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Happy Mother's Day 2019: इन कामों को करके मां की मुश्किलें आसान बना रहे ये बच्चे, पढ़िये रोचक स्टोरी

Happy Mothers Day 2019 मां की मदद के लिए भी वे छोटे-बड़े अनूठे अनेक प्रकार के आविष्कार कर रहे हैं। मदर्स डे (12 मई) पर मिलते हैं कुछ ऐसे ही किशोर उम्र इनोवेटर्स से।

By Mangal YadavEdited By: Published: Sat, 11 May 2019 02:15 PM (IST)Updated: Sun, 12 May 2019 01:30 PM (IST)
Happy Mother's Day 2019: इन कामों को करके मां की मुश्किलें आसान बना रहे ये बच्चे, पढ़िये रोचक स्टोरी
Happy Mother's Day 2019: इन कामों को करके मां की मुश्किलें आसान बना रहे ये बच्चे, पढ़िये रोचक स्टोरी

नई दिल्ली [अंशु सिंह]। देश में आए दिन बच्चों-किशोरों के इनोवेशन की चर्चा होती रहती है। बच्चे अपने जिज्ञासु मन को नई उड़ान देकर वह सब कर रहे हैं, जो कई बार कल्पना से परे होता है। वे जुगाड़ तकनीक के जरिये भी अपने आइडिया को मूर्त रूप देने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें कई बार ‘मां’ उनकी प्रेरणा बन जाती हैं। मां की मदद के लिए भी वे छोटे-बड़े, अनूठे, अनेक प्रकार के आविष्कार कर रहे हैं। मदर्स डे (12 मई) पर मिलते हैं कुछ ऐसे ही किशोर उम्र इनोवेटर्स से..

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राजलक्ष्मी बॉर्थाकुर की हेल्थकेयर प्रोडक्ट इनोवेटर के रूप में आज देश में एक पहचान है। इनका बनाया हुआ डिवाइस एपिलेप्सी यानी मिर्गी के रोगियों के लिए काफी कारगर साबित हुआ है। लेकिन क्या आप जानना चाहेंगे कि इसकी प्रेरणा इन्हें कहां से मिली? दरअसल, राजलक्ष्मी के बेटे तेजस को छोटी उम्र से ही मिर्गी के दौरे आते थे। समस्या बढ़ती गई, जिसके लिए उन्हें फौरन अस्पताल ले जाना पड़ता। काफी मुश्किल होती थी।

वे सोचने लगीं कि आखिर क्या किया जाए? करीब तीन साल की मेहनत के बाद उन्होंने आइटी, डाटा साइंटिस्ट, डेवलपर्स एवं मेडिकल रिसर्चर्स की टीम के साथ मिलकर ‘टी-जे’ नाम से एक ऐसा प्रोटोटाइप तैयार किया, जिससे मिर्गी के दौरे का पहले ही अनुमान लगाया जा सकता था। यह उदाहरण उस मां का है, जिसने बेटे के लिए इनोवेशन किया। लेकिन देश में ऐसे होनहार किशोरों की कमी नहीं, जो मां की तकलीफों और मुश्किलों को देखकर, नए आविष्कार कर रहे हैं। चाहे वे कॉलेज स्टूडेंट हों या गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे।

मां की अंगुली कटने पर बनाया सेफ्टी ओपनर

अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के दक्षिणी द्वीप स्थित गवर्नमेंट सीनियर सेकंडरी स्कूल के नौवीं कक्षा के स्टूडेंट सायन अख्तर शेख की मां जब गैस सिलेंडर पर लगे प्लास्टिक कैप को खोलने की कोशिश कर रही थीं, तो नायलॉन के धागे से उनकी अंगुली कट गई। यह घटना अक्सर घरों में घटती रहती है। लेकिन सायन ने इसका तोड़ निकालने की सोची और फिर एक ऐसा प्लास्टिक (सेफ्टी) कैप ओपनर बनाया, जिससे सिलेंडर के नोजल से लेकर सॉस के बोतल के ढक्कन तक आसानी से खोले जा सकते हैं। इसमें चोट लगने का खतरा भी नहीं।

