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सरकार और भाजपा के वो 10 कदम जो पहले से ही दे रहे थे कश्मीर पर बड़े फैसले का संकेत

Article 370 कुल 10 प्वाइंट में जानें वो बातें जिनसे अंदाजा लगाया जा सकता था कि भाजपा और केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर को लेकर कोई बड़ा कदम उठा सकती है।

By Digpal SinghEdited By: Published: Sat, 10 Aug 2019 03:27 PM (IST)Updated: Sun, 11 Aug 2019 08:27 PM (IST)
सरकार और भाजपा के वो 10 कदम जो पहले से ही दे रहे थे कश्मीर पर बड़े फैसले का संकेत
सरकार और भाजपा के वो 10 कदम जो पहले से ही दे रहे थे कश्मीर पर बड़े फैसले का संकेत

नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। Article 370 अब गुजरे जमाने की बात बन चुका है। Article 370 और Article 35A को हटाए जाने का फैसला होने के बाद पाकिस्तान में बौखलाहट देखी जा सकती है। केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति के आदेश पर अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बना दिया है। इसी के साथ जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों के तौर पर मान्यता देने के लिए संसद ने जम्मू-कश्मीर री-ऑर्गेनाइजेशन बिल 2019 को भी संसद के दोनों सदनों ने पास कर दिया है। केंद्र सरकार और भाजपा लंबे वक्त से ऐसा कोई फैसला लेने का संकेत दे रही थी। हम यहां 10 प्वाइंट में बता रहे हैं, जिनसे अंदाजा लगाया जा सकता था कि भाजपा और केंद्र सरकार कोई बड़ा कदम उठा सकती है।

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1. महबूबा सरकार से समर्थन वापस
आर्टिकल 370 हटाए जाने के फैसले के साथ ही जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला को गिरफ्तार कर लिया गया है। बड़ी रोचक बात है कि केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी पूर्व में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी दोनों के साथ गठबंधन में रह चुकी है। महबूबा मुफ्ती की पीडीपी के साथ तो हाल के समय तक भाजपा का गठबंधन था। 04 अप्रैल 2016 से 20 जून 2018 तक यह गठबंधन चला था। साल 2014 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी 28 और भाजपा 25 सीट ने मिलकर सरकार बनाई और मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने थे। सईद के निधन के बाद कई दौर की बातचीत चली और भाजपा-पीडीपी का गठबंधन जारी रहा। महबूबा मुफ्ती ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा था और आखिरकार 20 जून 2018 को भाजपा ने इस गठबंधन से किनारा कर लिया। उस समय भले ही किसी ने भाजपा के उस कदम के बारे में अंदाजा न लगाया हो, लेकिन आज लगता है कि भाजपा ने सोच-समझकर यह फैसला लिया था।

2. कश्मीर में राज्यपाल शासन
भाजपा के महबूबा सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद केंद्र सरकार ने राज्य में राज्यपाल शासन लगा दिया। दूसरी तरफ नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस और पीडीपी सरकार बनाने को लेकर बैठकें करते रहे। कोई भी दो पार्टियां एक मत पर नहीं पहुंच पायीं और राज्य में कानून व्यवस्था का हवाला देकर राज्यपाल शासन भी लगातार बढ़ाया जाता रहा। अनुच्छेद 370 हटाए जाने तक राज्य में राज्यपाल शासन लगे एक साल से ज्यादा का वक्त गुजर चुका था और केंद्र सरकार की तरफ से राज्यपाल शासन हटाए जाने का संकेत नहीं मिल रहा था। इतने लंबे समय तक किसी राज्य में राज्यपाल या राष्ट्रपति शासन लगाया जाना ऐतिहासिक है, लेकिन अनुच्छेद 370 हटाए जाने व राज्य को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांटे जाने के बाद लगता है कि केंद्र सरकार ने यहां भी मास्टरस्ट्रोक खेला।

