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अब पीएचडी भी कराएगा आयुर्वेद विश्वविद्यालय, पढ़िए पूरी खबर

आयुर्वेद विश्वविद्यालय पारंपरिक चिकित्सा क्षेत्र में पीएचडी की शुरुआत करने जा रहा है। विश्वविद्यालय ने इसके लिए शोध नीति भी तैयार कर ली है।

By Edited By: Published: Fri, 19 Apr 2019 03:00 AM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2019 03:23 PM (IST)
अब पीएचडी भी कराएगा आयुर्वेद विश्वविद्यालय, पढ़िए पूरी खबर
अब पीएचडी भी कराएगा आयुर्वेद विश्वविद्यालय, पढ़िए पूरी खबर
देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड में आयुर्वेद चिकित्सा में अनुसंधान की जमीन तैयार हो रही है। यह पहल की है उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय ने। विवि प्रशासन का मानना है कि आधुनिक विज्ञान को आयुर्वेद के साथ मिलाकर कार्य किया जाए तो कई असाध्य रोगों की चिकित्सा मिलेगी। बस तर्कसंगत सोच से काम करते हुए पहल करने की आवश्यकता है। ऐसे में विश्वविद्यालय इस पारंपरिक चिकित्सा क्षेत्र में पीएचडी की शुरुआत करने जा रहा है। विश्वविद्यालय ने इसके लिए शोध नीति भी तैयार कर ली है। प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सकों ने हर औषधि के गुणों और उनके शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव का गहराई से अध्ययन किया था और आज भी यह विज्ञान आधुनिक शोधकर्ताओं को शोध करने के नए-नए विषय प्रदान कर रहा है। 
आयुष मंत्रालय अपने अनुसंधान संगठनों के माध्यम से आयुर्वेद के द्वारा कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम तक चला रहा है। आयुर्वेद के पारंपरिक फॉर्मूलों के प्रमाणीकरण व इन्हें वैज्ञानिक आधार देने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। ताकि वैश्विक स्तर पर इसकी स्वीकार्यता बढ़े। ऐसे में आयुर्वेद विश्वविद्यालय ने भी इस ओर कदम बढ़ाए हैं। 
उत्तराखंड में उत्पादित होने वाली आयुर्वेदिक दवाओं को देश-दुनिया में पहचान दिलाने के उद्देश्य से सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। आयुर्वेदिक दवाओं के उत्पादन, शोध और विपणन के मद्देनजर हाल ही में केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, पतंजलि और आयुर्वेद विवि के मध्य करार हुआ है। 
अब विश्वविद्यालय आयुर्वेद में पीएचडी की शुरुआत करने जा रहा है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अभिमन्यु कुमार के अनुसार आयुर्वेद हजारों वर्षो से प्रचलित चिकित्सा विज्ञान है। यह न केवल दवाओं का संग्रह है, बल्कि जीवन का एक तरीका भी। देश-दुनिया में आयुर्वेद का ज्ञान उत्तराखंड से फैला, मगर वैज्ञानिक शोध और खोज सीमित रहा। ऐसे में आयुर्वेदिक शोध को बढ़ावा देने के लिए यह पहल की गई है। यह होगी प्रक्रिया पीएचडी के लिए विवि प्रवेश परीक्षा आयोजित करेगा। 
विवि के नियमित फैकल्टी, यूजीसी नेट, गेट, सीसीआरएस नेट, स्लेट, जेआरएफ क्वालिफाइड को प्रवेश परीक्षा में छूट प्रदान की जाएगी। यहां यह भी जानना आवश्यक है कि पीएचडी एग्जाम पास करने का यह मतलब नहीं कि पीएचडी कंफर्म होगी, बल्कि यह सीट पर निर्भर करेगा। रिजल्ट की वैधता एक साल होगी। चयनित शोधकर्ता को छह माह का प्रोजेक्ट वर्क करना होगा। कोर्स वर्क डिक्लेयर होने के एक माह के भीतर सिनॉप्सिस जमा करना होगा। सिनॉप्सिस जमा करने के एक माह के अंदर निर्देशक के समक्ष प्रस्तुतिकरण देना होगा। 
विवि और संबद्ध निजी कॉलेजों को शोध कार्य आयुष जीसीपी नियमों के अंदर करना होगा। यह नियम थर्ड पार्टी रिसर्च पर भी लागू होगा। किसी भी रिसर्च को प्रारंभ करने से पहले एथिकल कमेटी की मंजूरी लेनी होगी।

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