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पढ़िए- हिंदुस्तान के इस बाबर की स्टोरी, फोर्ब्स एशिया की सूची में भी आया नाम

आज इनका यह स्कूल पश्चिम बंगाल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन से मान्यताप्राप्त है और इसमें करी 300 बच्चे पढ़ते हैं।

By Neel RajputEdited By: Published: Mon, 02 Sep 2019 03:45 PM (IST)Updated: Mon, 02 Sep 2019 04:08 PM (IST)
पढ़िए- हिंदुस्तान के इस बाबर की स्टोरी, फोर्ब्स एशिया की सूची में भी आया नाम
पढ़िए- हिंदुस्तान के इस बाबर की स्टोरी, फोर्ब्स एशिया की सूची में भी आया नाम

नई दिल्ली [अंशु सिंह]। खेलने-कूदने की उम्र में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के बाबर अली पहले एक शिक्षक बने और फिर छोटा-सा स्कूल ‘आनंद शिक्षा निकेतन’ शुरू कर दिया। आज इनका यह स्कूल पश्चिम बंगाल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन से मान्यताप्राप्त है और इसमें करी 300 बच्चे पढ़ते हैं।

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इतना ही नहीं, पहली से लेकर 8वीं तक के इन बच्चों की शिक्षा पूरी तरह मुफ्त है। बाबर मानते हैं कि शिक्षा सभी को बराबर मिलनी चाहिए। लेकिन यह उनके अकेले की बस की बात नहीं। इसके लिए समाज को आगे आना होगा। युवाओं को भी समझना होगा कि शिक्षण का पेशा सबसे पवित्र होता है। देखा जाए तो एक शिक्षक शिक्षा के जरिए राष्ट्र निर्माण में अहम योगदान देता है...।

यह कहानी साल 2002 में शुरू होती है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के 5वीं कक्षा का एक छात्र घर से 10 किलोमीटर दूर स्कूल पढ़ने जाता था। 8 किलोमीटर का रास्ता बस से और बाकी दो किलोमीटर पैदल तय करता। इस दौरान वह अक्सर बच्चों को सड़क किनारे कचरा चुनते, खेतों या ढाबों में काम करते देखता। इस पर मन में ख्याल आता कि क्या ये बच्चे स्कूल नहीं जाते?

एक दिन स्कूल से लौटते हुए उन्होंने बच्चों से ही इस सवाल का जवाब जानने का फैसला लिया। उन्हें पता चला कि बच्चे पढ़ना तो चाहते हैं, लेकिन स्कूल जाने के लिए उनके पास पैसे नहीं और न ही कोई पढ़ाने वाला।

इसके बाद उस नौ वर्ष के बच्चे ने वह किया, जिसकी कल्पना भी हम और आप नहीं कर सकते। उसने आठ बच्चों को इकट्ठा किया और घर के करीब एक पेड़ के नीचे उन्हें पढ़ाना शुरू कर दिया। वह जो कुछ भी स्कूल में सीखता, इन बच्चों को लौटकर सिखाता। इस तरह, 8वीं का वह स्टूडेंट बन गया एक टीचर। उस बच्चे का नाम है बाबर अली, जो आज 26 वर्ष के हो चुके हैं।

उपलब्धियां

  • फोर्ब्स एशिया 30 अंडर 30 की सूची में सोशल एंटरप्रेन्योर के तौर पर आया नाम।
  • 16 वर्ष की उम्र में बने हेड मास्टर।
  • कर्नाटक स्टेट बोर्ड, सीबीएसई 10वीं की कम्युनिकेटिव इंग्लिश बुक में शामिल।

शिक्षण बना स्टूडेंट का पैशन

बाबर बताते हैं, मेरे पिता एक स्कूल ड्रॉपआउट थे। लेकिन उन्होंने बच्चों की पढ़ाई के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। मुझे भी लगा कि जब दूसरों को अपना ज्ञान बांट सकता हूं, तो क्यों नहीं इसी को पेशा बना लूं? इस तरह, शिक्षण मेरा पैशन बन गया और मेरे सपने का एक हिस्सा भी। मेरे पास काफी बच्चे आने लगे थे।

मैं उन्हें खुले आकाश के नीचे या कभी-कभी अस्थायी शेड्स के नीचे पढ़ाता था। यह सिलसिला 13 वर्ष तक चला। 2015 के बाद समाज के कुछ शुभचिंतकों की आर्थिक मदद से मैंने एक स्कूल बिल्डिंग का निर्माण कराया। यहां बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देने के साथ ही उन्हें किताबें, ड्रेस, कंप्यूटर, खाना आदि भी उपलब्ध कराए जाते हैं। यह सब विभिन्न संस्थाओं की मदद से होता है।

छोटे-छोटे सहयोग से बढ़े आगे

ऐसा नहीं है कि बाबर के सामने आर्थिक मुश्किलें नहीं आतीं। लेकिन वे कभी हताश नहीं होते। बचपन के दिनों को याद करते हुए बताते हैं, शुरुआत में सभी ने मजाक उड़ाया। किसी को भरोसा नहीं हो रहा था। 

पिता जी को लगता था कि समय बर्बाद कर रहा हूं, लेकिन धीरे-धीरे वे कनविन्स हो गए और फिर माता-पिता दोनों ने ही मुझे सहयोग देना शुरू कर दिया। बाबर बताते हैं, छठी कक्षा में था, जब रामकृष्ण आश्रम के एक संत से मिला और उन्हें अपने स्कूल के बारे में बताया। पहले तो वे मानने को ही तैयार नहीं थे कि छठी कक्षा का बच्चा अपना स्कूल चला सकता है। लेकिन फिर वे हमारे संस्था आए, देखा-जाना और बच्चों के लिए पाठ्यसामग्री देना शुरू कर दिया।

यूनिवर्सिटी बनाने का है ख्वाब

बाबर बताते हैं कि मुर्शिदाबाद देश का एक बेहद पिछड़ा जिला है, जिसके समीप बांग्लादेश की सीमा है। यहां की आबादी भी लाखों में है, लेकिन पूरे इलाके में कोई यूनिवर्सिटी नहीं है। इसलिए वे चाहते हैं कि भविष्य में यहां भी एक विश्वविद्यालय हो। इसके अलावा, बाबर देश भर में स्कूल खोलना चाहते हैं, जहां बच्चों को शिक्षा दी जा सके।

इनोवेटिव सोच वाले आएं शिक्षण में

अध्यापक होने के अलावा बाबर एक मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं। देश-विदेश के शिक्षण संस्थानों व अन्य फोरम पर लोगों को प्रेरित करते हैं। हालांकि वे कहते हैं, मैं कोई पेशेवर मोटिवेशनल स्पीकर नहीं हूं और न ही अपनी प्रशंसा करता हूं। लेकिन मुझसे प्रेरणा लेकर कोई आगे आता है, तो खुशी मिलती है। हालांकि यह हमारे समाज की विडंबना है कि पैरेंट्स बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट तो बनाना चाहते हैं, लेकिन टीचर नहीं।

इससे युवाओं में भी टीचिंग को लेकर ज्यादा उत्सुकता नहीं होती। अगर यह धारणा बदलती है, इनोवेटिव सोच वाले युवाओं को शिक्षण कार्य के लिए प्रेरित किया जाता है, तो यह बच्चों के साथ-साथ देश के लिए सार्थक कदम होगा। बाबर का मानना है कि शिक्षण सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि पैशन है।


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