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बच्चों की क्षमताओं केअनुसार करें लक्ष्य निर्धारण

जब हम अपेक्षाओं के माध्यम से लक्ष्य निर्धारण की बात करते हैं तो दो अहम पहलुओं को ध्यान में रखने की जरूरत होती है। एक अपेक्षा विद्यार्थियों को स्कूल से होती है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 14 Oct 2016 09:22 AM (IST)Updated: Fri, 14 Oct 2016 09:38 AM (IST)
बच्चों की क्षमताओं केअनुसार करें लक्ष्य निर्धारण

जब हम अपेक्षाओं के माध्यम से लक्ष्य निर्धारण की बात करते हैं तो दो अहम पहलुओं को ध्यान में रखने की जरूरत होती है। एक अपेक्षा विद्यार्थियों को स्कूल से होती है। इसी तरह स्कूल की भी कुछ अपेक्षाएं विद्यार्थियों से जुड़ी होती हैं। हालांकि उनके बीच की कड़ी में शिक्षकों सहित अभिभावकों को माना जाता है, मगर यह भी सच्चाई है कि इन सभी की अपेक्षाएं एक दूसरे से जुड़ी हैं, जिसके जरिये सभी अपना लक्ष्य निर्धारण करते हैं। विद्यार्थी जीवन में बच्चों का लक्ष्य स्कूल से अच्छी शिक्षा प्राप्त करना होता है, वहीं स्कूल में शिक्षकों का लक्ष्य बच्चों को बेहतर शिक्षा प्रदान करना है। स्कूल में आने वाले विद्यार्थियों से अपेक्षा की जाती है कि वह एकाग्र हों और व्यक्तित्व के विकास के लिए विभिन्न गतिविधियों में शामिल हों। अनुशासन का भी बच्चों के जीवन में बहुत बड़ा हाथ होता है। अगर वे अनुशासन को अपने जीवन और नैतिकता को व्यवहार में उतार लेंगे, तो उन्हें जीवन में आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।
सबसे पहले बच्चों को बनाएं बेहतर इंसान :विद्यार्थी जीवन में हम सभी के सामने एक ही प्रश्न उठता है कि आखिर हमारा लक्ष्य क्या होगा? ऐसे में अगर हम यह कहें कि बच्चों को इंजीनियर, डॉक्टर या चार्टर्ड एकाउंटेंट बना देना ही स्कूलों का लक्ष्य है तो यह कह देना काफी नहीं है। स्कूलों का वास्तविक लक्ष्य बच्चों को यह सब बनाने के साथ ही एक आदर्श इंसान बनाना भी बहुत जरूरी है। आज हम देखते हैं कि बड़े-बड़े कोचिंग इंस्टीट्यूट अपने विज्ञापनों में शत प्रतिशत अंक और नौकरी की गारंटी दिलाने के दावे करते हैं, मगर यह सब देखकर बहुत दुख होता है कि इनमें कहीं भी नैतिक मूल्यों की बात ही नहीं जाती है। सवाल यह उठता है कि क्या तात्कालिक सफलता ही सब कुछ है या फिर ऐसी सफलता जिसके परिणाम दूरगामी हों?
मात्र डॉक्टर बनकर एक व्यक्ति बेहतर इलाज भी तभी कर सकता है, जब उसके भीतर मानवीय संवेदनाएं हों। एक इंजीनियर बेहतर भवन निर्माण भी तभी कर सकता है, जब उसमें मानवीय मूल्यों समझ हो। भले ही कोई बहुत ज्ञानी शिक्षक ही क्यों न हो, उसकी दी गई शिक्षा तभी कारगर है, जब शिक्षा के साथ वह बच्चों में अपनत्व, दूसरों का आदर और देशहित की सोच भी विकसित कर सकें। ऐसे में कहा जा सकता है कि केवल लक्ष्य निर्धारित कर लेने से ही सबकुछ बेहतर नहीं होता, क्योंकि लक्ष्य प्राप्ति से पहले मानव को आदर्श बनाने की जरूरत होती है।
संस्कृति से रूबरू कराकर समझाएं कर्तव्य :मानवीय मूल्य ही जीवन के आदर्श और रीढ़ होते हैं, जिसके जरिये वे सही को सही कहने की हिम्मत जुटा पाता है। जो व्यक्ति सत्य की राह छोड़कर केवल स्वार्थ साधने का प्रयास करता रहेगा तो यह किसी के लिए बेहतर सिद्ध नहीं हो सकता। अगर यही राह गुलामी के समय में हमारे अमर शहीदों ने सोची होती तो शायद हमें कभी आजादी नहीं मिल पाती। यह हमारे द्वारा दिए गए संस्कार ही एक विद्यार्थी को भारतीय होने और मानवीय मूल्यों की परिभाषा सिखाते हैं। यह जरूरी है कि हम बच्चों को अपनी वसुधैव कुटुंबकम जैसी संस्कृति के बारे में समझाएं और उन्हें यह भी बताएं कि हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती। आज तेज गति से दौड़ते आधुनिक युग में बच्चे सच्चाई के बजाय अर्ध सत्य की ओर भाग रहे हैं, उन्हें यह समझाने की जरूरत है ।
आचरण से मिलती है बच्चों को संस्कारों की सीख : यह बहुत जरूरी है कि वे अपने दिमाग से सोचें, किसी दूसरे की भावनाओं को हावी न होने दें। अहंकार के दायरे से आगे बढ़कर मैं के बजाय हम की धारणा पर विश्वास रखें। स्कूल का लक्ष्य बच्चों को रट्टू तोता बनाकर अच्छे अंक प्रतिशत दिलाना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि उन्हें बेहतर ज्ञान मिले। वे हर विषय को पढ़ें, अध्ययनशील बनें। ऐसा न हो कि चयनित विषय पढ़कर किसी दायरे में सीमित रह जाएं। इसके लिए जरूरी है कि हम सभी अपनी कथनी और करनी को एक समान बनाए, क्योंकि अगर हम भाषण में कुछ कहें और उन बातों पर खुद ही अमल न करें तो ऐसे ज्ञान के कोई मायने नहीं रह जाते। बच्चे अपने अभिभावकों और शिक्षकों के आचरण से अधिक सीखते हैं। ऐसे में यदि शिक्षक खुद झूठ बोलेंगे, तो विद्यार्थियों के मन में उनके प्रति सम्मान नहीं रहेगा।
मनचाहे क्षेत्र में भविष्य बनाने की मिले बच्चों को छूट : विद्यालयों में ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत है, जिससे विद्यार्थियों के भीतर अनुशासन और संस्कार आएं। वह बड़ों के आदर सहित छोटों से प्रेम करना सीखें। यह बात सही है कि संस्कार घर और विद्यालय से मिलते हैं, मगर इसके लिए हम सभी को यह जिम्मेदारी समझनी होगी और बच्चों में आत्मविश्वास जगाना होगा। उन्हें बताना होगा कि पैसा बेशक आज के युग में जरूरी है, मगर बिना मानवीय मूल्यों के पैसा कुछ नहीं है।

