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गंभीर बीमारियों के निदान में क्या होती है क्लीनिकल रिसर्च की भूमिका, जॉब की हैं असीमित संभावनाएं

आइए जानते हैं तमाम अनजानी बीमारियों के निदान की दिशा में क्लीनिकल रिसर्च की भूमिका क्या होती है और इसमें सक्षम युवाओं के लिए जॉब की कितनी असीमित संभावनाएं हैं...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 29 Jul 2020 01:37 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jul 2020 02:11 PM (IST)
गंभीर बीमारियों के निदान में क्या होती है क्लीनिकल रिसर्च की भूमिका, जॉब की हैं असीमित संभावनाएं
गंभीर बीमारियों के निदान में क्या होती है क्लीनिकल रिसर्च की भूमिका, जॉब की हैं असीमित संभावनाएं

नई दिल्‍ली, जेएनएन। कोरोना महामारी के बीच इन दिनों दुनियाभर में चल रहे क्लीनिकल ट्रायल की चर्चा है। करीब 200 देश इस लाइलाज वायरस की चपेट में हैं। ऐसे में जिधर देखिए बस यही खबरें देखने-सुनने में आ रही हैं कि फलां देश की वैक्सीन अब क्लीनिकल ट्रायल के फलां स्टेज में पहुंच गई है। आखिर क्या है यह क्लीनिक ट्रायल? क्यों आजकल इसकी इतनी चर्चा हो रही है? जाहिर है आपके मन में भी ये सवाल होंगे।

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दरअसल, क्लीनिकल ट्रायल (क्लीनिकल रिसर्च) ऐसे शोध या अध्ययन को कहते हैं, जिनका उद्देश्य यह पता लगाना होता है कि कोई दवा, टीका या चिकित्सकीय उपकरण मनुष्य के लिए सुरक्षित और प्रभावी है या नहीं। वैसे, आज क्लीनिकल ट्रायल का दायरा बहुत अधिक बढ़ गया है। यह सिर्फ दवाओं के परीक्षण तक ही सीमित नहीं रहा।

दिल्ली स्थित आइसीआरआइ इंडिया के रीजनल हेड डॉ. राजनीति कुमार बताते हैं कि इंसान के काम आने वाली आज जितनी भी दवाएं, मेडिकल डिवाइसेज या जो भी कॉस्मेटिक्स बनते हैं, पहले उन सभी का क्लीनिकल ट्रायल होता है। उसके बाद ही ये मार्केट में आते हैं। बिना ट्रायल के ऐसे उत्पादों के मार्केट में आने की अनुमति नहीं होती है, क्योंकि क्लीनिकल ट्रायल के ये नियम अंतरराष्ट्रीय स्तर के हैं और हरेक देश को उसका पूरी तरह से पालन करना होता है। आमतौर पर क्लीनिकल ट्रायल चार चरणों में किया जाता है। इन चार चरणों में अलग चिकित्सीय परीक्षण किए जाते हैं। यह प्रक्रिया पूरी होने में करीब 5 से 10 साल लग जाते हैं।

क्लीनिकल ट्रायल की नियामक संस्थाएं: देश में क्लीनिकल ट्रायल की कई नियामक संस्थाएं हैं, जैसे कि भारत के ड्रग्स महानियंत्रक (डीसीजीआइ) भारत में किसी भी क्लीनिकल रिसर्च की मंजूरी के लिए जिम्मेदार हैं। इनकी मंजूरी के बिना किसी प्रकार का क्लीनिकल ट्रायल भारत में नहीं किया जा सकता है। इसी तरह दूसरी सर्वोच्च नियामक संस्था आइसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) है, जो जैव चिकित्सा और अनुसंधान का कोआर्डिनेशन कराती है। इसके अलावा, जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी, जैव प्रौद्योगिकी विभाग जैसी अन्य संस्थाएं भी यहां काम करती हैं।

