांध का जल स्तर कम था, उस दौरान बंदरों का झुंड टापू पर पहुंचा। लेकिन, फिर से बारिश होने के बाद दुधावा बांध का जल स्तर बढ़ गया। बंदरों का झुंड टापू पर ही फंसा रह गया। टापू पर ये बंदर पेड़-पौधों की पत्तियां खाकर ही खुद को जिंदा रखे हुए थे। मछुआरों के एक दल ने टापू पर बंदरों को देखा, जिसके बाद उन्होंने धमतरी के जल संसाधन विभाग को सूचना दी थी। 

मोटर बोट से पहुंचाया जा रहा भोजन 

11 नवंबर की रात वन विभाग को इन बंदरों के फंसे होने की सूचना दी। सूचना मिलने पर 12 नवंबर को क्षेत्र के वनकर्मी, रेंजर और ग्रामीण नाव के माध्यम से टापू में जाकर देखा गया तो बंदरों का झुंड वहां फंसा हुआ था। जिनके लिए तत्काल वन विभाग ने गांव के लोगों के मदद से भोजन की व्यवस्था की गई थी और रोजना बंदरों के लिए वनकर्मी मोटर बोट के जरिये अमरूद, पपीता, सब्जियां आदि नियमित रूप से पहुंचा रहे थे। 

20 मजूदर और 18 वन कर्मियों ने तैयार किया पुल 

बंदरों के लिए पुल बनाने के काम 20 मजदूरों व 18 वनकर्मियों को गया था। काम शनिवार को शुरू हुआ था। पुल को तैयार करने में 500 बांस, 200 बल्ली, 50 लोहे की पाईप और 30 किलो रस्सी का उपयोग किया गया है।   


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