पढ़ाने के जुनून ने बनाया उद्यमी,बच्चों को उपलब्ध करा रहे क्वालिटी एजुकेशन
हाल ही में इन्होंने बिहार सरकार के साथ पार्टनरशिप की है। इसके तहत वे सरकारी स्कूलों के 40 लाख से अधिक बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन उपलब्ध कराएंगे। इसके अलावा यूएई में भी स्टूडेंट्स फिलो की सेवाएं ले रहे हैं।
अंशु सिंह। पारंपरिक रास्तों पर तो बहुत से लोग चलते हैं, लेकिन कुछ युवा अपना रास्ता खुद चुनते हैं और किस्मत भी खुद ही लिखते हैं। 30 वर्षीय इंबेसात अहमद ऐसे ही एक युवा उद्यमी हैं जिन्हें पढ़ाने का जुनून है। बीते कई वर्षों से ‘राइज’ नामक संस्था के जरिये ये जम्मू-कश्मीर में हायर सेकंडरी के बच्चों को आइआइटी, एनआइटी, प्रिंसटन, यूपेन जैसे संस्थानों के लिए तैयार करते आ रहे हैं। दो साल पहले इन्होंने ‘फिलो’ नामक एडटेक प्लेटफार्म (एप) लांच किया, जो बच्चों की जेईई, नीट जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में मदद करता है। इंबेसात का दावा है कि यह विश्व का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ और एकमात्र ‘इंस्टैंट लाइव ट्यूटरिंग प्लेटफार्म’ है।
पटना के आलमगंज इलाके में पले-बढ़े इंबेसात ने लोयला स्कूल से पढ़ाई करने के बाद ‘रहमानी सुपर-30’ के लिए क्वालिफाई किया। यह राज्य के पूर्व आइपीएस अधिकारी अभयानंद द्वारा संचालित संस्थान है जो होनहार छात्रों को जेईई परीक्षा की तैयारी करने में मदद करता है। इंबेसात ने भी इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने के उपरांत आइआइटी खड़गपुर से बीटेक और फिर वहीं से फिजिक्स में मास्टर्स किया। वह बताते हैं, ‘रहमानी सुपर-30’ में पढ़ने के दौरान मैंने मायूसी एवं निराशा को करीब से देखा। यह भी देखा कि वहां पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को अपनी किस्मत संवारने का कैसे एक सुनहरा मौका मिलता है। असल में मुझे अपने आसपास के समाज पर गहरी नजर रखना पसंद है कि आखिर वह कैसे कार्य करता है। संस्कृतियों को समझने की कोशिश करता हूं कि वह कैसे किसी इंसान के व्यवहार को गढ़ती है। मेरा अपना जिज्ञासु स्वभाव मुझे नई चीजें करने के लिए प्रेरित करता है। इसलिए यात्राएं करता रहता हूं। नये-नये लोगों से मिलना अच्छा लगता है। उनसे नये आइडियाज पर बातें करता हूं। नई संभावनाएं तलाशता रहता हूं।'
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में स्टूडेंट्स की मदद: इंबेसात की मानें, तो शिक्षा एक बेहतर जिंदगी का रास्ता दिखाती है। समाज के गरीब तबके से आने वाले स्टूडेंट्स एवं पैरेंट्स में जब इस बेहतर जिंदगी के बारे में जागरूकता आती है, तभी वे शिक्षा के महत्व को ठीक तरीके से समझ पाते हैं। वह बताते हैं, ‘जम्मू-कश्मीर में मुश्किल हालातों के बीच बच्चों को पढ़ाते हुए मैंने महसूस किया कि उनके लिए रोल माडल्स क्रिएट करना कितना जरूरी है। वही मेरी जिंदगी का मकसद बन गया। फिर उसी ने मुझे उद्यमिता में आने के लिए प्रेरित किया। ‘फिलो’ के बारे में बात करें, तो इसका मतलब ही है दोस्त यानी हम स्टूडेंट्स को उनके मेंटर या ट्यूटर से कनेक्ट कराते हैं। जेईई, नीट की तैयारी करने वाले बच्चे फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स, बायोलाजी किसी भी विषय से जुड़े सवालों के जवाब एक्सपर्ट्स से रियल टाइम में वीडियो काल के जरिये हासिल कर सकते हैं।'
