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क्या आपके लिए मुर्दों का टीला रहा मोहनजोदड़ो सिर्फ रितिक की फिल्म का नाम है?

क्या है मोहनजोदड़ो? और क्या छुपा है इसके इतिहास में जो इस विषय पर फिल्म बनाने की जरूरत पड़ गई।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Mon, 04 Jul 2016 08:36 AM (IST)Updated: Mon, 04 Jul 2016 09:15 AM (IST)
क्या आपके लिए मुर्दों का टीला रहा मोहनजोदड़ो सिर्फ रितिक की फिल्म का नाम है?

अगर आप इतिहास के स्टेडेंट नहीं रहे है तो मोहनजोदड़ों ज्यादातर के लिए सिर्फ रितिक रोशन की आने वाली फिल्म का नाम है। क्या है मोहनजोदड़ो? और क्या छुपा है इसके इतिहास में जो इस विषय पर फिल्म बनाने की जरूरत पड़ गई। जब भी हम प्राचीन सभ्यता की बात करते हैं तो मोहनजोदड़ो शहर का नाम अपने आप आ जाता है। लेकिन क्या आपको इस सभ्यता के बारे में किसी भी तरह की जानकारी है? मोहनजोदड़ो हड़प्पा की सभ्यता का फला-फूला शहर था। यह मौजूदा समय में पाकिस्तान के सिंध में है।

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26 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में बना था मोहनजोदड़ो

यह शहर 26 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में बना था। हालांकि इस शहर को 1921 में ढूंढ़ा गया था। इसी साल पुरातत्वविदों की पहली टीम ने इस खोए हुए शहर की खोज शुरू की थी और यह खोज और इस शहर के बारे में पता लगाने में करीब 40 साल लग गए। इस शहर की खोज राखलदास बनर्जी ने की थी।

मुर्दों का टीला

मोहनजोदड़ो सिंधी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब है मुर्दों का टीला। इसे मुअन जो दाड़ो भी कहा जाता है। हालांकि शहर का असली नाम अब भी किसी को नहीं पता लेकिन मोहनजोदाड़ो की पुरानी सील को देखकर पुरातत्वविदों ने एक द्रविड़ियन नाम पता लगाया जो है कुकूतर्मा।

सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे पुराना शहर है मोहनजोदड़ो

यह सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे पुराना और नियोजित शहर था। मोहनजोदाड़ो की सड़कों और गलियों में आज भी घूमा जा सकता है। यहा की दीवारें आज भी काफी मजबूत हैं। इसे भारत का सबसे पुराना लैंडस्केप कहा गया है। यहां पर बौद्ध स्तूप भी बने हुए हैं। इस शहर के स्नानागार काफी बड़े और नियोजित थे। गंदा पानी के निष्कासन के लिए भी इस शहर में काफी इंतजामात थे।आज हम अनाज को सहेजने के नए-नए तरीके निकालते रहते हैं लेकिन पहले अनाज को संभाल कर रखने के लिए उनकी तकनीक कमाल की थी। दीवारों पर विशाल लकड़ी की अधिरचना थी जिसमें अनाज को रखा जाता था।

गणित के ज्ञानी थे यहां रहने वाले लोग

खोज के दौरान पता चला कि यहां के लोगों को गणित का ज्ञान था। इन्हें जोड़ना, घटाना, मापना आदि सब आता था। उस समय जो ईंट इस्तेमाल की जाती थी सबके वजन और आकार एक ही बराबर था।

म्यूजिक का रखते थे शौक

पुरातत्वविदों के अनुसार यहां के लोग नाचने-गाने और खेलने-कूदने के काफी शौकीन थे। उन्होंने कुछ कुछ म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट और खिलौनों की खोज की थी। इस शहर के लोग सफाई पर खासा ध्यान देते थे। पुरातत्वविदों को साबुन, कंघी और दवाइयां भी मिली है। उन्होंने कंकालों का भी निरीक्षण किया जिसमें पता चला कि उन्होंने नकली दांत भी लगाए हुए थे मतलब उस समय दांत के डॉक्टर भी हुआ करते थे।खुदाई के वक्त यहां इमारतें, धातुओं की मूर्तियां और मुहरें आदि मिलीं। ऐसा माना जाता है कि यह शहर 200 हैक्टेयर में फैला था।

खेती और पशुपालन की सभ्यता

मोहनजोदड़ो के संग्रहालय में काला पड़ गया गेहूं, तांबे और कांसे के बर्तन, मुहरें, चौपड़ की गोटियां, दीए, माप-तौल के पत्थर, तांबे का आइना, मिट्टी की बैलगाड़ी और दूसरे खिलौने, दो पाटन वाली चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन और पत्थर के औजार भी मिले थे।यहां खेती और पशुपालन की सभ्यता रही है। सिंध के पत्थर और राजस्थान के तांबे से बनाए गए उपकरण यहां खेती करने के लिए काम में लाए जाते थे।

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