शेयर बाजार में हाथ आजमाने वाले लोग ट्रेडिंग करने से पहले ‘फ्यूचर और ऑप्शंस’ के बारे में समझ लें
फ्यूचर और ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट्स डेरिवेटिव ट्रेडिंग के प्रमुख साधनों में से एक हैं। डेरिवेटिव्स शुरुआत करने वालों के लिए एक प्रकार के कॉन्ट्रैक्ट्स होते हैं जिनका मूल्य अंतर्निहित संपत्तियों या परिसंपत्तियों के सेट पर ही निर्भर करता है।
ब्रांड डेस्क, नई दिल्ली। अक्सर आपने सुना होगा कि शेयर बाजार से दिन दोगुना रात चौगुना पैसा कमाया जा सकता है। लेकिन क्या यह इतना आसान है? क्या इस बाजार में कोई भी पैसे लगा सकता है? क्या इस बाजार में पैसा लगाने में किसी भी तरह का कोई जोखिम नहीं होता है? क्या इसके कुछ खास नियम भी हैं?
अगर आपके मन में भी इस तरह के सवालों को लेकर संशय बना हुआ है तो परेशान होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इस आर्टिकल में शेयर मार्केट से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां साझा की गई हैं, जो आपको शेयर मार्केट की दुनियां में कदम रखने में सहायक साबित हो सकती हैं।
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शेयर बाजार कैसे काम करता है?
शेयर बाजार में पैसा बनाने के अनेक विकल्प हैं जो इसे अत्यंत रोचक बनाते हैं I साथ ही निवेशकों के लिए सीख-कर व समझ-कर अपनी पसंद के उत्पाद में निवेश से लाभ कमाने का अवसर प्रदान करते हैं। इन्हीं उत्पादों में से दो प्रमुख उत्पाद हैं- फ्यूचर और ऑप्शंस। इन्हें समझने से पहले आपके लिए यह जानना आवश्यक है कि शेयर बाजार, कमोडिटी बाजार या मुद्रा बाजार में सबसे अधिक प्रभाव कीमतों का होता है।
कैसे फ्यूचर और ऑप्शन है फायदेमंद?
फ्यूचर और ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट्स डेरिवेटिव ट्रेडिंग के प्रमुख साधनों में से एक हैं। डेरिवेटिव्स, शुरुआत करने वालों के लिए एक प्रकार के कॉन्ट्रैक्ट्स होते हैं, जिनका मूल्य अंतर्निहित संपत्तियों या परिसंपत्तियों के सेट पर निर्भर करता है। इनमें कोई एसेट बॉन्ड, स्टॉक, मार्केट इंडेक्स, कमोडिटी या करेंसी हो सकते हैं।
डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स के प्रकार
स्वैप, फॉरवर्ड, फ्यूचर और ऑप्शन सहित चार प्रमुख प्रकार के डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट होते हैं।
1. स्वैप- जैसा कि नाम से पता चलता है, ऐसे कॉन्ट्रैक्ट होते हैं जहां दो पार्टी अपनी देयताओं या नकदी प्रवाह का आदान-प्रदान कर सकते हैं।
2. फॉरवर्ड- कॉन्ट्रैक्ट में ओवर-द-काउंटर ट्रेडिंग शामिल होती हैं और विक्रेता और खरीदार के बीच निजी कॉन्ट्रैक्ट होते हैं। डिफॉल्ट जोखिम फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट में अधिक होता है, जिसमें सेटलमेंट करार के अंत की ओर होता है। भारत में, दो सबसे व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट फ्यूचर और ऑप्शन हैं।
3. फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट्स- मानकीकृत किए जाते हैं और माध्यमिक बाजार में इनका ट्रेड किया जा सकता है। वे आपको भविष्य में डिलीवर किए जाने वाले एक निर्दिष्ट कीमत पर अंतर्निहित एसेट खरीदने/बेचने की सुविधा देते हैं।
4. स्टॉक फ्यूचर- वे होते हैं जहां व्यक्तिगत स्टॉक एक अंतर्निहित एसेट होता है। इंडेक्स फ्यूचर वे हैं जहां इंडेक्स एक अंतर्निहित एसेट होता है।
5. ऑप्शन- ऐसे कॉन्ट्रैक्ट होते हैं जिनमें खरीदार को एक विशिष्ट कीमत पर अंतर्निहित एसेट बेचने या खरीदने का अधिकार होता है और निर्धारित समय होता है।
फ्यूचर और ऑप्शन के फायदे
बाजार में अस्थिरता की आशंका को कम करने के लिए विकल्प एक अन्य जरिया है। फ्यूचर एंड ऑप्शन का कॉन्ट्रैक्ट सामान होता है पर इस संदर्भ में खरीददार या विक्रेता के पास यह अधिकार होता है जिस से वो कॉन्ट्रैक्ट का इस्तेमाल करने के लिए बाध्य नहीं होता।
आमतौर पर विकल्प दो प्रकार के होते हैं, जिसमें पहला है CALL ऑप्शन और दूसरा PUT ऑप्शन। जहां CALL ऑप्शन में खरीददार के पास एक निश्चित मूल्य और भविष्य में तय तारीख़ पर परिसंपत्ति (एसेट) के हिस्से की खरीद-फरोख्त करने का विकल्प सुरक्षित रहता है और उसे इस कॉन्ट्रैक्ट का पालन नहीं करने की भी छूट होती है।
वहीं, PUT ऑप्शन में विक्रेता के पास यह अधिकार होता है कि वो एक निश्चित मूल्य और भविष्य में तय तारीख पर कोई परिसंपत्ति (एसेट) के हिस्से का खरीद-फरोख्त करेगा या नहीं। उसके पास भी इस कॉन्ट्रैक्ट का पालन नहीं करने की छूट होती है।
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Note:- यह आर्टिकल ब्रांड डेस्क द्वारा लिखा गया है।