समाज को वापस लौटाने का उद्देश्य: इंबेसात को कनाडा के मांट्रियल स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आफ साइंटिफिक में काम करने का मौका मिला था। लेकिन अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने देश में ही रहना पसंद किया। वह कहते हैं, ‘रहमानी सुपर 30’ एलुमनस होने के नाते वैसे भी आपको समाज को वापस लौटाना होता है। इसलिए आफर ठुकारने का अफसोस नहीं रहा। ‘फिलो’ शुरू करने के पीछे मेरा एक खास मकसद है। मैं चाहता हूं कि स्टूडेंट्स के मन में उठने वाले हर प्रश्न का उन्हें जवाब मिलना चाहिए। इसलिए फैकल्टी या शिक्षक ऐसे हों, जो छात्रों की हर जिज्ञासा को शांत कर सकें।’ आज इनके प्लेटफार्म से 52,500 से अधिक ट्यूटर्स जुड़े हैं, जो विभिन्न तकनीकी संस्थानों, मेडिकल कालेज, आइआइटी, एनआइटी के अंडरग्रेजुएट्स और प्रोफेशनल्स होते हैं। रोजाना एक लाख से अधिक लर्निंग सेशंस होते हैं। प्लेटफार्म का प्रभाव ऐसा रहा है कि शुरुआत के महज 16 महीनों में ही 17 लाख से अधिक स्टूडेंट्स ने इसका प्रयोग शुरू कर दिया था।
यूनीक प्रोडक्ट पर है भरोसा: उद्यमिता में अपने अनुभवों के बारे में इंबेसात कहते हैं, ‘हमारे देश के स्टार्टअप इकोसिस्टम में वैसे बिजनेस आइडियाज को सपोर्ट करने पर जोर होता है जो मार्केट में पहले से ही ट्राइड एवं टेस्टेड हों। हम भारतीयों में एक गहरी धारणा है कि डिसरप्टिव टेक्नोलाजी पश्चिमी देशों से आती है। ऐसा नहीं है। हमारा प्रोडक्ट यूनीक था। हां, लोगों को यह जरूर हजम नहीं हो रहा था कि हमारे प्लेटफार्म से एक स्टूडेंट एक शिक्षक से पढ़ सकता है। हमने स्टूडेंट एवं ट्यूटर्स का अनुपात मेंटेन कर उसे संभव कर दिखाया।’ इंबेसात के स्टार्टअप में बेटर कैपिटल के वैभव ने प्री सीड एवं सीड इनवेस्टमेंट किया है। वही उनके मेंटर भी हैं, जिनसे इंबेसात हर मोड़ पर दिशा-निर्देश लेते रहते हैं।
टीम को साथ लेकर चले: हर बिजनेस में चुनौतियां होती हैं। इंबेसात को भी कई स्तरों पर जटिल समस्याओं से दो-चार होना पड़ा। लेकिन फिजिक्स के स्टूडेंट होने के नाते उन्होंने बुनियादी चीजों पर ध्यान दिया और आगे बढ़ते रहे। वह बताते हैं, ‘पहले दिन से मेरा नजरिया और अप्रोच स्पष्ट था। जैसे लीड करने का शाब्दिक अर्थ होता है कि लोग आपको फालो करें। उसके लिए उन्हें मालूम होना चाहिए कि वे कहां और किस ओर जा रहे हैं। मेरा अपनी टीम के साथ वही अप्रोच रहा। उन्हें मेरे उद्देश्य के बारे में मालूम था और भरोसा था कि मैं उन्हें कहां ले जा रहा हूं। इसके लिए मैंने एक साधारण तरीका निकाला। वह था टीम के साथ संवाद करना। इससे हम अपने लक्ष्य को हासिल करने में सफल रहे।’ इंबेसात की मानें, तो जीवन में संतुलन जरूरी है। वही आगे बढ़ने में मदद करता है। इस यात्रा में जो भी सफलता आप हासिल करते हैं, वही माइलस्टोन बनता जाता है। उसकी खुशी व जश्न मनाएं।
इंबेसात अहमद