Teachers' Day 2022: आइए मिलते हैं बच्चों में पढ़ने की लगन जगाने वाले कुछ समर्पित शिक्षकों से...
अगर कोई स्टूडेंट आगे पढऩे में रुचि रखता है तो किसी अच्छे बोर्डिंग स्कूल में उसका एडमिशन करवा देते हैं। अगर हम भविष्य में देश को मज़बूत बनाना चाहते हैं इसके लिए सबसे पहले बच्चों को अच्छी शिक्षा देनी चाहिए।
विनीता। शिक्षक हमारे लिए प्रकाश स्तंभ की तरह होते हैं, जो समाज में शिक्षा का उजियारा फैलाते हैं। आइए मिलते हैं बच्चों में पढ़ने की लगन जगाने-बढ़ाने वाले कुछ ऐसे ही समर्पित शिक्षकों से...
महज नौकरी नहीं, पैशन है टीचिंग
उप्र के हरदोई के शिक्षक शिवेंद्र सिंह ने बताया कि यह देखकर मुझे बहुत दुख होता था कि हमारे समाज में सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों की छवि बहुत खराब है। शिक्षा के क्षेत्र में आने से पहले मैं एक समाचार पत्र में बतौर रिपार्टर काम करता था। उस दौरान जब कभी गांव के स्कूलों में रिपोर्टिंग के लिए जाता था, तो वहां के हालात देख मुझे बहुत दुख होता था। इसीलिए 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सुपर टीटी की परीक्षा में शामिल हुआ और मेरा चयन हो गया। मेरी पहली नियुक्ति चंदौली जिले के रतिगढ़ चकिया ब्लाक में हुई। वहां पहली से आठवीं कक्षा तक के छात्रों को पढ़ाया जाता है। वहां मैंने देखा कि स्कूल आने वाले बच्चों की संख्या बहुत कम थी। तब मुझे ऐसा लगा कि अगर बच्चे नहीं आते तो हमें खुद उनके घर जाकर उन्हें लाना चाहिए। छोटे बच्चों को हम उनके घर से लेकर आते थे। मैं बच्चों के साथ सख़्ती बरतने में यकीन नहीं करता। उन्हें प्यार से समझाना ज्य़ादा आसान होता है। मैं उनके साथ ज़मीन पर बैठकर उन्हें पढ़ाता हूं।
प्रार्थना के बाद हम बच्चों को सामान्य ज्ञान से जुड़ी बातें बताते हैं। कुछ समय के बाद मैं सातवीं-आठवीं कक्षा के बच्चों को इतिहास, भूगोल और नागरिक शास्त्र पढ़ाने लगा। उस दौरान मैं बच्चों को दैनिक जीवन के रोचक उदाहरणों के माध्यम से समझाने की कोशिश करता हूं। कुछ लोग मुझसे अकसर यह सवाल पूछते हैं कि अध्यापन के साथ आप अन्य प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी क्यों नहीं करते? तब मेरा यही जवाब होता है कि यह मेरे लिए महज़ नौकरी नहीं, बल्कि मेरा पैशन है। अगर मैं इसके साथ प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करूंगा तो बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाऊंगा। बच्चों को पढ़ाना बहुत बड़ी जि़म्मेदारी का काम है। भविष्य में जब मेरे यही छात्र किसी ऊंचे मुकाम पर पहुंचेंगे, तो मेरे लिए सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।
(इंटरनेट मीडिया पर कुछ समय पहले वायरल होने वीडियो के शिक्षक, जिसमें विदाई समारोह में उनके छात्र रोते हुए उन्हें जाने से रोक रहे थे)
जरूरी है जीवन से जुड़े कौशल सिखाना
हरियाणा के करनाल के संजोली बनर्जी ने बताया कि एक बार मैं अपने एक प्रोजेक्ट के लिए मलेशिया गई थी। वहां मुझे रिफ्यूजी बच्चों के स्कूल में जाने का अवसर मिला। उनके परिवार में कई तरह की परेशानियां थीं, फिर भी वे बच्चे बहुत खुश लग रहे थे। तभी मेरे मन में यह खय़ाल आया कि हमें अपने देश के बच्चों के लिए भी कुछ ऐसा ही कार्य करना चाहिए। वहां से लौटने के बाद मैंने अपनी छोटी बहन अनन्या के साथ मिलकर हरियाणा हरड़ गांव से अपने इस कार्य की शुरुआत की।