डायबिटिक रेटिनोपैथी पर किया रिसर्च

दोस्तो, चीन के बाद सबसे ज्यादा डायबिटीज के मरीज भारत में ही हैं, जिनकी संख्या 2030 तक 10 करोड़ के करीब पहुंचने का अंदेशा है। बीते सालों में यह भी देखने को आया है कि डायबिटिक रेटिनोपैथी से आंखों की रोशनी पर असर पड़ रहा है। कई मामलों में इससे दृष्टिहीनता भी आ रही है। मुरादाबाद स्थित एमआइटी की बीटेक फाइनल ईयर की स्टूडेंट शानवी शर्मा ने बताया कि कैसे जब उनकी मां, दादी के मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए अस्पताल पहुंचीं, तो उन्हें डायबिटिक रेटिनोपैथी की जानकारी मिली, जो तेजी से लोगों को गिरफ्त में ले रही है, क्योंकि इसे समय पर डायग्नोस नहीं किया जा पा रहा है। ज्यादा लोगों को इसकी जानकारी नहीं है। इसके बाद ही शानवी ने इस पर रिसर्च करना आरंभ किया। वे बताती हैं,‘पेटेंट न होने के कारण मैं ज्यादा विस्तार से नहीं बता सकती, लेकिन मेरा रिसर्च ऑटोमेटिक डिटेक्शन ऑफ डायबिटिक रेटिनोपैथी को लेकर है, जिससे समय रहते डायबिटिक रेटिनोपैथी का पता चल सकेगा।’

देसी मेडिकेटेड बेबी वॉर्मर

उत्तर प्रदेश के गोंडा की करिश्मा शुक्ला 11वीं की स्टूडेंट हैं, लेकिन साइंस एवं इनोवेशन में रुचि होने के कारण

आसपास की समस्याओं का हल निकालने की कोशिश करती रहती हैं। खासकर महिलाओं के सामने आने वाली परेशानियों को दूर करना इनका उद्देश्य होता है। जैसे इन्होंने जुगाड़ तकनीक से शिशुओं के लिए एक ऐसा मेडिकेटेड बेबी वॉर्मर डिजाइन किया है, जिससे जन्म के बाद उन्हें एक निर्धारित ताप पर रखा जा सकता है। करिश्मा बताती हैं,‘मैंने आसपास और अपने घर में देखा था कि कैसे सही ताप नहीं मिलने के कारण जन्मजात शिशुओं पर वायरस का प्रकोप बढ़ जाता है, जिससे कभी-कभी उनकी मौत भी हो जाती है।

मैंने दादी-दादा जी से इस पर चर्चा की कि आखिर पुराने जमाने में जब इतनी चिकित्सा व्यवस्था नहीं थी, तो बच्चे कैसे सर्वाइव करते थे?’ दादा जी से मिली जानकारियों के आधार पर करिश्मा ने कपास की रूई, केले के पत्ते, हल्दी और नीम की मदद से एक देसी बेबी वार्मर तैयार कर दिया। हल्दी जहां रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है, वहीं नीम कीटाणुओं से बचाव करती है। शिशु को कोई इंफेक्शन नहीं होता। इस तरह इनका ग्रासरूट इनोवेशन कई महिलाओं के लिए वरदान साबित हुआ है। आगे चलकर डॉक्टर बनने की इच्छा रखती हैं करिश्मा।

