दिवाली से पहले अर्थव्यवस्था को झटका
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। चालू वित्त वर्ष 2012-13 के बाकी महीनों की तरह अक्टूबर में भी निर्यात की रफ्तार दक्षिण में ही बढ़ी। इस महीने निर्यात में 1.6 प्रतिशत की कमी हुई है। इस महीने देश से 21 अरब डॉलर का निर्यात किया गया। बीते वित्त वर्ष इसी महीने 23 अरब डॉलर का निर्यात हुआ था। वैसे, सितंबर में निर्यात में आई कमी के मुकाबले अक्टूबर में गिरावट की रफ्तार कुछ थमी है। सितंबर में निर्यात 11 प्रतिशत गिरा था।
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। चालू वित्ता वर्ष 2012-13 के बाकी महीनों की तरह अक्टूबर में भी निर्यात की रफ्तार दक्षिण में ही बढ़ी। इस महीने निर्यात में 1.6 प्रतिशत की कमी हुई है। इस महीने देश से 21 अरब डॉलर का निर्यात किया गया। बीते वित्ता वर्ष इसी महीने 23 अरब डॉलर का निर्यात हुआ था। वैसे, सितंबर में निर्यात में आई कमी के मुकाबले अक्टूबर में गिरावट की रफ्तार कुछ थमी है। सितंबर में निर्यात 11 प्रतिशत गिरा था।
इसके उलट आयात में बढ़ोतरी का सिलसिला बना हुआ है। अक्टूबर में आयात में 7.37 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। इस महीने 44.2 अरब डॉलर का आयात हुआ। यह पिछले 18 महीनों में सर्वाधिक है। आयात में वृद्धि चालू खाते के घाटे के लिए खतरनाक स्थिति पैदा कर रही है, क्योंकि अक्टूबर में विदेश व्यापार का घाटा 21 अरब डॉलर के करीब पहुंच गया है। यह स्थिति बनी रही तो चालू खाते का घाटा अनुमान से काफी ऊपर रह सकता है। बीते वित्ता वर्ष चालू खाते का घाटा 4.2 प्रतिशत के खतरनाक स्तर तक पहुंच गया था।
अप्रैल को छोड़कर इस वित्ता वर्ष किसी भी महीने निर्यात में सकारात्मक वृद्धि नहीं हुई है। सात महीनों में से छह महीने लगातार निर्यात में कमी आई है। सात महीने का कुल व्यापार घाटा 110 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। वाणिज्य मंत्रालय की कोशिश इसे 180 अरब डॉलर के आसपास रोकने की है। लेकिन निर्यात में हो रही लगातार गिरावट के चलते अब ऐसा होना संभव नहीं दिख रहा है। सरकार के निर्यात बढ़ाने के उपायों का भी कोई लाभ नहीं हो रहा है। आगे भी वैश्विक बाजार में मंदी के रहते निर्यात में वृद्धि की गुंजाइश नहीं दिखती।
दूसरी तरफ आयात में लगातार वृद्धि हो रही है। अक्टूबर में भी सोना और पेट्रोलियम आयात वृद्धि की भूमिका अहम रही। डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में कमी ने तेल आयात के बिल में तेज वृद्धि की है। अक्टूबर के महीने में कुल आयात बिल का 30 प्रतिशत हिस्सा तेल आयात का रहा।
कारखानों में ठप पड़ने लगा कामकाज
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। महंगे कर्ज और मांग में कमी ने औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि को अक्टूबर में भी धीमा रखा है। मैन्यूफैक्चरिंग और कैपिटल गुड्स की धीमी रफ्तार के चलते इस महीने औद्योगिक उत्पादन में 0.4 प्रतिशत की गिरावट आई है। औद्योगिक उत्पादन में कमी ने रिजर्व बैंक पर ब्याज दरों में कमी का दबाव और बढ़ा दिया है।
इस साल अगस्त में ही औद्योगिक उत्पादन की रफ्तार में कुछ सकारात्मक रुख देखने को मिला था। इस महीने औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर 2.3 प्रतिशत रही थी। लेकिन अगले ही महीने अक्टूबर में स्थिति बदल गई। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का हाल बेहाल है। इस महीने इसके उत्पादन में 1.5 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। जबकि अगस्त में इसके बढ़ने की रफ्तार 3.1 प्रतिशत थी। औद्योगिक उत्पादन के सूचकांक में सबसे अधिक योगदान मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का ही होता है।
इसके अलावा कैपिटल गुड्स क्षेत्र की हालत भी बेहद पतली है। सितंबर में इसके उत्पादन में 12.2 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। इस क्षेत्र में गिरावट का साफ अर्थ है कि घरेलू उद्योगों में विस्तार की योजनाओं पर काम की रफ्तार बेहद धीमी है। अप्रैल से सितंबर तक पहली छमाही में इस क्षेत्र का उत्पादन 13.7 प्रतिशत गिरावट हुई है।
महंगाई की लपट और तेज
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। ब्याज दरों को लेकर रिजर्व बैंक की असमंजसता आने वाले दिनों में और बढ़ सकती है। एक तरफ औद्योगिक क्षेत्र की सुस्ती दूर होती नहीं दिख रही, वहीं दूसरी तरफ महंगाई की स्थिति भी नहीं सुधर रही। अक्टूबर, 2012 में खुदरा महंगाई की दर बढ़कर 9.75 फीसद पर पहुंच चुकी है। इस वजह से केंद्रीय बैंक के लिए ब्याज दरों को कम करना फिर मुश्किल हो जाएगा।
सोमवार को सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों से पता चलता है कि खुदरा महंगाई की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। चीनी, खाद्य तेलों और दालों की कीमतों में काफी वृद्धि हुई है। चीनी की खुदरा कीमत तो 19 फीसद से ज्यादा बढ़ चुकी है, जबकि खाद्य तेल 18 फीसद और दाल 15 फीसद तक महंगी हुई हैं। मांस-मछली की कीमतें 12 फीसद और सब्जियों की कीमतों में 10.74 फीसद तक की वृद्धि हुई है। कपड़े व जूते भी इस महीने काफी महंगे हो गए हैं।
जानकारों का कहना है कि आरबीआइ के लिए इस आंकड़े के बाद ब्याज दरों में कटौती करना और मुश्किल हो जाएगा। उन चीजों में ज्यादा महंगाई देखी गई है जिनकी आपूर्ति सुधार कर स्थिति को संभाला जा सकता था। केंद्रीय बैंक लगातार कहता रहा है कि सरकार को आपूर्ति पक्ष पर ज्यादा ध्यान देते हुए महंगाई पर काबू पाने की कोशिश करनी चाहिए। वार्षिक मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा के दौरान इस आधार पर ही बैंक ने ब्याज दरों में कोई राहत नहीं दी थी। कारण यह बताया गया था कि महंगाई की स्थिति ठीक नहीं है। आरबीआइ ने यह भी कहा है कि अगर महंगाई की दर घटती है तो वह जनवरी, 2013 में ब्याज दरों को कम करने पर विचार कर सकता है। ब्याज दरों में कमी नहीं होने पर वित्ता मंत्री पी. चिदंबरम ने कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की थी। उद्योग जगत ने भी इसकी काफी निंदा की थी।
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