हम लोगों ने हर शनिवार-इतवार को हालिस्टिक एजुकेशन माड्यूल के आधार पर पढ़ाना शुरू कर दिया। यह सिलसिला भी ज़ारी है। बच्चों को किताबी शिक्षा के अलावा स्पोट्र्स, फाइन आर्ट, म्यूजि़क और क्रिएटिव राइटिंग जैसे स्किल्स की ट्रेनिंग दी जाती है। अभी हम 160 बच्चों के लिए काम कर रहे हैं। मुझे लगता है कि बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें व्यावहारिक जीवन से जुड़े कौशल सिखाना बहुत ज़रूरी है।
(‘सुशिक्षा’ नामक अभियान चला रही संजोली ब्रिटेन के डायना अवार्ड, जर्मनी के यंग ग्लोबल चेंजमेकर अवार्ड और संयुक्त राष्ट्र संघ व भारत सरकार के खेल एवं युवा मंत्रालय द्वारा श्रेष्ठ वालंटियर के रूप में पुरस्कृत शिक्षक हैं)
कर रहे हैं पढ़ने को प्रेरित
लखनऊ के शालीन सिंघल ने बताया कि बचपन में मैंने देखा था कि मेरी मां आसपास के ज़रूरतमंद बच्चों को बच्चों को पढ़ाती थीं और यथासंभव उनकी सहायता करती थीं। मुझे ऐसा महसूस होता है कि उन्हें भी पढऩे और जीवन में आगे बढऩे का मौका मिलना चाहिए। इसीलिए मैं ‘राबिनहुड आर्मी’ नामक स्वयंसेवी संस्था से जुड़ गया, जहां शिक्षित और कामकाजी युवा अपनी सुविधा के अनुसार समय निकालकर वंचित वर्ग के लोगों के लिए स्वैच्छिक और निश्शुल्क सेवाएं देते हैं। हमारे शहर के गोमती नगर क्षेत्र में जुगौली नामक एक मलिन बस्ती है। मैं वहां रहने वाले सौ बच्चों का अलग-अलग ग्रुप बनाकर उन्हें पढ़ाने का काम करता हूं। हमारे पास कोई विशेष साधन नहीं है। पार्क में किसी पेड़ की छांव में तले फोल्डिंग ब्लैकबोर्ड लगा कर हम वहीं अपना अस्थायी क्लासरूम बना लेते हैं।
बच्चों के लिए किताबों और स्टेशनरी का प्रबंध कभी मैं करता हूं, तो कई बार स्थानीय लोग भी हमारे लिए ऐसी चीज़ें भिजवा देते हैं। बारिश के मौसम में आसपास लोग खुद ही हमें अपने घर के बरामदे में या टिन शेड के नीचे क्लास लगाने की इजाज़त दे देते हैं। मुझे याद है कुछ साल पहले मेरे पास रोशनी नामक लडक़ी पढऩे के लिए आई थी। उसने मुझे बताया तीसरी कक्षा के बाद उसके माता-पिता ने उसे स्कूल भेजना बंद कर दिया था। फिर वह अपनी मां के साथ लोगों के घरों में सफाई का काम करने लगी। उस बच्ची के मन में पढऩे की अदम्य इच्छा थी। एक दिन उसके घर जाकर जब मैंने उसके माता-पिता को बहुत समझाया, तो वे मान गए। तमाम बाधाओं के बावज़ूद दसवीं की परीक्षा में उसे 70 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए। अब उसके पेरेंट्स भी शिक्षा की अहमियत समझने लगे हैं।
((पेशे से सीए, पर अपनी व्यस्त दिनचर्या से समय निकालकर ज़रूरतमंद बच्चों को नियमित रूप से पढ़ाने वाले)
वंचित वर्ग के बच्चों को वैन में दे रहे शिक्षादान
सूरत के महेश चांडक ने बताया कि हर कंस्ट्रक्शन साइट के आसपास मजदूरों की छोटी सी बस्ती होती है। माता-पिता काम पर चले जाते हैं और उनके बच्चे यूं ही खेल रहे होते हैं। यह देखकर मुझे बहुत दुख होता था। यह बात हम सभी जानते हैं कि देश के हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए, लेकिन इसके लिए हम निजी स्तर पर कोई प्रयास नहीं करते। फिर इसी सोच के साथ मैं ‘भारत विकास परिषद’ के साथ जुड़ गया, जो समाज के ज़रूरतमंद वर्ग के लोगों की मदद में अपना उल्लेखनीय योगदान देती है।