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कंचन जैन, प्रधानाचार्य, राजकीय बालिका उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, बी-2, यमुना विहार।

संस्कारों को समझना जरूरी

हमारी अपेक्षा यही होती है कि हमें स्कूल में अच्छी शिक्षा मिले। हमारे सभी कार्यो में माता पिता का योगदान तो होता ही है। इसके साथ ही शिक्षकों से मिलने वाली शिक्षा भी हमारे लिए बहुत मायने रखती है। हमारी यह जिम्मेदारी बनती है कि हम अच्छी पढ़ाई करें, बल्कि अपने बड़ों के आदर व छोटों से प्रेम करें।

शर्वानी, कक्षा-10

पहले बेहतर इंसान बन

हम सभी को अपने जीवन में कर्तव्य का पालन करते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए। इसी तरह से मैंने आइएएस बनने का लक्ष्य निर्धारित किया हुआ है, हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बड़ा आदमी बनने से पहले बेहतर इंसान बनना चाहिए। मुङो पता है कि यह कठिन है लेकिन संघर्ष के बिना कुछ नहीं मिलता।

साहिल, कक्षा-9

बड़ों का करें सम्मान

हमें हर किसी के अच्छे गुण अपनाने चाहिए और अपने भीतर छिपी कमियों को दूर कर मानसिक रूप से मजबूत बनना चाहिए। हम सभी के माता पिता अपने बच्चों से बहुत प्रेम करते हैं और वे हमेशा यही चाहते हैं कि उनके बच्चे संस्कारी बनकर ऊंचाइयों को छुएं। शिक्षक भी यही चाहते हैं कि बच्चे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ें।

नमन, कक्षा-12

अपना बच्चा समझकर करें सर्वांगीण विकास

शिक्षकों को यह बात ध्यान में रखना होगी कि वे सभी विद्यार्थियों को अभिभावकों की तरह ही अपना बच्चा समझकर उनके सर्वागीण विकास के लिए कार्य करें। शिक्षकों, अभिभावकों और बच्चों सभी से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने दायित्वों को अपने अपने स्तर पर निभाते हुए लक्ष्य की ओर बढ़ें। बेहतर शिक्षा प्राप्त करने का लक्ष्य अगर बच्चों का है तो शिक्षकों व अभिभावकों का लक्ष्य एक बच्चे को अपने जीवन में कामयाब इंसान बनाने का होना चाहिए। जिस क्षेत्र में उसकी रुचि हो उसके अनुसार ही जीवन में सफलता प्राप्त करें।

वेद प्रकाश, शिक्षक

खेल-खेल में सिखाएं हर दिन कुछ नया

एक स्कूल में प्रधानाचार्य का यह उद्देश्य होता है कि विद्यालय की व्यवस्था बेहतर बनी रहे। शिक्षकों का मुख्य उद्देश्य यह रहना चाहिए कि रोज बच्चे स्कूल से कुछ सीखकर जाएं। शंकराचार्य ने कहा कि बाल्यावस्था में विद्यार्थियों को खेल ही सर्वाधिक रुचिकर लगता है, जबकि हम उन्हें खेल से हटाकर पढ़ाना चाहते हैं। ऐसे में शिक्षा का स्वरूप ऐसा होना चाहिए, जिससे बच्चों को खेल-खेल में भी हर दिन कुछ नया सिखाया जाए। बच्चे स्कूल में हर दिन एक छोटा सा लक्ष्य लेकर पहुंचे। इन्हीं छोटे-छोटे लक्ष्यों से वह बड़े लक्ष्य की ओर बढ़ेंगे।

केके मिश्र, शिक्षक

अपने व्यवहार से बच्चों के सामने करें आदर्श स्थापित

स्कूलों की व्यवस्था बेहतर बनाने के लिए शिक्षकों व विद्यार्थियों की भूमिका अहम होती है। दोनों को एक दूसरे से बहुत सी अपेक्षाएं होती हैं और इसी क्रम में दोनों अपने अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं, मगर लक्ष्य निर्धारण की कला बच्चे अपने अभिभावकों सहित शिक्षकों से ही सीखते हैं। ऐसे में हम सभी को यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों में संस्कार पिरोने के लिए पहले खुद उनके सामने आदर्श स्थापित करें। अगर हम अपने विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार भी दे पाएं तो हमें अपने लक्ष्य में काफी हद तक कामयाबी मिली जाएगी।

अमित मरीचि, शिक्षक

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