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एक फैसला तय करेगा आपका करियर, संभल करें कोर्स का चुनाव

12वीं के बाद अपने कोर्स का चयन बहुत ध्यान से करें। आपके इस फैसले पर ही आपका पूरा भविष्य टिका है।

By Neel RajputEdited By: Published: Mon, 03 Jun 2019 03:33 PM (IST)Updated: Mon, 03 Jun 2019 03:33 PM (IST)
एक फैसला तय करेगा आपका करियर, संभल करें कोर्स का चुनाव
एक फैसला तय करेगा आपका करियर, संभल करें कोर्स का चुनाव

[अरुण श्रीवास्तव]। बारहवीं के बाद अब जब दाखिले की दौड़ शुरू हो चुकी है, स्टूडेंट्स से लेकर अभिभावक तक इसी जद्दोजहद में हैं कि आगे क्या करें और क्या पढ़ें? यह उधेड़बुन उन स्टूडेंट्स में कहीं ज्यादा देखी जाती है, जो अपनी पसंद को लेकर दुविधा में होते हैं। कुछ न समझ में आने पर वे आंख मूंदकर किसी भी कोर्स में प्रवेश ले लेते हैं और फिर बाद में मन न लगने पर कुढ़ते रहते हैं। करियर के इस टर्निंग प्वाइंट पर किस तरह अपनी रुचि/शौक को जानकर उसे पैशन बनाएं और फिर उसे परवान चढ़ाएं आइए जानते हैं....

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इस ईद पर सलमान खान की प्रतीक्षित फिल्म ‘भारत’ आ रही है। जरा सोचिए कि सलमान अगर एक्टर नहीं होते तो क्या होते? अगर उनके पिता ने उन पर इंजीनियर या डॉक्टर बनने का दबाव बनाया होता, तब भी उनका इतना ही नाम होता। नहीं न।

देशभर में लाखों इंजीनियर-डॉक्टर होंगे। क्या हम सभी को जानते हैं? बिल्कुल नहीं। फिल्मों का शौक होने के कारण सलमान ने कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में शुरुआत की थी। चूंकि सलमान को उनके मन का काम करने की आजादी मिली, इसलिए उन्होंने उसका लुत्फ लिया और अपनी जबर्दस्त पहचान बनाई।

यही बात सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धौनी, विराट कोहली, दीपिका पादुकोण, कंगना रनोट, तापसी पन्नू जैसे तमाम खिलाड़ियों-कलाकारों पर भी लागू होती है। इन्होंने अपने शौक को जुनून बनाया और शुरुआती मुश्किलों- बाधाओं से घबराये बिना संघर्ष करते रहे। आखिरकार उन्हें अपनी मेहनत और संघर्ष का फल मिला।

आज उन्हें कौन नहीं जानता। अगर उनके मातापिता ने भी उन पर परीक्षा पास करने और ज्यादा से ज्यादा अंक हासिल करने का दबाव बनाया होता, तो शायद आज इनकी भी कोई पहचान नहीं होती। ज्यादा से ज्यादा वे पढ़ाई पूरी करके डिग्री लेकर कहीं नौकरी कर रहे होते। लेकिन चूंकि उनके घरवालों ने उन्हें अपने जुनून को जीने दिया, इसलिए सामान्य परिवार से निकलने के बावजूद आज दुनिया उन्हें जानती है और घर-परिवार को भी उन पर नाज है।

दुविधा के चौराहे पर: एक काउंसलर के रूप में इन दिनों मेरे पास ऐसे मेल की भरमार हो गई है, जिसमें यही पूछा गया होता है कि मैंने बारहवीं कर लिया है और अब क्या करूं, समझ में नहीं आ रहा? बहुत दुविधा में हूं। ...दरअसल, इसमें उनका दोष नहीं है। दोष हमारी पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था, पैरेंट्स और टीचर्स का है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली (जो कब की बासी हो चुकी है) हमारा नॉलेज बढ़ाने, हमें उत्सुक बनाने की बजाय किताबें रटाने और परीक्षा पास करने का माध्यम होकर रह गई है।

पैरेंट्स का भी पूरा ध्यान अपने बच्चों को किताबी पढ़ाई कराने और परीक्षा में अधिकाधिक अंक लाने पर होता है। हमारे सम्मानित अध्यापकों का तो कहना ही क्या! जिन स्कूली शिक्षकों पर बच्चों को तराशने, गढ़ने और उन्हें इंसानियत से भरपूर एक सजग-बुद्धिमान व्यक्ति बनाने की जिम्मेदारी होती है, उनमें से ज्यादातर अध्यापन को महज एक नौकरी मानकर अपने नैतिक दायित्व से मुंह मोड़े रहते हैं।