जब हमने अपने काम की शुरुआत की तो एस.डी. जैन स्कूल सूरत के फाउंडर कैलाश जैन की तरफ से हमें आर्थिक सहायता मिलने लगी। मजदूर अपने बच्चों को स्कूल भेजना नहीं चाहते, इसलिए हमने एक ऐसा वैन तैयार किया, जिसके भीतर किताबें और स्टेशनरी जैसी सारी चीज़ें मौज़ूद होती हैं। उसके बाद हर कंस्ट्रक्शन साइट पर हमारे समूह के सदस्य जाकर बच्चों को पढ़ाने लगे। शुरुआत में हम उन्हें बेसिक शिक्षा देते हैं। अगर कोई स्टूडेंट आगे पढऩे में रुचि रखता है, तो किसी अच्छे बोर्डिंग स्कूल में उसका एडमिशन करवा देते हैं। अगर हम भविष्य में देश को मज़बूत बनाना चाहते हैं, इसके लिए सबसे पहले बच्चों को अच्छी शिक्षा देनी चाहिए।
(‘राइट टु एजुकेशन’ का महत्व समझते हुए पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट महेश चांडक स्वयं सहायता समूह के साथ जुड़कर मोबाइल स्कूल प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं)
छोटी उम्र में ही जान लिया पढ़ाने का महत्व
बंगाल के मुर्शिदाबाद के बाबर अली ने बताया कि मेरा बचपन बहुत अभावग्रस्त था। स्कूल हमारे गांव से आठ किलोमीटर दूर था। मैं रोज़ाना पैदल ही जाता था। वहां से जो भी सीख कर आता, उसे अपनी छोटी बहन को पढ़ाता था। इस लिहाज़ से छोटी बहन मेरी पहली स्टूडेंट थी। जब आसपास के अन्य बच्चों को यह मालूम हुआ तो वे भी मेरे पास पढऩे के लिए आने लगे। हमारे घर का आंगन बहुत बड़ा था, इसलिए मैं बच्चों को वहीं बैठाकर पढ़ाने लगा। धीरे-धीरे उनकी संख्या बढऩे लगी। जब मैंने पांचवीं की परीक्षा पास कर ली, तो मेरे मन में यह खयाल आया कि हमारे इस स्कूल का उद्घाटन होना चाहिए और हमने उसे ‘आनंद शिक्षा निकेतन’ का नाम दिया।
जब मैं दूसरी कक्षा में था, तो रामकृष्ण मिशन की तरफ से मुझे स्कूल यूनिफार्म मिला था, तब मैंने सोचा कि अपने इन छात्रों के लिए भी क्यों न उन्हीं से मदद मांगी जाए। फिर मैं मिशन के आश्रम में चला गया और वहां के गुरु जी से सहायता मांगी। तब मेरी उम्र मात्र ग्यारह वर्ष थी। मेरी मज़बूत इच्छाशक्ति देखकर वह बहुत प्रभावित हुए। हमें उनका भरपूर सहयोग मिला। हमारा अथक प्रयास देखकर आसपास के शुभचिंतकों हमारे लिए पक्के स्थायी विद्यालय का निर्माण करवा दिया। यहां से शिक्षा प्राप्त करने के बाद स्टूडेंट यहीं पढ़ाने के लिए चले आते हैं। मेरी छोटी बहन भी इसी स्कूल में टीचर है। अभी मेरी उम्र 29 वर्ष है। टीचिंग मेरा पैशन है और आजीवन मैं यही करता रहूंगा। (दस वर्ष की उम्र से ही शिक्षक के कर्तव्यों का निर्वहन)
बेटियों को पढ़ाने के लिए कृत संकल्प
बिहार के मुंगेर के बड़हिया महिला महाविद्यालय की पूर्व प्रधानाचार्य डा. विभा कुमारी ने बताया कि विवाह के बाद जब मैं 1971 में ससुराल आई तो यहां गांव में लड़कियों के लिए कोई स्कूल-कालेज नहीं था। फिर समाजसेवी कपिलदेव प्रसाद सिंह के प्रयास से 1976 में गर्ल्स हाईस्कूल और 1982 में कालेज की स्थापना हुई। इस दौरान माता-पिता और ससुराल वालों के सहयोग से मैं भी भागलपुर विश्वविद्यालय से इकोनामिक्स में मास्टर्स की डिग्री हासिल कर चुकी थी और मैं गर्ल्स कालेज में शिक्षक बन गई। वहां लड़कियों की संख्या बहुत कम थी।
तब मैं अपनी सहयोगियों को साथ लेकर लोगों के घरों में जाती और उनसे आग्रह करती कि वे अपनी बच्चियों को आगे पढऩे के लिए भेजें। इस तरह धीरे-धीरे हम पर लोगों का भरोसा बढऩे लगा और वे अपनी बेटियों को कालेज भेजने लगे। आज भी जब कालेज की छात्राओं को पढ़ाई या करियर के चुनाव से संबंधित कोई समस्या होती है तो वे बेझिझक मेरे पास चली आती हैं। जब कोई छात्रा मुझे अपनी सफलता के बारे में बताती है, तो बहुत खुशी होती है।