सुप्रीम कोर्ट से सहारा को झटका
सहारा समूह को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को समूह की दो कंपनियों को निवेशकों से ली गई राशि ब्याज सहित लौटाने का आदेश दिया है। दोनों को 17,400 करोड़ रुपये की यह रकम तीन महीने में 15 फीसद ब्याज के साथ लौटानी होगी। यह फैसला न्यायमूर्ति केएस राधा कृष्णन व जेएस खेहर की पीठ ने दोनों कंपनियों की याचिकाएं खारिज करते हुए सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीएन अग्रवाल को आदेश के पालन की निगरानी के लिए नियुक्त किया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सहारा समूह को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को समूह की दो कंपनियों को निवेशकों से ली गई राशि ब्याज सहित लौटाने का आदेश दिया है। दोनों को 17,400 करोड़ रुपये की यह रकम तीन महीने में 15 फीसद ब्याज के साथ लौटानी होगी। यह फैसला न्यायमूर्ति केएस राधा कृष्णन व जेएस खेहर की पीठ ने दोनों कंपनियों की याचिकाएं खारिज करते हुए सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीएन अग्रवाल को आदेश के पालन की निगरानी के लिए नियुक्त किया है।
कोर्ट ने निवेशकों का पैसा वापस करने के शेयर बाजार नियामक सेबी और प्रतिभूति अपीलीय ट्रिब्यूनल [सैट] के आदेश पर अपनी मुहर लगा दी है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि अगर कंपनी निश्चित अवधि में आदेश का पालन नहीं करती है तो भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड [सेबी] पैसा वसूलने के लिए कंपनी की संपत्ति जब्त कर उसके खाते सील कर सकता है। कोर्ट ने सहारा को निर्देश दिया है कि वह दस दिन के भीतर सभी दस्तावेज सेबी को मुहैया कराए। कोर्ट ने बाजार नियामक को भी इस बारे में जल्द से जल्द स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।
क्या था मामला
सहारा समूह की दो कंपनियों- सहारा इंडिया रीयल एस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड [एसआइआरईसीएल] और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन [एसएचआइसीएल] ने 2008 व 2009 में निवेशकों से पैसा एकत्र किया था। यह रकम स्वैच्छिक पूर्ण परिवर्तनीय डिबेंचर [ओएफसीडी] के जरिये करीब 2.3 करोड़ निवेशकों से जुटाई गई थी।
सेबी ने बीते साल जून में सहारा को एकत्र की गई इस रकम को 15 फीसद ब्याज के साथ वापस करने का आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ सहारा ने सैट में अपील की, लेकिन उसने सहारा के खिलाफ फैसला सुनाया था। इसके बाद समूह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सहारा की दलील थी कि उसकी कंपनियां शेयर बाजार में सूचीबद्ध नहीं हैं। लिहाजा सेबी को उसकी कंपनियों के मामले में विचार का अधिकार नहीं है।
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