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झारखंड से हर वर्ष करीब 10 हजार महिलाएं कर रही पलायन, 10 फीसद कभी नहीं लौटती वापस

झारखंड से हर वर्ष 10 हजार महिलाएं पलायन कर रही हैं। इसमें से दस फीसद महिलाएं कभी वापस लौटकर नहीं आती और न ही इनका कहीं कोई पता चल पाता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 06 Jan 2020 03:05 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jan 2020 03:05 PM (IST)
झारखंड से हर वर्ष करीब 10 हजार महिलाएं कर रही पलायन, 10 फीसद कभी नहीं लौटती वापस
झारखंड से हर वर्ष करीब 10 हजार महिलाएं कर रही पलायन, 10 फीसद कभी नहीं लौटती वापस

नई दिल्‍ली [जेएनएन]। मानव तस्करी आज भी झारखंड के लिए नासूर बनी है। झारखंड की इस विडंबना पर काम कर रही संस्थाओं की रिपोर्ट पर गौर करें तो राज्य के विभिन्न हिस्सों से हर साल तकरीबन 10 हजार महिलाओं का आज भी असुरक्षित पलायन हो रहा है। इनमें से लगभग 10 फीसद दोबारा अपने गांव नहीं लौट पातीं। या यूं कहें कि उनका कुछ अता-पता नहीं चलता। शेष किसी न किसी रूप में शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना की शिकार होती हैं। भारत के अलावा नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका तथा पाकिस्तान स्थित अपने कार्यालयों से 47 सहयोगी संस्थाओं के माध्यम से इस क्षेत्र में कार्यरत एक्शन अगेंस्ट ट्रैफिकिंग एंड सेक्सुअल एक्सप्लॉयटेशन (एटसेक) के आंकड़े इसे पुष्ट करते हैं।

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रिपोर्ट बताती है, यह पलायन नौ फीसद बिचौलिये के बहकावे में, तीन फीसद पारिवारिक दबाव में, 37 फीसद सहेलियों के साथ, शेष 51 फीसद परिवार के अन्य सदस्यों के साथ हो रहा है। बिचौलिए उन्हें उज्जवल भविष्य के सपने दिखाकर ले तो जाते हैं, परंतु उसे उसकी किस्मत पर छोड़कर निकल जाते हैं। पलायन करने वाली नाबालिग और किशोरियों में से 67 फीसद की आयु 20 वर्ष से कम होती है। दिल्ली किशोर-किशोरियों की खरीद-बिक्री की सबसे बड़ी मंडी है। इसके अलावा मुंबई, यूपी, कोलकाता, ओडिशा आदि राज्यों में भी इनकी बोली लगती है। राज्य गठन के 19 वर्ष बाद भी मानव तस्करी और असुरक्षित पलायन के ग्राफ में कमी नहीं आना घोर चिंता का विषय है। यह कहीं न कहीं मानव तस्करी की रोकथाम के लिए स्थापित तंत्र और सरकार के डिलीवरी मैकेनिज्म पर सवाल खड़ा करता है।

बहरहाल साहिबगंज के बरहेट थाना क्षेत्र के एक सुदूर गांव की संताली युवती को तस्करों द्वारा पुरानी दिल्ली में बेचे जाने और उसके वहां भाग निकलने की घटना सुर्खियों में है। भाषाई समस्या के कारण युवती लगभग डेढ़-दो महीने पैदल चली, झाड़ियों में छिपकर और पेड़ों पर चढ़कर रात गुजारी। पुलिस प्रशासन के सहयोग से आज वह अपने घर पहुंच चुकी है, परंतु उसके संघर्ष की कहानी मानवीय संवेदनाओं को झकझोर कर रख देने वाली है। आवश्यकता है कि मानव तस्करी के कारणों की ईमानदारीपूर्वक तलाश और उसके निदान की। इसमें सरकारी तंत्र ही नहीं, पंचायती राज संस्थाओं और सामाजिक संगठनों समेत समाज के हर तबके को जवाबदेही निभानी होगी।

मानव तस्करी की घटनाओं को रोकने और तत्काल कार्रवाई के लिए झारखंड के आदिवासी बहुल आठ जिले-रांची, खूंटी, गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा, चाईबासा, दुमका के अलावा पलामू में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (एएचटीयू) स्थापित किए गए हैं। इनके इलावा अपराध अनुसंधान विभाग (सीआइडी) भी इन मामलों पर नजर रखता है। फिर भी कई कुख्यात तस्कर पुलिस की पकड़ से बाहर हैं और खूंटी, गुमला, सिमडेगा, चाईबासा, रांची जैसे इलाकोंसे बड़ी तादाद में लड़कियों को वे महानगरों में ले जाने में सफल हो रहे हैं।


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