मां के लिए बनाया चेयर और रोटी मेकर 

यूपी के महाराजगंज के राहुल सिंह 11वीं के स्टूडेंट हैं। जुगाड़ तकनीक से कुछ नया करने और बनाने का उत्साह इतना है कि मां को कोई तकलीफ हुई नहीं कि उसका समाधान हाजिर कर देते हैं। मसलन इन्होंने एक ऐसी ऑटोमेटिक चेयर बनाई है, जिस पर बैठते ही पंखा ऑन हो जाता है और उठने पर बंद। वहीं, इनके रोटी मेकर में आटा और पानी डालते ही रोटी तैयार हो जाती है। यह मशीन ऐप से संचालित की जा सकती है। राहुल बताते हैं,‘पहले अक्सर हम लोग पंखा या लाइट बंद करना भूल जाते थे। इससे एक बार काफी बिजली का बिल आया। मां ने खूब डांट लगाई। तभी मैंने तय किया कि कुछ ऐसा करना है, जिससे कि बिजली की बचत हो और पैसे भी बर्बाद न हों। इसके बाद ही ऑटोमेटिक चेयर बनाई।’ राहुल को यह सब करने का जुनून-सा है। पिता किसान हैं। राहुल के पास पैसे नहीं होते हैं।  किसी न किसी से मदद लेकर चीजें बना लेते हैं। वह बताते हैं,‘जब कोई इनाम मिलता है, तो लोगों से उधार लिए पैसे वापस कर देता हूं। मेरा एक ही मकसद है, वैज्ञानिक बनकर देश की सेवा करना।’ राहुल को मदन मोहन मालवीय यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी, गोरखपुर के इंक्यूबेशन सेंटर से भी काफी मदद मिलती है।

रोबोकुक से मां के खाना बनाने में की मदद

बिहार के भागलपुर के अभिषेक भगत बचपन में मां को रसोई के कार्यों में घंटों मेहनत करते देख दुखी हो जाते थे। उनके बाल मन में कल्पना आई कि क्यों न ऐसा कुछ आविष्कार किया जाए, जिससे मां को खाना बनाने के झंझट से छुटकारा मिल जाए। बार-बार एक ही काम न करना पड़े, जैसे कि चाय आदि बनाना यानी ऑर्डर दो और भोजन बनकर तैयार। यहीं से ‘रोबोकुक’ बनाने की रूपरेखा शुरू हो गई और स्कूली दिनों में ही इस मिशन को अभिषेक ने साकार कर दिखाया।

आज उस मॉडल में इन्होंने कई और तब्दीलियां की हैं, जिससे कि उसे और अधिक उपयोगी बनाया जा सके। उसकी ठीक से साफ-सफाई की जा सके। अभिषेक बताते हैं,‘मैंने देखा था कि पहले मॉडल के साथ मां को किस तरह की दिक्कतें हुईं। उसके बाद कई बिंदुओं पर काम किया। काफी शोध किए और आखिर में एक ऐसा मॉडल तैयार हुआ, जिसमें सिर्फ एक बटन दबाने पर रोबो सारे कार्य कर देगा। अच्छी बात यह है कि किसी भी भाषा का

यूजर या फिर एक निरक्षर व्यक्ति भी इसे संचालित कर सकता है।’ अभिषेक इसका कॉमर्शियल उत्पादन करना चाहते हैं, ताकि और महिलाएं इसका फायदा उठा सकें। इन्होंने ‘रोबो थिंग्स’ नाम से अपना एक स्टार्टअप लॉन्च किया है, जहां वे रोबोकुक डेवलप करेंगे। इसके लिए इन्हें सरकार से भी मदद मिल रही है।

धान भरने की मशीन से वक्त की बचत

तेलंगाना के हनुमाजीपेट गांव की राज्जवा खेतों में मजदूरी करती हैं। उनका काम बोरियों में अनाज भरना होता है, जिसमें कड़ी मेहनत लगती है। बेटे मारीपेल्ली अभिषेक मां के इस संघर्ष को देखते हुए ही बड़े हुए। ऐसे में जब इन्हें नेशनल लेवल के इंस्पायर साइंस एग्जीबिशन में शामिल होने का मौका मिला, तो जिला परिषद स्कूल के आठवीं के इस स्टूडेंट ने धान भरने की ऐसी मशीन डिजाइन की, जिससे श्रमिकों का काम आसान हो सकता है।

फिलहाल वारंगल में एक कॉम्पिटिशन में हिस्सा लेने पहुंचे अभिषेक बताते हैं, ‘पैडी फिलिंग मशीन से एक श्रमिक चार श्रमिकों के बराबर का काम तीन से चार मिनट में कर सकता है। इससे श्रमिकों की संख्या कम करने के साथ ही उनके समय की भी बचत हो सकती है।’

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