18 अगस्त 2008 को नेपाल में कुसहा तटबंध टूटने से उत्तर बिहार में मचा था जलप्रलय, हजारों लोगों की आंखें पथराईं
कुसहा त्रासदी 14 साल में भी नहीं भर सके कुसहा पीडि़तों के घाव। पुनर्वास की आस में हजारों विस्थापितों की आंखें पथराईं। नदियों के तेज बहाव के कारण आज भी तटबंध टूटने लगते हैं। राज्य सरकार की योजनाओं का समुचित लाभ पीडि़तों को नहीं मिल रहा है।
आनंद कुमार सिंह, भागलपुर। कुसहा त्रासदी : 18 अगस्त, 2008 को कोसी बौरा गई थी। नेपाल के कुसहा में तटबंध टूटा और कोसी-सीमांचल का इलाका बर्बाद हो गया। त्रासदी के 14 वर्ष बाद भी घाव पूरी तरह नहीं भरे हैं। इसके एक साल पूर्व ही तटबंध के दो बिंदुओं पर कोसी ने दबाव बना दिया था। सुरक्षात्मक प्रबंध किए गए, लेकिन अनहोनी नहीं टली। केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया था। पहले से सुंदर कोसी बनाने का वादा किया गया, लेकिन अभी तक विस्थापितों का पुनर्वास ही पूरा नहीं किया जा सका है।
कोसी परियोजना की शुरुआत व उद्देश्य : पीछे मुड़कर देखें तो स्वतंत्र भारत में पहली बार प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1953-54 में बाढ़ रोकने के लिए कोसी परियोजना शुरू की। शिलान्यास के समय कहा गया था कि अगले 15 वर्षों में बिहार में बाढ़ की समस्या पर नियंत्रण पा लिया जाएगा। देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने 1955 में इस परियोजना का शिलान्यास किया। सुपौल के बैरिया गांव में सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि मेरी एक आंख कोसी पर रहेगी और दूसरी बाकी हिंदुस्तान पर। 1965 में लाल बहादुर शास्त्री ने कोसी बराज का उद्घाटन किया था। नेपाल से आने वाली सप्तकोशी के प्रवाहों को एक कर दिया गया और बिहार में तटबंध बनाकर नदियों को मोड़ दिया गया। कोसी क्षेत्र में नहरें बनाकर सिंचाई की व्यवस्था की गई। कटैया में एक पनबिजली केंद्र भी स्थापित हुआ। बावजूद, कोसी परियोजना अब तक अपने उद्देश्यों को पूरा करने में असफल रही।
कई बार टूटे तटबंध : आज भी नदियों के तेज बहाव में तटबंध टूटने लगते हैं। अगस्त 1963 में डलवा में पहली बार तटबंध टूटा था। अक्तूबर 1968 में दरभंगा के जमालपुर में और अगस्त 1971 में सुपौल के भटनिया में तटबंध टूटा। सहरसा में तीन बार अगस्त 1980, सितंबर 1984 और अगस्त 1987 में बांध टूटे। जुलाई 1991 में भी नेपाल के जोगिनियां में कोसी का बांध टूट गया था। 2008 में फिर से कुसहा में बांध टूटा। इस जलप्रलय से उत्तर बिहार के बड़े हिस्से में बर्बादी हुई थी। 18 अगस्त को कुसहा तटबंध टूटा और 215 गांव जलमग्न हो गए। साढ़े सात लाख की आबादी व ढाई लाख से अधिक पशु प्रभावित हुए। सरकारी आंकड़ों में कोसी प्रमंडल के 526 लोगों की मृत्यु हुई। 1666 पक्के व 71568 कच्चे घर क्षतिग्रस्त हुए। 50 लाख हेक्टेयर से अधिक की फसल बर्बाद हुई।
राहत कार्य तो खूब चला, लेकिन...: इस बाढ़ के बाद नीतीश कुमार की सरकार ने राहत-अनुदान की बाढ़ सी चला दी। फसल क्षति, गृह क्षति, खेतों से बालू निकासी आदि। बावजूद, काफी लोग ऐसे अनुदान से वंचित भी रह गए। सरकार ने कोसी के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया। टाटा स्टील एवं फिल्मकार प्रकाश झा ने इस कड़ी में पहले अपना नाम जोड़ा। फिल्मकार ने 104 व टाटा स्टील की ओर से 105 आवास उपलब्ध करवाए गए। अन्य सुविधाएं भी दी गईं। 19 मई, 2010 को मुख्यमंत्री ने कोसी पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण योजना का उद्घाटन किया।
हजारों प्रभावित अब भी पुनर्वास की आस में : सुपौल में 25,958 आवास का लक्ष्य निर्धारित किया गया। इसमें 2015 तक 13,264 घरों को पूर्ण बताया गया था। सहरसा में 22 हजार आवासों के लक्ष्य के विरुद्ध मात्र 7317 लोगों को आवास दिए गए। सहरसा जिले के शीतलपट्टी के रामदेव महतो कहते हैं कि कुसहा में उनका घर बह गया था, आज तक उन्हें घर नहीं मिल सका। जिले के अपर समाहर्ता आश्वासन देते हैं कि वंचित लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास दिए जाएंगे। इधर, पीडि़तों की टीस उठती है-आखिर कब!