3. बालाकोट में AirStrike
उस दिन पूरी दुनिया में प्यार-मोहब्बत की बातें हो रही थीं। वैलेंटाइन डे का सुरूर सभी पर हावी था, लेकिन आतंकवादियों को कहां प्यार-मोहब्बत और शांति पसंद आती है। 14 फरवरी 2019 को आतंकियों ने एक कायराना हरकत की और पुलवामा में सेना के काफिले पर आत्मघाती हमला कर दिया। इस आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए। शुरुआती जांच में ही पता चल गया कि Pulwama Terror Attack के पीछे पाकिस्तान में पनाह और ट्रेनिंग लिए आतंकियों का हाथ है। इसके बाद भारत ने दुनियाभर से कूटनीतिक दबाव पाकिस्तान पर बनाया और अपनी सॉफ्ट स्टेट की छवि को तोड़ते हुए 26 फरवरी 2019 को पाकिस्तान के बालाकोट में Air Strike कर दी। रात के अंधेरे में आतंकी कैंप पर हुए इस Air Strike में बहुत से आतंकी मारे गए। इससे पाकिस्तान में बौखलाहट भी साफ दिखी। साल 2016 में हुई Surgical Strike के बाद भारत की मस्कुलर छवि को उभारने में यह कार्रवाई बड़ा कदम माना गया।

4. अलगाववादियों पर NIA की छापेमारी और शिकंजा
Pulwama Terror Attack को भारत की संप्रभुता पर एक बड़े हमले के तौर पर देखा गया। निसंदेह यह हमला पाकिस्तान में ट्रेनिंग लिए आतंकवादियों और उनके आकाओं ने किया, लेकिन उनके मददगार हमारी अपनी ही धरती पर मौजूद थे। इसी अवधारणा को केंद्र मानकर NIA ने इस आतंकी हमले की जांच शुरू की और जल्द ही उसके हाथ अलगाववादियों की गर्दन तक पहुंच गए। NIA ने छापेमारी कर अलगाववादियों के पास से टेरर फंडिंग और कई आतंकी संगठनों से जुड़े दस्तावेज भी बरामद किए। एनआईए ने इस दौरान मीरवाइज उमर फारूक, यासिन मलिक, मुहम्मद अशरफ सेहराई, शब्बीर शाह और जफर अकबर बट के ठिकानों पर छापेमारी की। अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारूक के घर से एक टेलीफोन एक्सचेंज भी बरामद किया गया था। एनआईए ने सिर्फ छापेमारी ही नहीं कि बल्कि कई अलगाववादियों और हुर्रियत नेताओं को गिरफ्तार भी किया गया। आमतौर पर केंद्र सरकार की कोई एजेंसी इस तरह से अलगाववादियों पर हाथ नहीं डालती थी, लेकिन NIA की इस कार्रवाई ने उस मिथ को भी धराशायी कर दिया। NIA की यह कार्रवाई भी एक संकेत था कि केंद्र सरकार भविष्य में कश्मीर को लेकर कैसी रणनीति बना रही है।

5. पाकिस्तान से MFN का दर्जा वापस
Pulwama Terror Attack के बाद पूरे देश में रोष था। हर कोई पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखाने की बात कर रहा था। इस बीच केंद्र की मोदी सरकार ने सीधी जंग लड़ने की बजाय पाकिस्तान को कूटनीतिक तरीके से बर्बाद करने का प्लान बनाया। भारत ने न सिर्फ दुनियाभर में पाकिस्तान के आतंकवादी चेहरे को बेनकाब किया बल्कि उससे मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) का दर्जा भी वापस ले लिया। यानि अब व्यापार के लिए भारत की प्राथमिकता में पाकिस्तान नहीं रहा। इससे पाकिस्तान को लगातार नुकसान हुआ। अब तक जो चीजें पाकिस्तान को भारत से आसानी से मिल जाया करती थी, उसके लिए उसे तरसना पड़ा। पाकिस्तान में महंगाई दर लगातार बढ़ने लगी और कर्ज के बोझ तले पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का दम घुटने लगा। इस तरह से भारत ने पाकिस्तान को पहले ही ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया कि वह कुछ करने की स्थिति में न हो।

6. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग किया
भारत और पाकिस्तान कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक साथ शिरकत करते हैं। भारत ने साझा मंचों पर तो पाकिस्तान को दरकिनार किया ही। वह मंच जहां भारत का दखल नहीं है, लेकिन पाकिस्तान की अच्छी पैठ है वहां भी पाकिस्तान की किरकिरी की। इसका सबसे बड़ा सबूत ओआईसी में मिला, जब पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को न सिर्फ घेरा, बल्कि मुस्लिम देशों के इस संगठन में भारत के पक्ष को मजबूती से रखते हुए उनसे समर्थन भी हासिल किया। इसके अलावा शांघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (SCO) में भी भारत ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के मुद्दे को उठाया। भारत ने आतंकवाद के मुद्दे पर तमाम देशों को अपनी ओर किया और पाकिस्तान को दुनियाभर से संदेश गया कि उन्हें बातचीत के टेबल पर आने के लिए अपनी जमीन से आतंकवाद का खात्मा करना होगा।

7. मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करवाना
पाकिस्तान में सुरक्षित पनाह लिए हुए आतंकवादी मौलाना मसूद अजहर को हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित किया है। यह भारत की एक बड़ी कूटनीतिक जीत है, क्योंकि पुलवामा आतंकी हमले से लेकर मुंबई हमले और संसद पर हुए आतंकी हमले के साथ ही अन्य कई छोटे-बड़े हमलों के लिए यह आतंकी जिम्मेदीर है। भारत लंबे वक्त से मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र से अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने की कोशिश में जुटा था। बार-बार पाकिस्तान का दोस्त चीन इस कोशिश को वीटो लगाकर अडंगा लगा रहा था। भारत की पैठ का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इस बार फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका यह प्रस्ताव लेकर आए थे। इस बार पाकिस्तान का दोस्त चीन भी मसूद अजहर को बचा नहीं पाया, इसे भारत की कूटनीतिक जीत ही माना जाता है।

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8. एक मंझे हुए नौकरशाह को विदेशमंत्री बनाना
आम चुनाव 2019 में भाजपा और एनडीए ने एक बार फिर प्रचंड बहुमत के साथ केंद्र में वापसी की। कई भाजपा दिग्गज जैसे पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, अरुण जेटी, एलके आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता चुनाव नहीं लड़े। विदेश मंत्री के तौर पर मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में सुषमा स्वराज का कामकाज सराहनीय था। ऐसे में उनकी जगह जिसे भी विदेश मंत्री बनाया जाता वह उनके कद के आसापास होना चाहिए था। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एस. जयशंकर को चुना, जो एक मंझे हुए नौकरशाह तो थे ही... उन्होंने भारत-चीन के बीच डोकलाम विवाद को सुलझाने में भी अहम भूमिका निभायी थी। जयशंकर अमेरिका, चीन, चेक गणराज्य और सिंगापुर में भारत के राजदूत और हाई-कमिश्नर रह चुके हैं। यही नहीं भारत और अमेरिका के बीच परमाणु संधि को नतीजे तक पहुंचाने में भी उन्होंने बड़ी भूमिका निभायी थी।

9. कश्मीर में विकास को रफ्तार
कई बार सिर्फ कड़े कदम उठाना ही जरूरी नहीं होता। प्यार की थपकी भी बड़े काम की होती है। मोदी सरकार के पहले पांच साल के कार्यकाल में उन्होंने जम्मू-कश्मीर के लिए काफी कुछ किया। चेनानी और नाशरी के बीच बने इस 9.28 किमी लंबी सुरंग ने कश्मीर के लोगों को विकास की राह दिखाई। इसके अलावा कटरा तक रेल लाइन का पहुंचना और अन्य विकास कार्यों ने जम्मू-कश्मीर में लोगों में भारत सरकार के प्रति विश्वास जगाने का काम किया।

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10. अमित शाह को गृहमंत्री बनाना

संगठन और गुजरात में मंत्री रहते हुए भी अमित शाह की छवि एक सख्त प्रशासक की रही है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में जब उन्हें गृहमंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई तो हर कोई यही मान रहा था कि जरूर अब देश में कुछ बड़ा होगा। अभी मोदी सरकार-2 को तीन महीने भी पूरे नहीं हुए और अमित शाह ने गृहमंत्री के तौर पर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का संकल्प पेश कर दिया। यही नहीं जम्मू-कश्मीर राज्य का दो हिस्सों में विभाजन कर दोनों को ही केंद्र शासित प्रदेश बनाने का क्रांतिकारी फैसला भी ले लिया और इस पर संसद की मुहर भी लगवा ली। अनुच्छेद 370 हटने के बाद जहां कश्मीर में जनता इसके महत्व को समझते हुए शांत हो रही है, वहीं पाकिस्तान में सियासी पारा चढ़ा हुआ है।

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