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तिरंगा फहराने की खुशी शब्दों में बयां नहीं हो सकता : नंदलाल मांझी

15 अगस्त 1947 को तिरंगा फहराने की खुशी शब्दों में बयां नहीं हो सकती नंदलाल मांझी

By JagranEdited By: Published: Sun, 14 Aug 2022 09:27 PM (IST)Updated: Sun, 14 Aug 2022 09:27 PM (IST)
तिरंगा फहराने की खुशी शब्दों में बयां नहीं हो सकता : नंदलाल मांझी
तिरंगा फहराने की खुशी शब्दों में बयां नहीं हो सकता : नंदलाल मांझी

तिरंगा फहराने की खुशी शब्दों में बयां नहीं हो सकता : नंदलाल मांझी

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विधु विनोद, गोड्डा

जिले में अब गिने-चुने स्वतंत्रता सेनानी ही जीवित बचे हैं। उनकी यादों को समेटना समाज की भी जिम्मेवारी है। शहर के लोहियानगर में रहनेवाले 103 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी नंदकिशोर मांझी अभी स्वस्थ हैं। उन्हें 75 साल पहले की हर घटना याद है। आजादी मिलने के बाद जब प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया गया तो दिल्ली से लेकर सुदूर गांवों तक होली दिवाली जैसा जश्न था। नंदलाल बाबू बताते हैं कि बसंतराय के जहाजकित्ता गांव के चार दर्जी ने 25 हजार तिरंगा झंडा सिले थे। इसमें चार आना खर्च आया था। उक्त झंडे को आंदोलनकारियों की ओर से प्रमुख चौक-चौराहे पर फहराया गया था, फिर भी सबको तिरंगा नहीं मिल पाया था। आजादी के दिन यहां के हर घर में होली दिवाली मनी थी। वह दृश्य आज तक कभी नहीं देखा, और नहीं अब कभी देख पाऊंगा।

नंदकिशोर बाबू 22 साल की उम्र में आठ अगस्त 1942 को गांधी जी के आह्वान पर अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में कूदे थे। दस अगस्त 1942 को स्कूल व कालेज के छात्रों को अंग्रेजी हुकूमत ने जेल में डाल दिया था। नंदलाल बाबू भी तब पहली बार जेल गए थे। दूसरी बार उन्हें तीन दिसंबर 1943 को गिरफ्तार कर पटना के फुलवारीशरीफ जेल भेजा गया था। पटना में नंदलाल बाबू कई बड़े क्रांतिकारियों के संपर्क में आए।

वहां उन्हें डा राजेंद्र प्रसाद से जेल में ही मिलने का अवसर मिला। पथरगामा प्रखंड के हिलावै गांव के निवासी नंदकिशोर बाबू कहते हैं कि 15 अगस्त 1947 के दिन गोड्डा जिले में 25 हजार तिरंगा झंडा बांटा गया था। कांग्रेस पार्टी की ओर से तिरंगा के लिए कपड़ा आदि उपलब्ध करा दिया गया था। प्रथम स्वतंत्रता दिवस में लोगों ने अपने घरों में दीया जलाकर दिवाली भी मनाई थी। आजादी की कीमत तब उन्हें पता था जिन्होंने जेल में चक्की पिसी थी। गोड्डा के कुछ आंदोलनकारियों को अंग्रेजों ने अंडमान निकाेबार जेल भी डाला था। एक दिन में जेल में बंदियों से दंड स्वरूप 30 किग्रा गेहूं को हाथ से चक्की में पिसवाते थे। कोरका के दीनदयाल रामदास, हिलावै के महावीर मंडल आदि इसमें शामिल थे। चक्की नहीं चलाने पर कोड़े बरसाए जाते थे।

जिले में चार स्वतंत्रता सेनानी हैं जीवित : नंदकिशोर मांझी बताते हैं कि 15 अगस्त 1947 के चश्मदीद गवाह के रूप में गोड्डा जिले में पूर्वेडीह गांव के रमेश चंद्र पूर्वे, रेड़ी दुबराजपुर गांव के मनोहर झा, गोड्डा के रमणी मोहन झा तथा वे ही मात्र अब बचे हैं। सभी की उम्र 100 वर्ष से अधिक हो गई है। वे खुद 103 वर्ष पूरे कर चुके हैं। आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पर घर- घर तिरंगा लहराने पर काफी खुशी मिल रही है। इसे देखने के बाद अंग्रेजों की ओर दी गई यातना भी मन से गायब हो जाती है।

पंजवारा के राघवेंद्र बाबू ने जेल में ही पढ़ाया : नंदकिशोर मांझी स्कूली शिक्षा पूरी नहीं कर पाए। 23 वर्ष की उम्र में पटना के फुलवारी शरीफ जेल में बंद होने पर वहां पंजवारा के क्रांतिकारी राघवेंद्र सिंह ने उनकी दोस्ती हुई। उन्होंने जेल में ही राघवेंद्र बाबू से पढ़ना शुरू किया था। जेल से जब बाहर आने लगा तो राघवेंद्र बाबू ने एक पत्र लिखकर दिया और कहा कि तुम जिस स्कूल में एडमिशन लेने जाओगे तो यह पत्र वहां के प्रधानाध्यापक को दे देना। नंदकिशोर मांझी कहते हैं कि वे महेशपुर हाई स्कूल गए और तत्कालीन प्रधानाध्यापक केदार झा को उक्त पत्र दिया। उन्हेांने उस पत्र के आधार पर नौंवी कक्षा में नामांकन लिया, लेकिन गरीबी के कारण स्कूली शिक्षा पूरी नहीं कर पाया। उसी समय संतालपरगना के क्रांतिकारी और गांधी जी के परम शिष्य मोतीलाल केजरीवाल ने नंदकिशोर मांझी को रजौन आश्रम में काम दे दिया। रजौन आश्रम में ही रहकर क्रांतिकारियों की सेवा में वे लगे रहे। रजौन आश्रम तब पूरे संताल परगना के क्रांतिकारियों का अड्डा था। यहां से अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की रणनीति बनती थी और उसे अमलीजामा पहनाया जाता था। कोरका गांव के स्वतंत्रता सेनानी दीनदयाल रामदास और हिलावै गांव के महावीर मंडल को सजा सुनाई गई हुई थी। दोनों को अंडमान निकोबार जेल भेजा गया था। सबों ने कष्ट झेला और जब आजादी मिली तो सभी कष्ट दूर हो गए।


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