तेजी से बढ़ रही जॉब संभावनाएं: कोविड-19 के खतरे को देखते हुए माना जा रहा है कि आने वाले वर्षों में सरकार का इस इंडस्ट्री को आगे बढ़ाने पर काफी जोर होगा। सस्ते श्रम और कम लागत के कारण दुनिया की तमाम प्रमुख दवा कंपनियां भी क्लीनिकल रिसर्च की जरूरतों के लिए भारत में बड़ा निवेश करेंगी। वैसे अभी भी इस सेक्टर में करियर विकल्पों की कमी नहीं है। आज फार्मा और कॉस्मेटिक्स कंपनियों के अलावा एम्स या मेदांता जैसे सभी बड़े हॉस्पिटल्स के क्लीनिकल रिसर्च डिपार्टमेंट में क्लीनिकल रिसर्च कोर्आिडनेटर, क्लीनिक रिसर्च एसोसिएट या प्रोजेक्ट मैनेजर्स के रूप में नौकरी के मौके हैं। एक्सेंचर, टीसीएस, विप्रो या एचसीएल जैसी आइटी कंपनियों में भी आज ऐसे प्रोफेशनल्स की काफी डिमांड हैं।

कोर्स एवं योग्यता: फार्माकोलॉजी में अंडरग्रेजुएट कोर्स के लिए पीसीबी विषयों से १२वीं होना आवश्यक है, जबकि पीजी लेवल के कोर्स में दाखिले के लिए बायो एवं मेडिकल ग्रेजुएट्स होना जरूरी है। इसके अलावा, डीफार्मा या एमफार्मा के स्टूडेंट्स भी इस तरह के कोर्स में प्रवेश ले सकते हैं। आजकल कई संस्थानों द्वारा क्लीनिकल रिसर्च में र्सिटफिकेशन कोर्स भी ऑफर किए जा रहे हैं।

प्रमुख संस्थान

फैकल्टी ऑफ मेडिकल साइंसेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी

www.fmsc.ac.in

इंस्टीट्यूट ऑफ क्लीनिकल रिसर्च, दिल्ली

www.icriindia.com

एकेडमी फॉर क्लीनिकल एक्सीलेंस, मुंबई

www.aceindia.org

क्लीनी इंडिया, हैदराबाद

www.cliniindia.com

कोविड-19 पर वैक्सीन के ट्रायल से बढ़ी चर्चा: दिल्ली यूनिर्विसटी के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के हेड डिपार्टमेंट ऑफ फार्माकोलॉजी प्रो. वंदना राय ने बताया कि आज क्लीनिकल ट्रायल सिर्फ कोविड-19 पर नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में बहुत-सी चीजों पर हो रहा है। आज इतनी सारी बीमारियां हैं, हर बीमारी में रिसर्च, क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है। नई-नई दवाएं ढूंढ़ने के लिए उन पर स्टडीज हो रही हैं। इसलिए इस फील्ड में आज ट्रेंड लोगों की बहुत जरूरत है। इसके लिए फार्माकोलॉजी एक अच्छा विकल्प हो सकता है। यह तीन वर्षीय कोर्स करने के बाद आपके लिए कई तरह की करियर की राहें खुल जाती हैं।

इसके अलावा, जिन मेडिकल और नॉन-मेडिकल बैकग्राउंड के युवाओं को क्लीनिकल रिसर्च में शौक है, वे भी इसमें आ सकते हैं। लेकिन मेडिकल बैकग्राउंड होने से ज्यादा फायदा मिलता है। इससे आपकी समझ और स्पष्ट हो जाती है, क्योंकि यहां आप इंसानों के साथ डील कर रहे होते हैं। उन पर दवाओं का असर क्या हो रहा है, क्या समस्या हो सकती है जैसी चीजें मेडिकल बैकग्राउंड के युवा ही ज्यादा अच्छी तरह समझ सकते हैं। कुल मिलाकर, फार्माकोलॉजी में आज बहुत अधिक स्कोप है। यह कोर्स करके आप टीचिंग, रिसर्च, इंडस्ट्री, ड्रग रेगुलेशन, फार्माकोविजिलेंस या फिर क्लीनिक ट्रायल जैसे एरिया में जॉब पा सकते हैं।


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