Move to Jagran APP

रेपो दर में कटौती से कर्ज सस्ते होने के आसार

अपनी सालाना मौद्रिक नीति में रेपो दर में कटौती कर सकता है। इससे कर्ज सस्ते होने की उम्मीदें बढ़ जाएंगी। मंगलवार को पेश होने वाली इस नीति में बैंकरों को ब्याज दरों में एक चौथाई 0.25 फीसदी कमी की उम्मीद है। औद्योगिक उत्पादन और अर्थव्यवस्था की धीमी होती रफ्तार के चलते केंद्रीय बैंक ने मौद्रिक नीति में नरमी के ऐसे कदम उठाने का फैसला किया है।

By Edited By: Published: Mon, 16 Apr 2012 09:22 AM (IST)Updated: Mon, 16 Apr 2012 09:51 AM (IST)
रेपो दर में कटौती से कर्ज सस्ते होने के आसार

नई दिल्ली। रिजर्व बैंक [आरबीआइ] अपनी सालाना मौद्रिक नीति में रेपो दर में कटौती कर सकता है। इससे कर्ज सस्ते होने की उम्मीदें बढ़ जाएंगी। मंगलवार को पेश होने वाली इस नीति में बैंकरों को ब्याज दरों में एक चौथाई 0.25 फीसदी कमी की उम्मीद है। औद्योगिक उत्पादन और अर्थव्यवस्था की धीमी होती रफ्तार के चलते केंद्रीय बैंक ने मौद्रिक नीति में नरमी के ऐसे कदम उठाने का फैसला किया है।

loksabha election banner

आरबीआइ विकास दर को गति देने के लिए नकद आरक्षित अनुपात [सीआरआर] में भी कम से कम 0.25 और अधिक से अधिक 0.75 फीसदी तक कटौती कर सकता है। उद्योग चैंबर एसोचैम ने रिजर्व बैंक से रेपो दर कम से कम एक फीसदी घटाने का आह्वान किया है।

भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन प्रतीप चौधरी ने कहा कि मेरी निजी राय है कि [सीआरआर] में कटौती की जाए। मुझे इसमें पौना फीसदी कमी की उम्मीद है। इंडियन ओवरसीज बैंक के सीएमडी एम नरेंद्र ने भी कुछ ऐसी ही उम्मीद जताई है।

पिछले महीने रिजर्व बैंक ने सीआरआर को 5.5 से घटाकर 4.75 फीसदी कर दिया था। इससे बैंकों को 48,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त नकदी उपलब्ध हो गई। सीआरआर के तहत बैंकों को अपनी जमा का एक निश्चित हिस्सा केंद्रीय बैंक के पास रखना पड़ता है। वहीं रेपो रेट वह दर है, जिस पर बैंक आरबीआइ से कम अवधि के कर्ज प्राप्त करते हैं।

गौरतलब है कि आरबीआइ महंगाई को काबू में करने के लिए मार्च, 2010 से अक्टूबर 2011 के बीच रेपो दर में 13 बार बढ़ोतरी कर चुकी है। वैसे, मौद्रिक नीति की पिछली तीन समीक्षाओं के दौरान इस दर में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। रेपो दर फिलहाल 8.5 फीसदी है।

औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर फरवरी में कम होकर 4.1 फीसदी रही। मैन्यूफैक्चरिंग और उपभोक्ता वस्तु खड में खराब प्रदर्शन के कारण इसमें यह कमी आई। इसी दौरान महंगाई दर 6.95 प्रतिशत रही। कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत अभी भी 100 डॉलर प्रति बैरल से उपर चल रही है। इससे महंगाई बढ़ने का जोखिम बरकरार है।

पंजाब नेशनल बैंक के सीएमडी केआर कामथ ने कहा कि एक तरफ महंगाई का मुद्दा है और दूसरी ओर विकास दर नरम पड़ रही है। ऐसे में रिजर्व बैंक के लिए यह तय करना मुश्किल होगा कि वह विकास दर बढ़ाने के उपायों की ओर ध्यान दें या महंगाई को काबू में रखे।

इस सदंर्भ में रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा कि बढ़ते राजकोषीय घाटे और कम अवधि के कर्जो का बढ़ता स्तर खासा परेशान करने वाला है, लेकिन देश के समक्ष 1991 जैसा भुगतान संकट पैदा नहीं होगा।

गवर्नर के मुताबिक, वर्ष 1991 का संकट तेल की ऊंची कीमतों की वजह से पैदा हुआ था, जिससे विदेशी मुद्रा भडार सूख गया था। सुब्बाराव यहां भारत के आर्थिक सुधार और विकास पर एक पैनल चर्चा में बोल रहे थे। इस दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी उनकी बात सुन रहे थे।

गवर्नर ने कहा कि बड़ा राजकोषीय घाटा और चालू खाते का घाटा सिस्टम पर बहुत ज्यादा दबाव डाल रहे हैं। सुब्बाराव ने कहा कि वर्ष 1991 में राजकोषीय घाटा सात फीसदी था। वर्ष 2012 में यह 5.9 फीसदी पर है। वहीं, चालू खाते का घाटा 3.6 फीसदी है, जो 1991 की तुलना मंें ऊंचा है। कम अवधि वाले कर्जे सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी का 23.3 प्रतिशत हैं।

वर्ष 1991 में यह आंकड़ा 10.2 प्रतिशत पर था। यह काफी परेशान करने वाली तस्वीर है। लेकिन उन्होंने कहा कि 1991 में स्थिति बिगड़नी निश्चित थी। उन्होंने उम्मीद जताई है कि 2012 में ऐसा नहीं होगा। आज की तारीख में संकट बचाव तंत्र ज्यादा तेज और आधुनिक हो गया है।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.