बदलते वक्त के साथ वे न तो खुद पढ़ते और अपडेट होते हैं और न ही बच्चों में सीखने-जानने की जिज्ञासा भर पाते हैं। यही कारण है कि बच्चे बारहवीं करने के बाद भी न तो अपने पैशन को समझ पाते हैं और न ही उसके मुताबिक सही रास्ता ढूंढ़ पाते हैं। बारहवीं के बाद जब उन्हें सीधे अपना लक्ष्य दिखना और उस दिशा में एकाग्रता के साथ बढ़ने की जरूरत होती है, तभी वे सबसे जयादा कन्फ्यूज नजर आते हैं।

खुद तलाशें पसंदीदा रास्ता: अगर आप भी खुद को दुविधा में पाते हैं, तो परेशान न हों। किसी का अनुसरण करने, टीचर, माता-पिता या दोस्तों की सुनने-मानने की बजाय अपने मन की सुनें। माना कि आप अभी उतने परिपक्व नहीं हैं कि ठीक-ठीक निर्णय कर सकें, पर बचपन से ही कोई न कोई शौक तो होगा ही। या तो कोई खेल खेलना अच्छा लगता होगा या फिर लिखना, कहानियां सुनाना, पेंटिंग करना, गाना, फोटोग्राफी करना, डांस करना या तरह-तरह के डिशेज बनाना। तकनीक में रुचि होगी, तो आप कुछ तोड़ते-बनाते भी होंगे। आज के समय में तो ज्यादातर किशोर मोबाइल-इंटरनेट में खूब उलझे रहते हैं।

इसके अलावा भी आपकी कोई ऐसी पसंद हो सकती है, जिसमें आपको कभीउकताहट नहीं होती होगी। मन ही मन सोचते होंगे कि अगर यह काम मुझे मिल जाए, तो कितना मजा आए। तो फिर क्यों अंकों के पीछे पागल हैं? क्यों नहीं अपने शौक से जुड़ा कोर्स करने के बारे में सोचते? हां, अगर अपने शौक/पसंद को लेकर भी दुविधा है, तो उसका भी उपाय है। आप एक बार फिर इसे ठोंक-बजा लें। जांच लें। इसके लिए एक सप्ताह तक हर दिन दिमाग में आने वाली अपनी रुचि/पसंद को क्रम से लिखते जाएं। क्रम से इसलिए, क्योंकि हो सकता है कि आपके दिमाग में एक से ज्यादा रुचियां आ रही हों। ज्यादा चीजें नहीं आतीं, तो कोई बात नहीं।

आप एक-दो चीजों को भी लिख सकते हैं। लेकिन अगर कई बातें आती हैं, तो उन्हें क्रमानुसार लिखते जाएं। अगले दिन फिर ऐसा ही करें। ऐसा करते हुए पहले दिन लिखी बातों को अनदेखा कर दें। उस दिन जो रुचि/पसंद आपको प्रेरित कर रही हो, उसे ही लिखें। ऐसा एक सप्ताह तक करें। एक सप्ताह बाद सातों दिन की लिस्ट को सामने रखें। अब यह देखें कि इन सबमें सबसे ज्यादा कॉमन क्या है?

पैरेंट्स दें साथ: बच्चों का मन समझें बिना सिर्फ अपनी तसल्ली और अपने कैलकुलेशन के आधार पर कभी भी उन पर कुछ थोपने या दबाव बनाने का प्रयास न करें। इसका असर उलटा हो सकता है, जिसे आगे चलकर बच्चे के साथ-साथ आपको भी भुगतना पड़ सकता है। मां-बाप होने के कारण आप तो अपने बच्चे के सबसे बड़े शुभचिंतक हैं न, तो फिर क्यों उसे ऐसी राह पर धकेलना चाहते हैं, जो उसे गहरी अंधेरी खाई की ओर ले जाता है। ऐसी किसी स्थिति से बचना और वाकई उसे कामयाब व खुश देखना चाहते हैं, तो उसे उसी रास्ते पर आगे बढ़ाने में मदद करें, जिसमें उसका सबसे ज्यादा मन रमता हो। अगर अभी भी आप उसकी रुचि को, उसके टैलेंट को नहीं समझ पा रहे, तो इसे समझने का एक बार प्रयास तो करें।

शौक को बनाएं जुनून

आप खुद को निकम्मा बिल्कुल न समझें। अगर टीचर या पापा-मम्मी आपको कुछ नहीं समझते, तो भी आप परवाह न करें। भले ही वे दिखाएं या जताएं नहीं, पर वे आपसे बहुत प्यार करते हैं। हां, अब खुद को साबित कर दिखाने का वक्त है। इससे पहले अपने पैशन यानी जुनून को समझते हुए उससे संबंधित कोर्स/विषय पढ़ने के बारे में सोचें। कोई क्या कह या कर रहा है, इस पर कतई न जाएं। जिस विषय या क्षेत्र में आपको मजा आएगा, उसमें आप उत्साह के साथ अपनी पहचान बना सकते हैं। तो फिर देर किस बात की। अपने भीतर देखें और अपने टैलेंट को पहचानें।

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