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अर्थव्यवस्था में मंदी से कम होता रोजगार, आत्मविश्वास और जूझने के मनोबल से ही बनेगी बात

अपने भीतर ये दोनों खूबियां विकसित कर हम किसी भी तरह के दबाव से उबर सकते हैं और न चीजें सीखते हुए बदलाव के लिए खुद को तैयार कर सकते हैं।

By Neel RajputEdited By: Published: Mon, 09 Sep 2019 02:48 PM (IST)Updated: Mon, 09 Sep 2019 02:48 PM (IST)
अर्थव्यवस्था में मंदी से कम होता रोजगार, आत्मविश्वास और जूझने के मनोबल से ही बनेगी बात
अर्थव्यवस्था में मंदी से कम होता रोजगार, आत्मविश्वास और जूझने के मनोबल से ही बनेगी बात

नई दिल्ली [अरुण श्रीवास्तव]। ऑटोमेशन और अर्थव्यवस्था में मंदी से आज हर कोई संशय में है। जो नौकरी में है, वह आगे को लेकर चिंतित है और जो नौकरी तलाश रहा है, वह मनमाफिक नौकरी न मिल पाने के कारण हैरान-परेशान है। बेशक ये दोनों ही स्थितियां चिंताजनक हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि इनसे निबटा नहीं जा सकता।

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दुनिया के कई सफल चिंतक-विश्लेषक इसी निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं कि तेजी से बदलती तकनीक और बदलती जरूरतों के बीच खुद को बनाए रखने के लिए जो चीज सबसे ज्यादा जरूरी है, वह है बदलावों से जूझने का मनोबल और भावनात्मक शक्ति। अपने भीतर ये दोनों खूबियां विकसित कर हम किसी भी तरह के दबाव से उबर सकते हैं और न चीजें सीखते हुए बदलाव के लिए खुद को तैयार कर सकते हैं। क्यों जरूरी है ऐसा करना, जानिए.....

इजराइल के हिब्रू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर युवाल नोआ हरारी अपनी विश्लेषणात्मक बेस्टसेलर किताबों के कारण दुनियाभर में चर्चित हैं। उनकी ‘21 लेसंस फॉर 21 सेंचुरी’, ‘सैपियंस’ और ‘होमो डायस’ जैसी किताबों की 2 करोड़ से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। दुनिया के भविष्य को लेकर फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग और आइएमएफ के पूर्व प्रमुख क्रिस्टीन लेगार्ड तक उनके साक्षात्कार ले चुके हैं।

पिछले दिनों उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में स्पष्ट रूप से कहा कि आने वाले दिनों में परंपरागत रोजगार अपना स्वरूप खो देंगे और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस व ऑटोमोशन के कारण जो नई नौकरियां सामने आएंगी, वे भी ज्यादा दिन तक नहीं चल सकेंगी यानी हर चार-पांच साल में लोगों को नई नौकरियों के मुताबिक खुद को ढालना होगा। हालांकि ऐसा करना इतना आसान नहीं होगा। क्योंकि फिलहाल ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जो भविष्य में नौकरियों के तेजी से बदलते स्वरूप के अनुसार लोगों को उतनी ही तेजी से प्रशिक्षित कर सके।

वर्तमान में मौजूद शिक्षा व्यवस्था से ऐसी उम्मीद कतई नहीं की जा सकती। फिर लोग क्या करें? लगातार बढ़ते दबाव का सामना वे कैसे कर सकेंगे? इसके लिए युवाल नोआ दो चीजों को सीखने/विकसित करने पर विशेष बल देते हैं- पहला, बदलती परिस्थितियों से जूझने का मनोबल और दूसरा, भावनात्मक शक्ति। ये दोनों बातें सुनने में भले ही साधारण लगें, लेकिन देखा जाए तो इनके न होने के कारण ही आज ज्यादातर लोग अपनी नौकरी में दबाव-तनाव से उबर नहीं पा रहे हैं या फिर नौकरी न मिलने के संकट से गुजर रहे हैं।

खुद पर भरोसा
पिछले कुछ वर्षों में ऐसे कई उदाहरण देखने-सुनने को मिले, जब अच्छीखासी नौकरी करता और सुख-सुविधाओं में जीने का आदी कोई व्यक्ति मंदी और पिंकस्लिप के कारण सदमे में आकर नकारात्मक कदम उठा लेता है। दरअसल, अक्सर ऐसा खुद पर भरोसा  होने के कारण होता है। प्रतिष्ठित संस्थान से पढ़ाई के बाद ऊंचे पैकेज वाली नौकरी मिल जाने और फिर तरक्की की सीढ़ियां लगातार चढ़ते जाने से सफलता की आदत पड़ जाने पर अक्सर एक छोटी-सी असफलता भी धराशायी कर देती है।

