#SayNoToPlastic : इकोनॉमी को लाखों करोड़ डॉलर का नुकसान पहुंचा रहा है प्लास्टिक
प्रत्येक टन प्लास्टिक के बदले हम 33 हजार डॉलर के पर्यावरणीय मूल्य का नुकसान करते हैं। वहीं हम एक साल में लगभग 300 मिलियन टन प्लास्टिक प्रोड्यूश करते हैं।
नई दिल्ली,जागरण स्पेशल । देश के किसी भी राज्य में जब प्लास्टिक पर बैन लगता है, तो अक्सर खबर मिलती है कि इस वजह से कारोबार को इतना नुकसान हुआ। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि प्लास्टिक के इस्तेमाल से अर्थव्यवस्था (economy) को कितना नुकसान पहुंचता है। यह सोचना थोड़ा मुश्किल है। हालांकि,जब आप इसके असर के बारे में सुनेंगे तो लगेगा कि इस्तेमाल न करना ही बेहतर है।
द गॉर्जिएन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, प्रत्येक टन प्लास्टिक के बदले हम 33 हजार डॉलर (23 लाख 74 हजार रुपए) के पर्यावरणीय मूल्य का नुकसान करते हैं। वहीं, हम एक साल में लगभग 300 मिलियन टन (3000 लाख टन) प्लास्टिक प्रोड्यूश करते हैं। इसका सबसे ज्यादा असर फिशिंग इंडस्ट्री और टूरिज्म इंडस्ट्री पर पड़ रहा है।
मछलियों से ज्यादा हो जाएगा प्लास्टिक
हम जिस प्रकार से प्लास्टिक का उत्पादन और इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे आने वाले समय में समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसा होने में बहुत समय नहीं है और 2050 तक यह खतरनाक स्थिति आ सकती है। एक साल में हम लगभग 8 मिलियन टन प्लास्टिक समुद्र में डाल देते हैं। इसका नुकसान सिर्फ पर्यावरण ही नहीं, बल्कि इकोनॉमी पर भी पड़ रहा है।
हर साल 2.5 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान
समुद्र के किनारे और उसके सहारे अपना जीवन-यापन करने वालों की बड़ी संख्या है। समुद्र का अपना एक नेचुरल कैपिटल है, इस पर आधारित इकोनॉमी को मरीन इको-सिस्टम कहा जाता है। द गार्जिएन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल हम लगभग 2.5 ट्रिलियन डॉलर के मरीन इकोसिस्टम वैल्यू का नुकसान कर रहे हैं।
टूरिज्म इंडस्ट्री को नुकसान
प्लास्टिक ने टूरिज्म इंडस्ट्री को भी काफी नुकसान पहुंचाया है। समुद्री बीच टूरिज्म के लिए बड़ा केंद्र है। गोवा जैसे राज्य इन बीचेस से पैसा कमा रहे हैं। प्लास्टिक का असर इन पर भी बहुत गहरा पड़ा है। जो प्लास्टिक और कचरा समुद्र में जाता है, वो हाई टाइड के समय समुद्र उसे वापस कचारा किनारे पर छोड़ जाता है। इसका सीधा असर पर्यटक पर पड़ता है। इसी साल जनवरी में समुद्र ने हाई डाइड के दौरान 300 टन कचरा जूहू बीच पर छोड़ दिया था। Impacthub में छपी रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे ही कचरे की वजह से साउथ कोरिया के टूरिज्म को साल 2010 से 2011 के बीच 29 मिलियन यूरो ( करीब 2 अरब 30 लाख रुपए) का नुकसान उठाना पड़ा।
कृषि का बंटाधार
आज की परिस्थिति में सरकारें कृषि में प्लास्टिक के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही हैं। ग्रीन हाउस कल्टिवेशन, माइक्रो इरिग्रेशन और प्लास्टिक उपकरण के इस्तेमाल को बढ़ावा मिल रहा है। इसका फायदा तुरंत दिख रहा है, लेकिन इसका नुकसान ज्यादा बड़ा है। कृषि विशेषज्ञ नवीन सिंह के मुताबिक, इसका असर पैदावार पर ज्यादा नहीं पड़ रहा है, लेकिन फूड क्वालिटी और वॉटर रिसोर्स पर काफी असर है। प्लास्टिक से निकलने वाले रसायन खेतों के माध्यम से हमारे फूड चैन में शामिल हो रहे हैं। वहीं, प्लास्टिक से टूटकर पहले माइक्रो प्लास्टिक और फिर नैनो प्लास्टिक में बदल जाता है। यह अगर खेत के मिट्टी में मिल जाए तो सिंचाई सही तरीके से नहीं हो पाती। नवीन के अनुसार, इसका असर पशुओं पर भी पड़ता है। पशु और खेत दोनों ही ग्रमीण अर्थव्यस्था के मुख्य अंग हैं।
प्लास्टिक उत्पादन से एक तरफ आय तो हो रही है, लेकिन दूसरी तरफ इसका बुरा प्रभाव सीधे अर्थव्यवस्था पड़ रहा है। इसका सबसे ज्यादा इम्पैक्ट ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ रही है। चाहे वह किसान हो या मछुआरा। ये दोनों ग्रामीण इकोनॉमी के प्रमुख अंग हैं।