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सियासी दांवपेंच में उलझा गन्ना मूल्य

लखनऊ। सियासी दांवपेंच के कारण गन्ना समर्थन मूल्य घोषित करने में विलंब किसानों की मुसीबत बन गया है। किसानों व चीनी मिल मालिकों के दोहरे दबाव में फंसी प्रदेश सरकार अनिर्णय की स्थिति में है।

By Edited By: Published: Wed, 21 Nov 2012 07:08 PM (IST)Updated: Wed, 21 Nov 2012 09:06 PM (IST)
सियासी दांवपेंच में उलझा गन्ना मूल्य

लखनऊ। सियासी दांवपेंच के कारण गन्ना समर्थन मूल्य घोषित करने में विलंब किसानों की मुसीबत बन गया है। किसानों व चीनी मिल मालिकों के दोहरे दबाव में फंसी प्रदेश सरकार अनिर्णय की स्थिति में है। बसपा शासन में लगातार दो पेराई सत्रों में चालीस रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी को दोहराना सपा सरकार के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहा है।

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राज्य मंत्रिमंडल की मंगलवार को हुई बैठक में गन्ने का दाम तय नहीं होने और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को फैसला लेने के लिए अधिकृत करने से भी किसानों के साथ चीनी मिल संचालकों की धड़कन बढ़ी है। उप्र चीनी मिल एसोसिएशन की ओर से बुधवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को प्रेषित पत्र में चीनी उद्योग पर गहराए संकट का हवाला देते हुए गन्ने के दामों में कोई वृद्धि नहीं करने का आग्रह किया गया। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) प्रवक्ता का कहना है गन्ना उत्पादक हरियाणा, तमिलनाडु व महाराष्ट्र जैसे राज्यों में वृद्धि दर नौ से दस प्रतिशत रखा जबकि वहां चीनी रिकवरी दर यूपी से कहीं बेहतर है।

गन्ना मूल्य को लेकर गर्माई सियासत में सपा को अपनी किसान हितैषी छवि बिगड़ने का डर सता रहा है। किसान बसपा शासन में हुई मूल्य वृद्धि के सापेक्ष गन्ना मूल्य में इजाफा होने की आस लगाए है। किसानों के संगठन आंदोलित है और विपक्षी दलों को सरकार की घेराबंदी करने का मौका मिल रहा है। मिशन- 2014 की तैयारी में जुटी प्रदेश सरकार के लिए पहली चुनौती गन्ना मूल्य को लेकर बसपा की बनाई बढ़त बरकरार रखना है। इसके आधार पर गन्ना समर्थन मूल्य 290 रुपये प्रति क्विंटल करना होगा। इससे कम दाम पर सपा नेतृत्व को किसान विरोधी होने के आरोप झेलने होंगे।

गन्ना मूल्य की उलझन से निकलने को बुधवार को भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शीर्षस्थ अधिकारियों के अलावा मंत्री समूह से विचार विमर्श किया। सूत्रों का कहना है एक दो दिन में मुख्यमंत्री गन्ना मूल्य का एलान कर देंगे। प्रति क्विंटल 25 से 40 रुपये की बढ़ोत्तरी संभव है। यह घोषणा सदन के भीतर होने की उम्मीद है ताकि मूल्य बढ़ाने का श्रेय किसी दल विशेष अथवा संगठन को न मिल सके।

उल्लेखनीय है प्रदेश की 121 चीनी मिलों में से एक दर्जन मिलो में ही गन्ना पेराई शुरू हो सकी है। अधिकतर मिलें पश्चिमी उप्र की है। स्योहारा, मोदीनगर, किनौनी, सिंभावली, ब्रजनाथपुर के अलावा हरगांव मिलें एक सप्ताह से चल रही है। लेकिन पूर्वाचल की स्थिति अधिक खराब है खेत खाली करने को किसान गन्ना सस्ते दाम में कोल्हुओं पर बेचने का मजबूर है। किसान मंच के संयोजक सुधीर पंवार का आरोप है ऐसा पहली बार हुआ जब दीपावली तक सभी चीनी मिलों में पेराई शुरू न हो सकी और किसानों के बकाया करीब 120 करोड़ रुपये का भुगतान कराने को दबाव नहीं बनाया गया।

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