हां, इसमें कई ऐसे लोग भी होते हैं, जिन्हें अपनी काबिलियत पर पूरा भरोसा होता है। वे फीनिक्स पक्षी (जिसके बारे में किंवदंती है कि वह राख से भी जीवित हो जाता है) की तरह फिर उठ खड़ा होना जानते हैं। देश और दुनिया में ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने असफलता मिलने के बावजूद अपनी गलतियों, कमियों से लगातार सीखते हुए कामयाबी की नई इबारत लिखी और मिसाल बने।

न टूटे मनोबल
जिसे खुद पर भरोसा होता है, जिसके आत्मविश्वास का स्तर हमेशा ऊंचा होता है, जो गिरने या असफल रहने के बाद भी अपने भीतर उत्साह कम नहीं होने देता, वह निश्चित रूप से हर परिस्थिति में अपनी पहचान बना ही लेता है। लेकिन इस पहचान को पाने तक वह बैठा नहीं रहता, बल्कि पूरी कर्मठता के साथ लगातार कोशिशें करता रहता है। बेशक ज्यादातर इंसानों में भावनाएं प्रबल होती हैं, लेकिन ऐसा भी न हो कि कोई भी मुश्किल आने पर हम टूट जाएं, बिखर जाएं। इसके लिए हमें खुद को भावनात्मक रूप से भी शक्तिशाली बनाने पर ध्यान देना चाहिए।

खोलें नए दरवाजे
अपने में सकारात्मक सोच की आदत विकसित करने वाले लोग एक दरवाजा बंद हो जाने पर निराश या हताश होने की बजाय नए दरवाजे की तलाश में लग जाते हैं। भले ही इसके लिए उन्हें नया कौशल ही क्यों न सीखना पड़े। वे इससे पीछे नहीं हटते।

अब समय और कामकाजी कौशल में तेजी से बदलाव हो रहा है, जो निकट भविष्य में और बढ़ेगा, ऐसे में खुद को बनाए रखने और आगे बढ़ने के लिए हरदम नया सीखने के लिए तत्पर रहना होगा। कुढ़ने या नकारात्मक सोच रखने की बजाय खुशी-खुशी नई चीजों को जानने, समझने, सीखने में दिलचस्पी लेकर उसमें खुद को पारंगत बनाएंगे, तो बदलती परिस्थितियों में भी आप अपनी उपयोगिता लगातार साबित कर सकेंगे। इससे आप के ऊपर कभी संकट के बादल नहीं मंडराएंगे।

इसके विपरीत उपलब्धियां आपके ऊपर बरसेंगी। अगर आप नई नौकरी ढूंढ़ रहे हैं या तरक्की के लिए नौकरी बदलना चाहते हैं, तो भी यह जरूरी है कि आप सालों से किसी एक ही क्षेत्र में निपुणता रखने और उसके बारे में बताने-जताने की बजाय उससे संबंधित या अपनी रुचि के अन्य क्षेत्रों में भी बदलती जरूरतों के अनुसार नए कौशल सीखें और उसमें अपनी विशेषज्ञता बढ़ाएं। इससे आपको अलग पहचान मिल सकेगी।

सीखें और सिखाएं भी
हम सबने बचपन से पढ़ा-जाना है कि नॉलेज यानी विद्या ही ऐसा धन है, जो बांटने से कभी कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है। इस सीख के बावजूद आज भी वर्कप्लेस पर तमाम लोग ईष्र्या भाव के कारण एक-दूसरे से अपना ज्ञान बांटना नहीं चाहते। इसके विपरीत दूसरे को नीचा दिखाने का जतन करते रहते हैं। यह निश्चित रूप से नकारात्मक सोच है, जिससे दूसरे को बेशक क्षणिक नुकसान हो जाए, पर अंतत: इससे आपको ही नुकसान होता है।

इस तरह आपकी नकारात्मक छवि भी बनती है। ऐसी सोच रखने वालों से बाकी लोग दूर ही रहना चाहते हैं। इसलिए बेहतर तो यही होगा कि बदलती तकनीक के दौर में खुद भी प्रेरित रहते हुए सीखते रहें और अपनी नॉलेज को यथासंभव दूसरों के साथ बांटकर उन्हें भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहें। निश्चित रूप से इससे आपका ज्ञान कम नहीं होगा, बल्कि दूसरों से सम्मान मिलने के कारण आप और ज्यादा सीखने-जानने के लिए प्रेरित होंगे।


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