Success Mantra: कैसे बनें कामयाब इंसान जो लोगों के भी काम आए, जानें
सेंट्रल फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 3.1 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हैं जिसमें से आधे से ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों के युवा हैं।
नई दिल्ली, जेएनएन। सेंट्रल फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 3.1 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हैं, जिसमें से आधे से ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों के युवा हैं। एनएसएसओ के आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2005-06 में ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं के बीच बेरोजगारी की दर 3.9 प्रतिशत थी, जो 2009-10 में बढ़कर 4.7 प्रतिशत पर और 2017-18 में 17.4 प्रतिशत तक पहुंच गई।
ऐसे में ऑस्ट्रेलिया से बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई करने और अमेरिका में 15 वर्षों तक उद्योग जगत का हिस्सा रहने के बाद अपनी मिट्टी के प्रति खिंचाव के चलते वापस भारत लौटने वाले झज्जर (हरियाणा) के संदीप देसवाल (अबोड 1st फाउंडेशन के संस्थापक) ने इस दिशा में कुछ करने की ठानी। मूलत: खुद एक गांव से जुड़ा होने के कारण उन्होंने वहां की समस्याओं को करीब से देखा-समझा था।
यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं को रोजगार-कुशल बनाने के उद्देश्य के साथ उन्होंने ‘अबोड फर्स्ट फाउंडेशन’ के तहत ‘डिजी-युवा’ नाम से एक पहल की है। उनका मानना है कि कामयाबी सिर्फ अपने लिए नहीं, अपने समाज और देश के भी काम आनी चाहिए...
स्कूली दिनों से ही मैं अपने देश और समाज को लेकर जज्बा महसूस करता रहा हूं। ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई पूरी करने के बाद करियर बनाने अमेरिका चला गया। वहां रहने और काम करने के दौरान भी मातृभूमि के प्रति लगातार खिंचाव महसूस करता रहा। इसके चलते छह वर्ष पहले अमेरिका से वापस लौट आया। यहां आने पर देश के युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने की सोच के साथ मैंने ‘अबोड 1st’नामक कंपनी की शुरुआत की।
बढ़ें नौकरी देने की राह पर: अच्छी बात यह है कि इस दौरान हमारे प्रधानमंत्री ने भी बार-बार कहा कि हमें नौकरी करने वाला बनने की बजाय नौकरी देने वाला बनना चाहिए। इससे मेरा मनोबल और ऊंचा हो गया। हालांकि मुझे यह भी एहसास हुआ कि देश में बढ़ती बेरोजगारी की वजह कुछ और है। यहां के ग्रामीण क्षेत्रों के युवा प्रतिभाशाली तो हैं, पर सही समय पर सही प्लेटफॉर्म न मिल पाने के कारण उन्हें पर्याप्त संख्या में समुचित रोजगार नहीं मिल पा रहा है। मैंने महसूस किया कि अगर मैं कामयाबी के मुकाम तक पहुंच सकता हूं, तो बाकी युवा क्यों नहीं पहुंच सकते। इसी सोच के साथ मैंने ‘डिजी-युवा’ नाम से नि:शुल्क डिजिटल मार्केटिंग और पर्सनैलिटी डेवलपमेंट के लिए प्रशिक्षण देने की पहल की।
वक्त के साथ कदमताल: मेरा मानना है कि आज के समय में डिजिटल मार्केटिंग कोर्स से न सिर्फ युवाओं को बदलते वक्त की मांग के अनुसार स्किल की ट्रेनिंग मिल सकेगी, बल्कि इससे उनके भीतर भरपूर आत्मविश्वास भी आ सकेगा।
डिजी-युवा से ग्रामीण युवाओं को उद्योगों की मांग के अनुसार अपने कौशल को सुधारने में मदद मिलेगी और इससे उनकी रोजगार पाने की संभावना और बेहतर होगी। दुनियाभर में ऑटोमेशन, रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के चलते कई क्षेत्रों में रोजगार तेजी से खत्म हो रहे हैं।
वहीं कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां रोजगार की भरमार है, वह है डिजिटल मार्केटिंग। इस क्षेत्र में वैश्विक गुणवत्ता वाला कौशल रखने वाले युवाओं को अपना करियर आगे बढ़ाने में मदद मिल सकेगी।